शहजादी रजिया भारत के मुस्लिम शासकों में सबसे अलग चमकता हुआ सितारा है जिसे कट्टरपंथी मुसलमानों ने शासन नहीं करने दिया तथा अकारण ही उसकी हत्या कर दी।
शहजादी रजिया का जन्म
रजिया का जन्म सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की शहजादी कुतुब बेगम के गर्भ से हुआ था। चूंकि रजिया का जन्म एक शहजादी के पेट से हुआ था, इसलिये न केवल इल्तुतमिश के हरम में अपितु कुतुबुद्दीन के हरम में भी शहजादी रजिया की विशेष स्थिति थी। उसे न केवल हरम में बहुत लाड़-प्यार, नजाकत और शाही सम्मान से पाला गया अपितु सुल्तान के दरबार में भी निर्भय होकर जाने का अधिकार मिला।
रजिया की इस गरिमामय स्थिति के विपरीत, रजिया के सभी भाइयों का जन्म साधारण समझी जाने वाली गुलाम औरतों के पेट से हुआ था। इस कारण शहजादी रजिया के भाई सुल्तान कुतुबुद्दीन के हरम अथवा दरबार में नहीं जा सकते थे। इस कारण उनका लालन-पालन राजकीय परम्पराओं और शानो-शौकत से बहुत दूर साधारण लड़कों की तरह हुआ। जब रजिया पांच साल की हुई तब उसके नाना अर्थात् सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई तथा रजिया के पिता इल्तुतमिश को दिल्ली के तख्त पर बैठने का अवसर मिला।
रजिया की योग्यता
इल्तुतमिश अपने मालिक तथा पूर्व सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की कृपा से ही तुच्छ गुलाम की जिंदगी से ऊँचा उठता हुआ सुल्तान के सर्वोच्च पद पर पहुँचा था, इसलिये वह कुतुबुद्दीन ऐबक की दौहित्री रजिया से विशेष प्रेम करता था। इल्तुतमिश के भाग्योदय में योग्यता का भी बहुत बड़ा हाथ था इसलिये वह योग्य व्यक्तियों को अधिक पसंद करता था। सौभाग्य से रजिया बुद्धिमती और योग्य लड़की थी, इसलिये सुल्तान के मन में रजिया के प्रति प्रेम कई गुना अधिक हो गया।
इल्तुतमिश ने रजिया की योग्यता को कई बार परखा तथा हर बार रजिया इस परीक्षण में खरी उतरी। रजिया ने शहजादियों की तरह हरम में गुड़ियों से खेलने की बजाय, शहजादों की तरह घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कला सीखी। देखते ही देखते रजिया की बुद्धिमत्ता, रूप-सौंदर्य तथा युद्ध कौशल के किस्से दिल्ली की आम जनता में किंवदन्तियों की तरह फैल गये। सुल्तान के हरम से लेकर दरबार तक रजिया शहजादों की भांति मुक्त विचरण करती।
जब शहजादी रजिया में दुनियादारी की समझ आ गई तब वह अपने पिता इल्तुतमिश के कार्यों में हाथ बंटाने लगी। सुल्तान के युद्ध मोर्चों पर जाने की स्थिति में रजिया ही राजधानी दिल्ली में रहकर शासन संभालने लगी। उसके निर्णय सधे हुए होते थे, कार्यों में स्पष्टता रहती थी तथा वह अनुचरों को आदेश देकर कार्य का परिणाम प्राप्त करने में कुशल थी।
शहजादी रजिया को कार्य करने में आलस्य नहीं आता था और वह कठिन परिस्थिति का सामना भी धैर्य पूर्वक करती थी। इतना सब होने पर भी इल्तुतमिश ने अपने बड़े पुत्र नसीरुद्दीन मुहम्मद को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया किंतु भाग्यवश शहजादे नसीरुद्दीन की मृत्यु ई.1229 में इल्तुतमिश के जीवन काल में ही हो गई।
शहजादी रजिया को उत्तराधिकार
ई.1230 में इल्तुतमिश ने ग्वालियर के विरुद्ध अभियान किया। इस दौरान राजधानी की रक्षा का भार शहजादी रजिया की देखरेख में सुल्तान के विश्वासपात्र अमीरों एवं वजीरों को दिया गया। रजिया ने इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और योग्यता से निभाया।
ई.1231 में सुल्तान ग्वालियर के मोर्चे से लौटा। उसने अपनी राजधानी को सुरक्षित पाया तथा उसके प्रबंधन में पहले से भी अधिक सुधार देखा तो सुल्तान खुश हो गया। उसने अपने दरबारियों को बुलाकर उनके सामने ऐलान किया कि- ”मेरे पुत्र जवानी की ऐय्याशी में गर्क हैं और उनमें से कोई भी सुल्तान बनने के लायक नहीं हैं। रजिया ही देश का शासन चलाने योग्य है, और कोई नहीं है।”
इल्तुतमिश ने अपने अमीरों से रजिया को उत्तराधिकारी नियुक्त करने की सहमति प्राप्त की तथा रजिया को अपनी उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसके बाद रजिया का नाम चांदी के टंका (तुर्की सुल्तानों की मुद्रा) पर खुदवाया जाने लगा। इल्तुमिश के कई लड़के थे, सुल्तान के इस निर्णय से उन लड़कों की माताओं के सीनों पर सांप लोट गये किंतु सुल्तान के निर्णय का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
स्वयं रजिया का प्रभाव ऐसा था कि सुल्तान के जीवित रहते रजिया की नियुक्ति का विरोध कर पाना किसी के लिये सरल कार्य नहीं था। प्रोफेसर के. ए. निजामी ने लिखा है- ”इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में वह सर्वश्रेष्ठ थी।”