Saturday, July 27, 2024
spot_img

कोट बेच कर भी पुस्तकें खरीदिए

मैं बीसवीं सदी के उस दौर में पैदा हुआ जिसमें पुस्तक पढ़ने वाले व्यक्ति को अत्यंत आदर की दृष्टि से देखा जाता था। उस दौर में बहुत से लोग पुस्तकें पढ़ा करते थे और उनमें लिखी बातों पर अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों से चर्चा किया करते थे। कुछ लोग नियमित रूप से पुस्तकालय जाया करते थे।


उस दौर में स्कूलों एवं कॉलेजों के अलावा भी बहुत से सरकारी कार्यालयों, धर्मशालाओं एवं क्लबों में छोटे-बड़े वाचनालय एवं पुस्तकालय हुआ करते थे। मौहल्लों में भी कुछ उत्साही समाजसेवी पुस्तकालय एवं वाचनालय चलाया करते थे। पुस्तकें कम थीं, साक्षरता की दर भी कम थी किंतु पुस्तकें पढ़ने वाले तथा पुस्तक पढ़ने की चाहत रखने वाले बहुत थे। अब रेडियो ने बड़ी तेजी से लोगों के घरों में घुसना आरम्भ कर दिया था।

To find more books, please click on image

बहुत सी पढ़ी-लिखी गृहणियां भी दुपहरी के खाली समय में कोई पुस्तक पढ़ा करती थीं। मेरी माँ अपने गांव के स्कूल में केवल पांचवी कक्षा तक पढ़ी थीं किंतु वे अस्सी साल की आयु होने तक पुस्तकें पढ़ती रहीं। मेरी दादी, नानी और ताई तीनों ने स्कूल का मुंह नहीं देखा था किंतु तीनों प्रतिदिन स्नान करके रामायण पढ़ा करती थीं।

यह देखकर आश्चर्य होता है कि विगत साठ सालों में पुस्तक आम आदमी की जिंदगी से बाहर हो गई है! अब लोग टेलिविजन देखते हैं, सोशियल मीडिया पर समय व्यतीत करते हैं, क्रिकेट का मैच देखते हैं, गृहणियां खाली समय में सास-बहू के सीरियल देखती हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय सूने पड़े हैं। क्लबों, धर्मशालाओं और मोहल्लों में अब पुस्तकालय नहीं होते। सारी जिंदगी जैसे सैलफोन और टेलिविजन में घुस गई है।

मनुष्य के जीवन से पुस्तकों का दूर हो जाना किसी समाज के लिए घातक है। पुस्तकें मनुष्य के लिए कितनी आवश्यक हैं, इस बात का अनुमान स्वामी विवेकानंद के एक कथन से लगाया जा सकता है। वे कहा करते थे कि मैं नर्क में भी रहना पसंद करूंगा यदि वहाँ अच्छी पुस्तकें हों। एमर्सन नामक एक पाश्चात्य दार्शनिक कहा करते थे कि पुस्तकों का स्नेह ईश्वर के राज्य में पहुँचने का विमान है।

सुप्रसिद्ध दार्शनिक सिसरो ने कहा है कि अच्छी पुस्तकों को घर में इकट्ठा करना मानो घर को भगवान का मंदिर बना लेना है। कार्लाईल ने तो यहाँ तक लिखा है कि जिन घरों में अच्छी किताबें नहीं वे घर जीवित शवों के रहने के कब्रिस्तान हैं। कैम्पिस नामक एक चिंतक का कहना था कि अपना कोट बेचकर भी अच्छी किताबें खरीदो। कोट के अभाव में शरीर को ठण्ड के कारण कष्ट होगा किंतु पुस्तकों के अभाव में आत्मा भूखी मर जाएगी!

वस्तुतः अच्छी पुस्तक किसी भी मनुष्य की ऐसी मित्र है जो प्रत्येक कदम पर मनुष्य का भला करती है तथा उसका मार्गदर्शन करती है। मैं कहता हूँ कि आप किसी भी बुरे समाज को कुछ अच्छी पुस्तकें दीजिए और बहुत कम अवधि में एक अच्छा समाज प्राप्त कर लीजिए।

भले ही आज भारतीय समाज में पुस्तकों के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा है, फिर भी बहुत से युवा हैं जो सोशियल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग अच्छी पुस्तकें पढ़ने के लिए करते हैं। यह अंधेरे में उजाले की किरण है जो पुस्तक प्रेम को कभी मरने नहीं देगी।

  • डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source