Monday, November 24, 2025
spot_img

संत कबीर

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की बहुत सारी धाराओं में संत कबीर का नाम अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है। वे राम को निराकार ब्रह्म के रूप में देखते थे।

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की बहुत सारी धाराओं में संत कबीर का नाम अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है। वे राम को निराकार ब्रह्म के रूप में देखते थे। उनसे पहले विष्णु या उनके अवतारों की साकार रूप में ही भक्ति करने की परम्परा थी। राम को निराकार ब्रह्म के रूप में देखने वाले वे संभवतः प्रथम संत थे।

कबीर का जीवन

संत कबीर रामानंदाचार्य के बारह प्रमुख शिष्यों में से थे। संत कबीर का जन्म ई.1398 में काशी में एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ। माता द्वारा लोकलाज के कारण त्याग दिये जाने से कबीर नीरू नामक मुसलमान जुलाहे के घर में पलकर बड़े हुए। संत कबीर की पत्नी का नाम लोई था। उससे उन्हें एक पुत्र कमाल और पुत्री कमाली हुई।

धर्म-सुधारक

कबीर ने विधिवत् शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। बड़े होने पर वे रामानन्द के शिष्य बन गए। कबीर ने घर-गृहस्थी में रहते हुए भी मोक्ष का मार्ग सुझाया। उन्हें हिन्दू-मुस्लिम दोनों के धर्मग्रन्थों का ज्ञान था। कबीर अपने समय के बहुत बड़े धर्म-सुधारक थे। वे अद्वैतवादी थे तथा निर्गुण-निराकार ब्रह्म के उपासक थे। वे जाति-पाँति, छुआछूत, ऊँच-नीच आदि भेदभाव नहीं मानते थे।

बाह्याडम्बर का विरोध

वे मूर्ति-पूजा और बाह्याडम्बर के आलोचक थे। उनके शिष्यों में हिन्दू तथा मुसमलान दोनों ही बड़ी संख्या में थे। इसलिए उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों को पाखण्ड तथा आडम्बर छोड़कर ईश्वर की सच्ची भक्ति करने का उपदेश दिया तथा उनकी बुराइयों की खुलकर आलोचना की-

जो तू तुरक-तुरकणी जाया, भीतर खतना क्यों न कराया!

जो तू बामन-बमनी जाया, आन बाट व्है क्यों नहीं आया।

कबीर ने कुसंग, झूठ एवं कपट का विरोध किया। उनके अनुसार जिस प्रकार लोहा पानी में डूब जाता है उसी प्रकार कुसंग के कारण मनुष्य भी भवसागर में डूब जाएगा। कबीर का मानना था कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु ‘काम’ है और ‘स्त्री’ काम को बढ़ाती है। इसलिए उन्होंने स्त्री को ‘कामणि काली नागणी’ अर्थात् जादू करने वाली काली सर्पिणी कहा।

नारी की झाईं परत अंधा होता भुजंग।

कबिरा तिन की कौन गति से नित नारी के संग।।

कबीर ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों के अर्थहीन आडम्बरों और रस्मों का खण्डन किया। वे हिन्दुओं के छाप-तिलक एवं मूर्ति-पूजा के विरोधी थे तथा उन्होंने मुसलमानों की नमाज, रमजान के उपवास, मकबरों और कब्रों की पूजा आदि की भी आलोचना की उन्होंने मुसलमानों से कहा कि यदि तुम्हारे हृदय में भक्ति-भावना का उदय नहीं होता तो हजयात्रा से कोई लाभ नहीं है। कबीर ने एकेश्वरवाद एवं प्रेममयी भक्ति पर जोर दिया।

कबीर की वाणी

कबीर की वाणी का संग्रह ‘बीजक’ नाम से प्रसिद्ध है। बीजक के तीन भाग है- ]

(1.) रमैनी,

(2.) सबद, और

(3.) साखी।

कबीर की भाषा

संत कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी कहलाती है जिसमें खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी, इत्यादि अनेक भाषाओं का मिश्रण है। उनकी भाषा साहित्यिक न होने पर भी प्रभावशाली है।

ईश् भक्ति को प्रमुखता

यद्यपि कबीर को ज्ञानाश्रयी संत माना जाता है किंतु वे ईश्वर के प्रेम में समर्पित भक्त थे। ईश्वर के प्रति उनका प्रेम किसी प्रेमाश्रयी संत से कम नहीं था। एक दोहे में उन्होंने लिखा है-

कोई ध्यावे निराकार को, काई ध्यावे आकारा।

वह तो इन छोड़न तै न्यारा, जाने जानन हारा।

कबीर के लिए जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात केवल भक्ति थी। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है-

साखत बामन मत मिलो, वैष्णो मिले चाण्डाल।

अंक माल दै भेंटिए, मानो मिले गोपाल।।

ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण

कबीरदासजी की भक्ति में ईश्वर को ज्ञान से नहीं अपितु भक्ति से पाने की ललक है। एक दोहे में उन्होंने लिखा है-

कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउं |

गले राम की जेवड़ी, जित खैंचे तित जाउं ||

मांसाहार का विरोध

संत कबीर मांसाहार के बड़े विरोधी थी। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है-

बकरी पाती खात है, तिनकी काढी खाल।

जे नर बकरी खात हैं, तिनका कौन हवाल।।

कबीर का निर्गुण ब्रह्म

कबीर की भक्ति निर्गुण ब्रह्म अर्थात् बिना रूप और गुण वाले ईश्वर के प्रति थी। कबीर का राम दशरथ-पुत्र राम न होकर अजन्मा, सर्वव्यापी एवं घट-घट वासी राम था। उनका राम समस्त गुणों से परे था। वे कहते हैं-उनका मानना था कि ब्रह्म न तो मंदिर में हैं, न मस्जिद में, अपितु सर्वत्र व्याप्त है-

मस्जिद अंदर मुल्ला पुकारे, काशी अंदर ब्राह्मण

दोनों जगह मेरा साईं, मोहिं कहाँ ढूंढो रे बंदे।

ब्रह्म को निराकार और निर्द्वंद्व बताते हुए कबीर ने लिखा है-

सार सबद सुगम, सहज समाना

ऊंचा कहे न काहू, मंदा कहे न काहू।

ई.1518 में कबीर का निधन हुआ। इस प्रकार उनकी आयु 120 वर्ष मानी जाती है। समाज की निम्न समझी जाने वाली जातियों पर कबीर के उपदेशों का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके अनुयाई कबीर-पंथी कहलाए। आगे चलकर उनके शिष्यों ने उन्हें भगवान का अवतार मान लिया। 

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य अध्याय – भारत का मध्य-कालीन भक्ति आंदोलन

भगवद्भक्ति की अवधारणा

भक्ति आन्दोलन का पुनरुद्धार एवं उसके कारण

मध्य-युगीन भक्ति सम्प्रदाय

भक्तिआन्दोलन की प्रमुख धाराएँ

भक्ति आन्दोलन का प्रभाव

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

रामानुजाचार्य

माधवाचार्य

निम्बार्काचार्य

संत नामदेव

रामानंदाचार्य

वल्लभाचार्य

चैतन्य महाप्रभु

सूरदास

संत कबीर

भक्त रैदास

गुरु नानकदेव

मीरा बाई

तुलसीदास

संत तुकाराम

दादूदयाल

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source