Tuesday, December 30, 2025
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अहमदाबाद का युद्ध अकबर के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया (108)

अहमदाबाद का युद्ध (Ahmedabad Ka Yuddh) अकबर के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया। अकबर ने आगरा से अहमदाबाद तक का 960 किलोमीटर लम्बा मार्ग 10 दिन में तय किया।

अहमदाबाद (Ahmedabad) से तीन कोस पहले रुक कर अकबर ने अपनी सेनाओं (armies) को जमाया। इस समय तक अकबर के बहुत से सेनापतियों (commanders) की सेनाएं अकबर से आ मिली थीं जो अपनी-अपनी सेनाओं के साथ सीकरी (Fatehpur Sikri) और आगरा (Agra) और विभिन्न स्थानों से अहमदाबाद की तरफ दौड़ रही थीं।

राहुल सांस्कृत्यायन (Rahul Sankrityayan) ने लिखा है कि अकबर ने औसतन पचास मील अर्थात् अस्सी किलोमीटर प्रतिदिन की गति से सीकरी से अहमदाबाद तक की दूरी तय की। उसने लगभग 600 मील (miles) अर्थात् 960 किलोमीटर (kilometers) की दूरी लगभग दस दिन में पूरी की तथा ग्यारहवें दिन वह अहमदाबाद के पास जा पहुंचा।

अबुल फजल (Abul Fazl, historian) ने लिखा है कि इस समय अकबर के पास तीन हजार सैनिक (soldiers) थे किंतु उसके शत्रुओं (enemies) की संख्या 20 हजार थी। मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Abdul Qadir Badauni, chronicler) ने भी लिखा है कि अहमदाबाद का युद्ध भले ही कितना भयान क्यों न हो किंतु अकबर के सारे सैनिकों की संख्या कुल मिलाकर 3 हजार से ज्यादा नहीं थी किंतु गुजराती (Gujaratis) ने बीस हजार गुजराती, मुगल (Mughals), अफगान (Afghans), अबीसीनियन (Abyssinians) और राजपूत (Rajputs) एकत्रित कर रखे थे।

यदि अब्दुल कादिर बदायूंनी के इस कथन पर विचार किया जाए तो एक बड़ी विचित्र स्थिति सामने आती है, बाबर (Babur) के आगमन के समय जो मुगल और अफगान एक दूसरे के विरुद्ध लड़े थे, आज बहुत से मुगल और अफगान गुजराती अमीर (nobles) और मिर्जा (Mirzas) के झण्डों के तले एक पक्ष में होकर अकबर के विरुद्ध लड़ रहे थे।

खानवा (Battle of Khanwa) के मैदान में राजपूत बाबर के खिलाफ लड़े थे किंतु अहमदाबाद का युद्ध उस युद्ध से बहुत अलग था, आज बहुत से राजपूत अकबर के पक्ष में तो बहुत से राजपूत अकबर के विरुद्ध लड़ रहे थे। इसी प्रकार अबीसीनियन भी दोनों पक्षों में रहकर एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे।

अहमदाबाद नगर के बाहर मुगल (Mughals)-मुगल से लड़ रहा था, राजपूत (Rajputs)-राजपूत से लड़ रहा था, हब्शी (Habshi, Abyssinians)-हब्शी से लड़ रहा था और अफगान (Afghans)-अफगान से लड़ रहा था।

अकबर ने सौ चुने हुए सैनिक (soldiers) को अपने चारों ओर रखा तथा शेष सेना को अलग-अलग सेनापतियों (commanders) के कमान में रखकर हरावल (vanguard), दायें पार्श्व (right flank), बायें पार्श्व (left flank), अल्तमश (Altamash unit) सहित मध्य भाग (center) आदि का गठन किया।

अबुल फजल ने अपने विवरणों में मुगल बादशाह (Mughal Emperor) के सैनिकों की संख्या सदैव कम करके दिखाई है तथा शत्रु-दल की सेना की संख्या खूब बढ़ा-चढ़ा कर लिखी है तथा अंत में मुगल बादशाहों की जीत दिखाई है।

यदि अकबर के 27 सेनापति एक-एक हजार सैनिक भी लेकर आए हों तो भी अकबर के सैनिकों की संख्या कम से कम 27 हजार हो गई होगी। जबकि वास्तव में इस युद्ध (Ahmedabad Ka Yuddh) में अकबर के सैनिकों की संख्या 50 हजार से किसी भी हालत में कम नहीं रही होगी।

राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि अकबर को आशा थी कि जब वह साबरमती नदी (Sabarmati River) के तट पर पहुंचेगा तब अजीज कोका (Aziz Koka, Mughal noble) अपनी सेना के साथ वहीं पर बादशाह को मिलेगा किंतु अजीज कोका अख्तियार-उल-मुल्क (Ikhtiyar-ul-Mulk) के भय से अहमदाबाद से बाहर ही नहीं निकल पाया।

अख्तियाररुलमुल्क इस ताक में था कि जैसे ही अजीज कोका अहमदाबाद से बाहर निकले, उसे मार डाला जाए।

अबुल फजल द्वारा दी गई सूची में हिंदू सेनानायक (Hindu Generals) में जगन्नाथ रायसल (Jagannath Raisal), जयमल (Jaimal), जगमल पटवार (Jagmal Patwar), राजा बीरबल (Birbal), राजा दीपचंद (Raja Deepchand), मानसिंह दरबारी (Man Singh), रामदास कच्छावा (Ramdas Kachhwaha), रामचंद्र (Ramchandra), सांवलदास (Sanwaldas), जाइन कायथ (Jain Kayath), हरदास (Hardas), ताराचंद (Tarachand), खवास (Khwas) और लाल कलावंत (Lal Kalawant) के नाम लिखे गए हैं।

अबुल फजल लिखता है कि रूपसिंह (Rupsingh) का पुत्र जयमल (Jaimal) एक भारी कवच (armor) पहनकर बादशाह के समक्ष उपस्थित हुआ। बादशाह ने अपने निजी उपयोग का एक हल्का कवच उसे दिलवा दिया तथा उसका भारी कवच मालदेव (Maldev) के पौत्र कर्ण (Karan) को भेंट कर दिया जिसके पास कवच नहीं था।

वास्तव में वह कवच जयमल के पिता रूपसिंह का था। जब जयमल के पिता रूपसिंह ने मालदेव के पुत्र कर्ण को अपना कवच पहने हुए देखा तो वह गुस्से से आग-बबूला हो गया।

कर्ण के पिता मालदेव तथा रूपसिंह के बीच परम्परागत शत्रुता (rivalry) थी। इसलिए रूपसिंह ने अपना कवच उतार दिया और नाराज होकर बादशाह के सेवकों (servants) से कहा कि वे बादशाह से मेरा कवच लाकर मुझे वापस लौटा दें।

जब बादशाह के सेवकों ने यह बात बादशाह से कही तो बादशाह ने रूपसिंह से कहलवाया कि हमने तुम्हारे पुत्र से तुम्हारा कवच हमारे कवच के बदले में लिया है, इसलिए अब उस कवच पर तुम्हारा अधिकार नहीं है।

इस पर रूपसिंह जोरों से चिल्लाने लगा। जब राजा भगवानदास कच्छावा (Raja Bhagwandas Kachhwaha) को रूपसिंह की इस बदतमीजी के बारे में ज्ञात हुआ तो उसने जाकर रूपसिंह को शांत किया।

भगवानदास के कहने पर रूपसिंह ने बादशाह के समक्ष उपस्थित होकर अपनी गलती के लिए क्षमा-याचना (apology) की। बादशाह ने रूपसिंह की ओर बड़ी उपेक्षा (disdain) से देखा।

इस पर राजा भगवानदास ने बादशाह से कहा कि आप इसका अपराध क्षमा करें क्योंकि इसने भांग पी रखी है।

इस पर भी जब अकबर प्रसन्न नहीं हुआ तो राजा भगवानदास ने अकबर से कहा कि मैं आपको शत्रु (enemy) पर विजय (victory) प्राप्त करने की अग्रिम बधाई देता हूँ क्योंकि इस समय आपकी विजय के तीन लक्षण (omens) प्रकट हुए हैं। पहला लक्षण यह कि आप घोड़े (horse) पर सवार हैं, दूसरा लक्षण यह कि हवा (wind) हमारे पीछे की तरफ से चल रही है और तीसरा लक्षण यह है कि हमारे साथ आकाश में चील-कौवे (eagles-crows) भी चल रहे हैं।

कहा नहीं जा सकता कि इस कथन का अकबर पर क्या प्रभाव हुआ क्योंकि इस सम्बन्ध में कोई विवरण नहीं मिलता है।

राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि अकबर के सेनापतियों ने अकबर को सलाह दी कि अजीज कोका के आने तक इसी स्थान पर प्रतीक्षा की जाए किंतु अकबर अपने साथ दो अंगरक्षक (bodyguards) लेकर अहमदाबाद नगर की तरफ चल पड़ा।

मुहम्मद हुसैन मिर्जा (Muhammad Hussain Mirza) ने डेढ़ हजार सैनिक (soldiers) के साथ अकबर पर हमला बोला जिसके कारण अकबर का घोड़ा (horse) घायल हो गया तथा अफवाह (rumor) फैल गई कि अकबर मारा गया। इस कारण अहमदाबाद का युद्ध (Ahmedabad Ka Yuddh) एक नए दौर में पहुंच गया किंतु यह अफवाह अकबर के पक्ष पर कोई दुष्प्रभाव (impact) नहीं डाल सकी क्योंकि अकबर उनके साथ ही रहकर लड़ाई (battle) कर रहा था।

स्पष्ट है कि या तो यह विवरण (account) मनगढ़त है या फिर गलत ढंग से लिखा गया है। क्योंकि न तो अकबर अपनी सेना (army) से अलग होकर, केवल दो अंगरक्षक (bodyguards) के साथ अहमदाबाद (Ahmedabad) की तरफ जाने की गलती कर सकता था और न यह संभव था कि यदि इस अवस्था में अकबर पर डेढ़ हजार सैनिक हमला करते तो अकबर किसी भी हालत में जीवित रह सकता था।

अवश्य ही अकबर की काफी बड़ी सेना (army) अकबर के साथ चल रही थी।

अहमदाबाद का युद्ध (Ahmedabad Ka Yuddh) अकबर के समय के लगभग सभी लेखकों ने बहुत बढ़ा-चढ़ा कर लिखा है। अबुल फजल (Abul Fazl, historian) की अपेक्षा मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Abdul Qadir Badauni, chronicler) ने अपनी पुस्तक मुंतखब उत तवारीख (Muntakhab-ut-Tawarikh) में इस युद्ध (battle) का अधिक स्पष्ट वर्णन (description) किया है।

✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।

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