Wednesday, September 17, 2025
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जहाँगीर का चरित्र एवं कार्यों का मूल्यांकन

इतिहासकारों के लिए जहाँगीर का चरित्र किसी पहेली से कम नहीं है। जब तक अकबर जीवित रहा, जहाँगीर ने कई बार अपने पिता से विद्रोह किया तथा अपनी पत्नी मानबाई और अपने पिता के मित्र अबुल फजल की हत्या जैसे गंभीर अपराध किए किंतु जब वह बादशाह बना तो वह न्यायप्रिय शासक एवं कलाओं का संरक्षक बन गया।

जहाँगीर का चरित्र

व्यक्ति के रूप में

जहाँगीर की चारित्रक दुर्बलताएँ उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर हावी थीं। उसे मदिरापान तथा अफीम के सेवन का दुर्व्यसन था, जिसका उसके स्वास्थ्य तथा उसकी मानसिक क्षमताओं पर बुरा प्रभाव पड़ा। वह चाटुकारों तथा अपने सम्बन्धियों के प्रभाव में सरलता से आ जाता था, जिससे वह अपने विवेक से काम नहीं ले पाता था।

इस कारण जहाँगीर का चरित्र उसे विलासी, अवज्ञाकारी एवं क्रोधी व्यक्ति सिद्ध करती हैं। उसने कभी भी अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया तथा शराब के नशे में अपनी बेगम मानबाई को कोड़ों से पीट-पीटकर जान से मार डाला। जहाँगीर ने अपने पुत्र खुसरो के प्रति भी अत्यंत क्रूरता दिखाई।

उसे अंधा बनाकर कारागृह में डाल दिया तथा बाद में उसे निरीह अवस्था में खुर्रम को सौंप दिया जिसने उसकी हत्या करवा दी। जहाँगीर ने शेरखाँ की विधवा नूरजहाँ से विवाह करके अपनी कामांधता का परिचय दिया तथा उसके रूप पाश में बंधकर राज्य का सारा भार उस पर छोड़ दिया।

शासक के रूप में

जहाँगीर को अपने पिता से सुव्यवस्थित, सुसंगठित एवं विशाल सल्तनत मिली थी। इसके निर्माण के लिये उसे जंग के मैदान में नहीं उतरना पड़ा था। न ही नये सिरे से प्रशासनिक व्यवस्थाएँ करनी पड़ी थीं। अकबर ने सल्तनत की सुरक्षा के लिये विशाल सैनिक व्यवस्था कर दी थी जिसके बल पर जहाँगीर अपने पिता से प्राप्त सल्तनत पर मृत्युपर्यंत शासन करता रहा।

जहाँगीर में अकबर जैसी कार्य-कुशलता और नीति-निपुणता नहीं थी इस कारण वह शासन में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं कर पाया। जहाँगीर की विलासिता तथा अकर्मण्यता के कारण शासन का वास्तविक संचालन नूरजहाँ तथा उसके परिवार के हाथ में चला गया जो सल्तनत के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ।

इससे गुटबन्दी का सूत्रपात हुआ जो उसके शासन में अन्त तक चलती रही। सल्तनत में षड्यन्त्र तथा कुचक्र का प्रकोप बढ़ जाने से प्रान्तीय शासक मनमानी करने लगे। इस कारण जन-साधारण की सुरक्षा खेतरे में पड़ गई।

विजेता के रूप में

बादशाह बनने से पहले एवं बादशाह बनने के बाद जहाँगीर ने कोई उल्लेखनीय विजय प्राप्त नहीं की। उसने मेवाड़ को झुकने पर विवश अवश्य किया किंतु मलिक अम्बर के विरुद्ध असफल होने से साम्राज्य की सैनिक प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा। जहाँगीर नये क्षेत्र नहीं जीत सका। कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। इस प्रकार एक भी ऐसी विजय नहीं है जो जहाँगीर को विजेता सिद्ध कर सके।

न्यायकर्ता के रूप में

अनेक समकालीन इतिहासकारों ने जहाँगीर को असफल किंतु उच्च कोटि का न्यायप्रिय शासक बताया है। विचारणीय है कि उच्च कोटि का विलासी व्यक्ति जो अपने पिता, पुत्र एवं पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर सका हो, उच्च कोटि का न्यायप्रिय शासक कैसे हो सकता है ?

मद्यपान का व्यसनी, राज्यकार्य से विमुख, युद्ध के मैदान से विमुख बादशाह, न्यायप्रिय कैसे हो सकता है ? फिर भी समकालीन दरबार मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखी गई बातों का अनुकरण करके बहुत से आधुनिक इतिहासकार स्वयं को धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने की लालसा में जहाँगीर को उसकी न्याय-प्रियता के लिये याद करते हैं तथा जहाँगीर का बचाव करते हुए तर्क देते हैं कि अपनी न्याय-शीलता के कारण ही वह कभी-कभी अपराधियों को कठोर दण्ड दे देता था।

इन इतिहासकारों के अनुसार यद्यपि जहाँगीर का स्वभाव बड़ा ही उदार, दयालु तथा क्षमाशील था परन्तु वह कभी-कभी बड़ा क्रूर, निर्दयी तथा हृदयहीन हो जाता था। इसी से कुछ विद्वानों ने उसे कोमलता तथा क्रूरता का सम्मिश्रण कहा है। वस्तुतः जहाँगीर में कोमलता जैसा कोई गुण विद्यमान हो, ऐसा उसके जीवन चरित्र के किसी भी हिस्से में दिखाई नहीं देता।

उसने अपनी पत्नी मानबाई की हत्या की, अबुल फजल की हत्या की, पिता अकबर के प्रति जीवन भर अवज्ञा का प्रदर्शन किया तथा विद्रोह करके राज्य प्राप्त करने का प्रयास किया। उसने अपने पुत्र खुसरो को अंधा बनाकर जेल में डाल दिया, ऐसा व्यक्ति कोमल और न्यायप्रिय कैसे हो सकता है ?

धर्म-सहिष्णु शासक के रूप में

जहाँगीर का झुकाव सूफी धर्म की ओर अधिक था। वह अपने पिता अकबर से कम और अपने पुत्र खुर्रम से अधिक धर्म-सहिष्णु था। यद्यपि वह भी अकबर की भांति दीपावली, शिवरात्रि, रक्षाबन्धन आदि हिन्दू त्यौहार मनाता था तथापि उसके शासन काल में धार्मिक अत्याचारों का फिर से बीजारोपण किया गया।

उसके शासन काल में गुरु अर्जुनदेव की बेरहमी से हत्या की गई जिससे सिक्ख समुदाय सदैव के लिए मुगल सल्तनत का शत्रु बन गया। जहाँगीर के आदेश से और उसकी उपस्थिति में काँगड़ा में एक बैल का वध किया गया, जिससे हिन्दुओं की भावना को बहुत ठेस पहुँची। उसके शासन काल के आठवें वर्ष में उसी की आज्ञा से अजमेर में पुष्कर के हिन्दू मन्दिरों को नष्ट किया गया। आगे चलकर शाहजहाँ के शासन काल में इस धार्मिक अत्याचार ने और अधिक उग्र रूप धारण कर लिया।

साहित्य संरक्षक के रूप में

जहाँगीर साहित्यकारों तथा कलाकारों का आश्रयदाता था। उसे स्वयं भी फारसी का अच्छा ज्ञान था और वह फारसी भाषा में कविताएँ लिखता था। हिन्दी, कविता से उसे बड़ा प्रेम था। वह हिन्दी कवियों को पुरस्कार देता था। उसकी आत्म-कथा तुजके जहाँगीरी उसकी अनुपम कृति मानी जाती है। इस ग्रन्थ से उसकी वैज्ञानिक जिज्ञासा तथा उसके प्रकृति-प्रेम का परिचय मिलता है। जहाँगीर की आत्मकथा में जहाँगीर के गुणों तथा अवगुणों दोनों का परिचय मिलता है।

भवन एवं उपवन निर्माता के रूप में

यद्यपि जहाँगीर के शासन काल में बहुत कम इमारतें बनी थीं परन्तु इस काल में उपवन लगवाने की नई शैली विकसित हुई। काश्मीर में जहाँगीर द्वारा बनवाया हुआ शालीमार बाग और आसफखाँ का बनवाया हुआ निशात बाग आज भी प्रसिद्ध हैं। आगरा में यमुना नदी के तट पर श्वेत संगमरमर का नूरजहाँ द्वारा बनवाया हुआ एतिमादुद्दौला का मकबरा दर्शनीय है।

आगरा के बाहर सिकन्दरा में निर्मित अकबर का मकबरा, अकबर ने बनवाना आरम्भ करवाया था, उसे जहाँगीर ने पूरा करवाया। लाहौर के निकट जहाँगीर का अपना चबूतरा जिसे नूरजहाँ ने बनवाया था और दिल्ली में बना हुआ खानखाना का मकबरा जहाँगीर के काल की अन्य इमारतें हैं।

चित्रकला के संरक्षक के रूप में

जहाँगीर के शासन काल में चित्रकला की बड़ी उन्नति हुई। अबुल हसन तथा मन्सूरी उसके दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जहाँगीर को प्रकृति से बहुत प्रेम था इसलिये उसके काल में चित्रकारों ने पक्षियों, पशुओं तथा फूल-पत्तियों का अच्छा चित्रण किया। उसकी मुद्राओं पर भेड़ों, साँड़ों आदि के सुन्दर चित्र मिलते हैं।

इतिहासकारों की दृष्टि में जहाँगीर का चरित्र

जफर ने जहाँगीर के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए लिखा है- ‘जहाँगीर एक महान् शासक था जिसमें बहुत बड़ी कार्य-क्षमता थी। यदि नूरजहाँ के गुट से वह प्रभावित न हुआ होता तो अपने पिता के ही समान कुशल शासक सिद्ध हुआ होता। उसके शासन का गौरव दो महान् बादशाहों- अकबर महान् तथा शाहजहाँ शानदार के बीच में आने से मंद पड़ गया है।’

डॉ. बेनी प्रसाद ने भी जहाँगीर के बारे में इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए लिखा है- ‘उसकी ख्याति उसके पिता के महान् गौरव और उसके पुत्र की चमत्कार पूर्ण शान के सामने मन्द पड़ गई है।’

निष्कर्ष

इसमें कोई संदेह नहीं कि जहाँगीर की चारित्रिक दुर्बलताएँ उस पर हावी थीं जिनके कारण न वह अपने परिवार वालों के साथ न्याय कर सका, न नये राज्य जीत सका, न शासन में नई व्यवस्थायें आरम्भ कर सका किंतु दूसरी ओर यह भी सत्य है कि उसके शासन काल में अकबर द्वारा स्थापित शासन व्यवस्था बहुत अंशों में उसी प्रकार चलती रही।

कंदहार के अतिरिक्त और कोई क्षेत्र जहाँगीर के हाथ से नहीं निकला। मलिक अम्बर के अतिरिक्त और किसी से उसकी सेनाओं को हार का मुख नहीं देखना पड़ा। जहाँगीर धर्म-सहिष्णु नहीं था किंतु कुछ घटनाओं को छोड़कर उसने हिन्दुओं पर वैसे अत्याचार नहीं किये जैसे उसके पूर्ववर्ती दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासकों के काल में अथवा पश्चवर्ती औरंगजेब के काल में हुए।

जहाँगीर का चरित्र विभिन्नताओं का मिश्रण था। स्मिथ ने भी जहाँगीर को विभिन्नताओं का सम्मिश्रण बतलाते हुए उचित ही  लिखा है- ‘जहाँगीर में दयालुता तथा क्रूरता, न्याय-प्रियता तथा झक्कीपन, सभ्यता तथा निर्बलता, बुद्धिमत्ता तथा बचपने का अद्भुत मिश्रण था।’

जहाँगीर की मृत्यु    

1627 ई. की ग्रीष्म ऋतु में जहाँगीर का स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। वह लाहौर की गर्मी सहन नहीं कर सका। अतः वह काश्मीर चला गया परन्तु वहाँ भी उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। जब वह काश्मीर से लाहौर लौट रहा था। तब उसकी दशा शोचनीय हो गई। 29 अक्टूबर 1627 को 60 वर्ष की आयु में उसका निधन हो गया। नूरजहाँ उसके मृत शरीर को लाहौर ले गई और वहीं पर दिलकुशा नामक बगीचे में दफना दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल आलेख – नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर एवं नूरजहाँ

नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर

नूरजहाँ का उत्थान

खुर्रम का विद्रोह

महाबत खाँ का विद्रोह

जहाँगीर का चरित्र एवं कर्यों का मूल्यांकन

नूरजहाँ का चरित्र एवं कार्यों का मूल्यांकन

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