मुगलकालीन साहित्य मुगल सल्तनत की पूर्ववर्ती तुर्की सल्तनत की अपेक्षा बहुत अधिक समृद्व था। इसका सबसे बड़ा कारण मुगलों की संस्कृति का बर्बर तुर्कों की संस्कृति से अलग होना था।
मुगलकालीन साहित्य
मुगलों के आने से पहले एवं मुगलों के काल में भी शाही दरबार की भाषा फारसी थी। राज्याधिकारियों को अनिवार्य रूप से फारसी पढ़नी पड़ती थी। मुगल काल में फारसी साहित्य को और बढ़ावा मिला। अधिकांश मुगल बादशाह विद्या प्रेमी थे।
तुर्की एवं फारसी साहित्य
बाबर तुर्की और फारसी का अच्छा कवि और लेखक था। उसने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी अपनी मातृभाषा तुर्की में लिखी थी। उसके उत्तराधिकारियों के काल में तुजुक-ए-बाबरी का फारसी में अनुवाद हुआ। इस ग्रन्थ से फारसी की नई काव्य शैली विकसित हुई जिसे मुबायान कहते हैं।
हुमायूँ भी तुर्की और फारसी के अलावा, दर्शन, ज्योतिषी और गणित का ज्ञाता था। उसके दरबार में ख्वादामीर और बयाजित जैसे इतिहासकार रहते थे। उसकी बहिन गुलबदन बेगम ने अकबर के शासनकाल में हुमायूँनामा की रचना की। अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों के काल में भी फारसी साहित्य का विपुल सृजन हुआ।
मुगल काल में फारसी के मौलिक ग्रन्थों की रचना के साथ-साथ अनुवाद विभाग की भी स्थापना हुई जिसमें संस्कृत, अरबी, तुर्की और ग्रीक भाषाओं के अनेक सुप्रसिद्ध ग्रन्थों का फारसी भाषा में अनुवाद हुआ।
संस्कृत साहित्य
बाबर तथा हुमायूँ ने संस्कृत साहित्य के संरक्षण में रुचि नहीं दिखाई। फिर भी उनके शासन काल में भारतीय विद्वानों द्वारा निजी रूप से संस्कृत साहित्य का सृजन किया गया। अकबर, जहाँगीर तथा शाहजहाँ ने संस्कृत के विद्वानों को राजकीय संरक्षण देकर संस्कृत साहित्य को कुछ प्रोत्साहन दिया किन्तु औरंगजेब के काल में संस्कृत विद्वानों का मुगल दरबार में फिर से सम्मान बन्द हो गया।
हिन्दी साहित्य
मुगलों के अभ्युदय के बाद साहित्यिक भाषा के रूप में हिन्दी का विकास तेजी से हुआ। इस कारण मुगलकाल हिन्दी काव्य का स्वर्ण युग बन गया। 1532 ई. के आस-पास मंझन ने मधुमालती की रचना की, जो अपूर्ण ग्रन्थ होते हुए भी हिन्दी की श्रेष्ठ कृतियों में गिना जाता है।
1540 ई. के आस-पास मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत नामक महाकाव्य की रचना की, जो रूपक शैली में लिखा गया है। इसमें मेवाड़ की रानी पद्मिनी की कथा है। यद्यपि इन विद्वानों को राज्याश्रय प्राप्त नहीं था, फिर भी उन्होंने हिन्दी साहित्य जगत को अमूल्य रत्न प्रदान किये। अकबर के समय में धार्मिक सहिष्णुता होने के कारण हिन्दी साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ।
देशी भाषाओं का साहित्य
मुगल काल में देश के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली विविध देशी भाषाओं एवं बोलियों का भी अच्छा विकास हुआ। राजस्थान के चारण कवियों ने डिंगल भाषा को समृद्ध बनाया। वैष्णव सम्प्रदाय ने तो अनेक देशी भाषाओं को समृद्ध बनाया। इस काल में रचा गया पिंगल अर्थात् ब्रज भाषा का साहित्य आज तक किसी भी भाषा में रचा गया सर्वोत्कृष्ट साहित्य है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुगल काल में, विशेषकर अकबर से लेकर शाहजहाँ के काल में, भारत में कला, स्थापत्य एवं साहित्य का यथेष्ट विकास हुआ। मुगल शासकों की उदार नीतियों के कारण विविध प्रकार की कलाओं एवं साहित्य को पर्याप्त संरक्षण मिला, जिससे भारतीय कला और साहित्य ने नई ऊँचाइयां अर्जित कीं।