Saturday, July 27, 2024
spot_img

डॉ. मोहनलाल गुप्ताजी के उपन्यासों में सौन्दर्य दृष्टि

साहित्य-सृजन का मूल उद्देश्य सम्पूर्ण सृष्टि को सुंदर बनाना है। इसलिए हर युग के लेखक द्वारा साहित्य के माध्यम से सौन्दर्य का सृजन किया जाता है। इस ग्रंथ में डॉ. मोहनलाल गुप्ताजी के तीन उपन्यासों की ‘सौन्दर्य शास्त्र’ की दृष्टि से विवेचना की गई है। सौन्दर्य शास्त्र ‘दर्शन’ की वह शाखा है जिसके अंतर्गत कला, साहित्य और सौन्दर्य के अन्तरंग सम्बन्धों का विवेचन किया जाता है। इसे सौन्दर्य-मीमांसा, रस-मीमांसा एवं सौन्दर्य का सिद्धांत भी कहा जाता है। अर्थात् सौन्दर्य शास्त्र वह शास्त्र है जिसके अंतर्गत, साहित्य में निहित रहने वाले सौन्दर्य का तात्विक और मार्मिक विवेचन किया जाता है।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK ON IMAGE.

डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक काल के सफल उपन्यासकार, कहानीकार एवं लेखक हैं। उन्होंने विगत लगभग चालीस वर्षों में अपने शताधिक ग्रंथों, सहस्राधिक आलेखों एवं फुटकर रचनाओं के माध्यम से इस सृष्टि को सुंदर बनाने की साधना की है। गुप्ताजी द्वारा रचित साहित्य में उपन्यास, नाटक, कहानियाँ, काव्य संग्रह आदि साहित्यक विधाओं के ग्रंथ तो हैं ही, साथ ही वे भारत के जाने-माने इतिहासकार भी हैं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् के वर्षों में हुई नवीन शोधों से प्राप्त नवीन ऐतहासिक तथ्यों को आधार बनाकर भारत के इतिहास का पुनर्लेखन किया है। भारत की पुरातन सभ्यताओं, प्राचीन संस्कृतियों एवं पौराणिक साहित्य पर भी गुप्ताजी ने विपुल लेखनी चलाई है। उनके उपन्यास साहित्य में साहित्य एवं इतिहास का बहुत सुंदर समन्वय हुआ है।

प्रस्तुत ग्रंथ में गुप्ताजी के तीन उपन्यासों- ‘संघर्ष’, ‘चित्रकूट का चातक’ एवं ‘पासवान गुलाबराय’ का सौन्दर्य शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार के ग्रंथों के लेखन के लिए सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययनकर्त्ता को साहित्य की प्रकृति के क्रमबद्ध अध्ययन, साहित्य के विश्लेषण की दक्षता एवं तात्विक दृष्टि की तो आवश्यकता होती ही है, साथ ही उसे साहित्य के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं भारतीय चिंतन परम्परा की भी गहरी जानकारी होनी चाहिए।
इस ग्रंथ की मूर्धन्य लेखिका डॉ. लता शर्मा द्वारा ग्रंथ-लेखन में जिस प्रतिभा का परिचय दिया गया है, वह हर दृष्टि से स्तुत्य है। वे बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय, आगरा में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने इस विषय को वर्षों तक पढ़ा एवं पढ़ाया है और वे इस विषय की प्रखर आचार्य हैं।
सैद्धांतिक रूप से सौन्दर्य शास्त्र के अंतर्गत काव्य-सौन्दर्य (साहित्य-सौन्दर्य) का परीक्षण कर आधारभूत सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है। इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर काव्य (साहित्य) के विभिन्न अंगों का मूल्यांकन किया जाता है। इस दृष्टि से डॉ. लता शर्मा ने गुप्ताजी के उपन्यासों का बड़ी गइराई से विवेचन प्रस्तुत किया है।
इस प्रकार के सौन्दर्यशास्त्रीय विवेचन तब तक नहीं किए जा सकते जब तक कि अध्ययनकर्त्ता, साहित्यकार के दृष्टिकोण को न पकड़ पाए। डॉ. लता शर्मा ने गुप्ताजी के उपन्यासों का अध्ययन प्रस्तुत करते समय लेखक के दृष्टिकोण को बहुत अच्छी तरह से आत्मसात् किया है, अन्यथा इस प्रकार की श्रेष्ठ विवेचना संभव नहीं थी।
किसी साहित्यक रचना को समग्र रूप में परखने अथवा उसका मूल्यांकन करने की प्रक्रिया को ‘आलोचना’ अथवा ‘समालोचना’ भी कहा जाता है। इस दृष्टि से डॉ. लता शर्माजी का यह ग्रंथ गुप्ताजी के उपन्यासों पर समालोचना प्रस्तुत करता है। आधुनिक परिभाषाओं के अनुसार आलोचना ‘साहित्यकार’ और ‘पाठक’ के बीच की योजक कड़ी है। डॉ. लता शर्माजी ने इस ग्रंथ के माध्यम से यही कार्य किया है। कोई भी रचना अच्छी है या बुरी, यह निर्णय कर देना ही आलोचना नहीं है, अलोचना का वास्तविक उद्देश्य, रचना का प्रत्येक दृष्टि से मूल्यांकन कर पाठक के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। साथ ही पाठक की रुचि का परिष्कार करना भी आलोचक का धर्म है, ताकि पाठक की साहित्यक समझ का विकास हो। डॉ. लता शर्माजी ने इस ग्रंथ में आद्योपरांत इस धर्म का निर्वहन किया है।
साहित्य-सिद्धांत और समालोचना में चोली-दामन का साथ है। साहित्य-शास्त्र के ज्ञान से आलोचक को व्यावहारिक दृष्टि मिलती है। कुछ मौलिक सिद्धांत जैसे रस, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, ध्वनि, अनुकरण सिद्धांत, विरेचन सिद्धांत आदि का ज्ञान साहित्यकार, पाठक और अलोचक, तीनों के लिए उपयोगी होता है। यह सृजन के मूल्यांकन में काफी मदद पहुंचाता है।
मूल्यांकन में वैयक्तिक रुचियों या प्रभावों को स्थान नहीं मिलना चाहिए। आलोचक की व्यक्तिगत मान्यताएं कुछ भी हो सकती हैं किंतु साहित्यक कृति का मूल्यांकन व्यक्तिगत मान्यताओं पर न करके, सौन्दर्यशास्त्र के स्थापित मानदण्डों पर किया जाना चाहिए। डॉ. लता शर्माजी का यह ग्रंथ इन समस्त कसौटियों पर खरा उतरता है।


इस पुस्तक का लेखन वर्ष 2016 में पूर्ण कर लिया गया था किंतु इसके प्रकाशन में लगभग सात वर्ष का विलम्ब हो गया। इसके कई कारण रहे जिनमें से कोरोना जैसी परिस्थितियां भी किसी सीमा तक जिम्मेदार रहीं। इस बीच गुप्ताजी के कुछ और उपन्यास भी आए हैं किंतु इस ग्रंथ में केवल तीन उपन्यासों की विवेचना को ही सम्मिलित किया जा सका है।
श्रमसाध्यम कार्य होने से इस कार्य में विपुल ऊर्जा एवं समय की आवश्यकता होती है। डॉ. लता शर्माजी ने यह चुनौती स्वीकार की तथा इस कार्य को पूर्ण किया। इस श्रमसाध्य कार्य के लिए मैं डॉ. लता शर्माजी के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ, साथ ही ग्रंथ के प्रकाशन में हुए विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थना भी करती हूँ।
मैं आशा करती हूँ कि यह ग्रंथ गुप्ताजी के उपन्यास-साहित्य में समाहित सौन्दर्य-दृष्टि को समाज के समक्ष रखने में सफल होगा। शुभम्

  • मधुबाला गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source