अकबर के दरबार में यह कहावत चल पड़ी कि बदायूं के इस लड़के ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी (Haji Ibrahim Sirhindi) का सिर फोड़ दिया है।
ई.1574 (AD 1574) में मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Abdul Qadir Badauni) अपने पुराने मालिक बदायूं (Badaun) के सूबेदार हुसैन खाँ (Husain Khan) की नौकरी छोड़कर आगरा (Agra) आया तथा अकबर (Akbar) के दरबार (Mughal Court) में नौकरी पाने में सफल हो गया।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि शहंशाह अकबर (Emperor Akbar) ने मुझे यह अधिकार दिया कि मैं शहंशाह के दरबार में मुल्ला लोग जो कुछ भी बोलते हैं, उनसे बहस करूं। बदायूंनी लिखता है कि ये मुल्ले अपने ज्ञान की गहराई की डींग हांका करते थे, अपनी उपस्थिति में किसी को कुछ नहीं गिनते थे तथा स्वयं को ही हर विषय में अंतिम निर्णायक मानते थे। मैंने शीघ्र ही उन सबको काबू में कर लिया।
जब मुल्ला बदायूंनी की अकबर के दरबार में धाक जम गई तो उन दिनों अकबर के दरबार में यह कहावत चल पड़ी कि बदायूं के इस लड़के ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी (Haji Ibrahim Sirhindi) का सिर फोड़ दिया है।
इस कहावत से स्पष्ट होता है कि मुल्ला बदायूंनी के आने से पहले अकबर के दरबार में हाजी इब्राहीम सरहिंदी को सबसे विद्वान व्यक्ति माना जाता था किंतु अब वह प्रतिष्ठा मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी को प्राप्त हो गई थी।
पाठकों को स्मरण होगा कि जिस समय अकबर गुजरात अभियान (Gujarat Campaign) में लगा हुआ था, उस समय अकबर ने खानेजहाँ हुसैन कुली खाँ (Khan-e-Jahan Husain Quli Khan) को कांगड़ा (Kangra) के अभियान पर भेजा था।
ऐतिहासिक घटनाक्रम को गुजरात पर केन्द्रित किए रखने के लिए हमने कांगड़ा अभियान (Kangra Expedition) की घटनाओं को उस समय छोड़ दिया था किंतु अब इतिहास की धारा को हुसैन कली खाँ के कांगड़ा अभियान की ओर ले चलते हैं जो ई.1572-73 (AD 1572-73) में हुआ था।
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कांगड़ा की घाटी (Kangra Valley) एक सुरम्य एवं प्रसिद्ध स्थान है जहाँ सदियों से हिन्दू राजा (Hindu Kings) शासन करते आए थे। इस क्षेत्र में प्राचीन काल में हिन्दूशाही राजाओं (Hindu Shahi Kings) का तथा मध्यकाल में कटोच राजपूतों (Katoch Rajputs) का बोलबाला था।
कांगड़ा घाटी में नगरकोट (Nagarkot) नामक अत्यंत प्राचीन एवं विख्यात कस्बा है जहाँ वज्रेश्वरी देवी (Vajreshwari Devi Temple) का अति प्राचीन तांत्रिक शक्तिपीठ (Shakti Peeth) स्थित है। महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni), मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughlaq) तथा फीरोजशाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq) इस शक्तिपीठ को पहले भी तोड़ चुके थे किंतु भारत के हिन्दू अवसर पाते ही इस मंदिर को फिर से बना लेते थे।
महमूद गजनवी ने ई.1009 (AD 1009) में इस मंदिर को लूटा था। उसने इस मंदिर से प्राप्त सोने-चांदी के आभूषण (Gold & Silver Ornaments), बर्तन एवं सिक्के (Coins), तथा हीरे-मोतियों (Diamonds & Pearls) को अफगानिस्तान (Afghanistan) ले जाने के लिए जितने भी हाथी (Elephants), घोड़े (Horses), ऊंट (Camels) एवं खच्चर (Mules) मिल सकते थे, उन पर लाद लिया था।
अकबर के दरबार में यह कहावत चल पड़ी कि बदायूं के इस लड़के ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी (Haji Ibrahim Sirhindi) का सिर फोड़ दिया है। ई.1574 (AD 1574) में मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Abdul Qadir Badauni) अपने पुराने मालिक बदायूं (Badaun) के सूबेदार हुसैन खाँ (Husain Khan) की नौकरी छोड़कर आगरा (Agra) आया तथा अकबर (Akbar) के दरबार (Mughal Court) में नौकरी पाने में सफल हो गया।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि शहंशाह अकबर (Emperor Akbar) ने मुझे यह अधिकार दिया कि मैं शहंशाह के दरबार में मुल्ला लोग जो कुछ भी बोलते हैं, उनसे बहस करूं। बदायूंनी लिखता है कि ये मुल्ले अपने ज्ञान की गहराई की डींग हांका करते थे, अपनी उपस्थिति में किसी को कुछ नहीं गिनते थे तथा स्वयं को ही हर विषय में अंतिम निर्णायक मानते थे। मैंने शीघ्र ही उन सबको काबू में कर लिया।
जब मुल्ला बदायूंनी की अकबर के दरबार में धाक जम गई तो उन दिनों अकबर के दरबार में यह कहावत चल पड़ी कि बदायूं के इस लड़के ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी (Haji Ibrahim Sirhindi) का सिर फोड़ दिया है।
इस कहावत से स्पष्ट होता है कि मुल्ला बदायूंनी के आने से पहले अकबर के दरबार में हाजी इब्राहीम सरहिंदी को सबसे विद्वान व्यक्ति माना जाता था किंतु अब वह प्रतिष्ठा मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी को प्राप्त हो गई थी।
गुजरात अभियान (Gujarat Campaign) और कांगड़ा (Kangra Expedition)
पाठकों को स्मरण होगा कि जिस समय अकबर गुजरात अभियान (Akbar’s Gujarat Campaign) में लगा हुआ था, उस समय अकबर ने खानेजहाँ हुसैन कुली खाँ (Khan-e-Jahan Husain Quli Khan) को कांगड़ा (Kangra) के अभियान पर भेजा था।
ऐतिहासिक घटनाक्रम को गुजरात पर केन्द्रित किए रखने के लिए हमने कांगड़ा अभियान (Kangra Expedition) की घटनाओं को उस समय छोड़ दिया था किंतु अब इतिहास की धारा को हुसैन कली खाँ के कांगड़ा अभियान की ओर ले चलते हैं जो ई.1572-73 (AD 1572-73) में हुआ था।
कांगड़ा घाटी (Kangra Valley)
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कांगड़ा की घाटी (Kangra Valley) एक सुरम्य एवं प्रसिद्ध स्थान है जहाँ सदियों से हिन्दू राजा (Hindu Kings) शासन करते आए थे। इस क्षेत्र में प्राचीन काल में हिन्दूशाही राजाओं (Hindu Shahi Kings) का तथा मध्यकाल में कटोच राजपूतों (Katoch Rajputs) का बोलबाला था।
कांगड़ा घाटी में नगरकोट (Nagarkot) नामक अत्यंत प्राचीन एवं विख्यात कस्बा है जहाँ वज्रेश्वरी देवी (Vajreshwari Devi Temple) का अति प्राचीन तांत्रिक शक्तिपीठ (Shakti Peeth) स्थित है। महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni), मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tughlaq) तथा फीरोजशाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq) इस शक्तिपीठ को पहले भी तोड़ चुके थे किंतु भारत के हिन्दू अवसर पाते ही इस मंदिर को फिर से बना लेते थे।
महमूद गजनवी का आक्रमण (Mahmud of Ghazni’s Invasion)
महमूद गजनवी ने ई.1009 (AD 1009) में इस मंदिर को लूटा था। उसने इस मंदिर से प्राप्त सोने-चांदी के आभूषण (Gold & Silver Ornaments), बर्तन एवं सिक्के (Coins), तथा हीरे-मोतियों (Diamonds & Pearls) को अफगानिस्तान (Afghanistan) ले जाने के लिए जितने भी हाथी (Elephants), घोड़े (Horses), ऊंट (Camels) एवं खच्चर (Mules) मिल सकते थे, उन पर लाद लिया था।
अकबर काल में नगरकोट (Nagarkot under Akbar)
अकबर के शासनकाल (Akbar’s Reign) में राजा जयचंद (Raja Jayachand) नगरकोट का राजा था।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने अपनी पुस्तक मुंतखब-उत-तवारीख (Muntakhab-ut-Tawarikh) में लिखा है कि नगरकोट के राजा जयचंद से अकबर का मन मैला हो गया जो कि अकबर के दरबार का कर्मचारी था। इसलिए अकबर ने राजा बीरबल (Birbal) को नगरकोट जागीर के रूप में दिया।
राजा जयचंद को बंदी बना लिया गया तथा लाहौर (Lahore) के शासक हुसैन कुली खाँ को आदेश भेजा गया कि वह नगरकोट पर कब्जा करके उसे बीरबल को सौंप दे।
युद्ध और मंदिर विध्वंस (War and Temple Destruction)
बदायूंनी लिखता है कि शहर के बाहर का मंदिर पहले लिया गया। इस मंदिर में लाखों-लाख आदमी या शायद करोड़ों-करोड़ आदमी एक निश्चित अवधि में एकत्रित होते हैं। गधे (Donkeys) भारी बोझ, सोने-चांदी के सिक्के (Gold & Silver Coins), सामान व्यापार की वस्तुएं (Trade Goods), अन्य बहुमूल्य वस्तुएं (Precious Items), अनगिनत भंडार वहाँ चढ़ावे के रूप में लाते हैं।
इस समय तक बहुत से पहाड़ी लोग मुगलों (Mughals) की तलवार का ग्रास बन चुके थे। सोने का छत्र (Golden Canopy) जो मंदिर के शिखर (Temple Shikhara) पर चढ़ा हुआ था, तीरों की मार से छलनी कर दिया गया।
इस मंदिर की गौशाला (Cowshed) में 200 काली गायें (Black Cows) थीं जिन्हें हिन्दू बहुत सम्मान देते हैं और पूजते हैं। हुसैन कुली खाँ के सैनिकों ने उन गायों को मार दिया।
निजामुद्दीन अहमद का वर्णन (Nizamuddin Ahmad’s Account)
अकबर के एक अन्य समकालीन लेखक निजामुद्दीन अहमद (Nizamuddin Ahmad) ने अपनी पुस्तक तबकात-ए-अकबरी (Tabakat-i-Akbari) में अकबर की सेनाओं द्वारा नगरकोट में की गई हिंसा का उल्लेख किया है।
वह लिखता है कि भूण की गढ़ी में महामाया का मंदिर (Mahāmāyā Temple) है, उसे मुस्लिम सेनाओं ने अपने अधिकार में ले लिया। इस पर राजपूतों (Rajputs) का एक शहीदी जत्था (Martyr Band) मुगल सेना पर चढ़ बैठा जिसे शीघ्र ही काट डाला गया।
निष्कर्ष (Conclusion)
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि बादशाह के घनिष्ट मित्र बीरबल (Birbal) को इस इलाके में एक जागीर दी गई किंतु कुछ ही समय बाद मिर्जा इब्रहीम (Mirza Ibrahim) नामक तैमूरी शहजादे (Timurid Prince) ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया।
इस पर हुसैन कुली खाँ को यह इलाका छोड़ना पड़ा तथा बीरबल को इस जागीर के बदले में पांच मन सोना (Gold Revenue) देकर संतुष्ट किया गया। संभवतः यह वही सोना था जो हुसैन कुली खाँ द्वारा नगरकोट क्षेत्र के लोगों से छीना गया था।
✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से



