भारत की मुस्लिम चित्रकला को दो भागों में बांटा जा सकता है- दिल्ली सल्तनत कालीन मुस्लिम चित्रकला तथा मुगल सल्तनत कालीन मुस्लिम चित्रकला। निश्चित रूप से भारत की मुस्लिम चित्रकला पर हिन्दू शैलियों का भी प्रभाव है।
दिल्ली-सल्तनत कालीन मुस्लिम चित्रकला
मूर्ति-पूजा करना और मनुष्यों के चित्र एवं मूर्तियाँ बनाना इस्लाम में वर्जित है। क्योंकि ऐसा करते समय मूर्तिकार कल्पना करने लगता है कि वह अपनी चित्रित वस्तुओं को जीवन प्रदान कर रहा है। इस प्रकार वह अल्लाह से समता करने लगता है। जबकि जीवन प्रदान करने वाला एकमात्र अल्लाह है। इस कारण मध्य-कालीन मुसलमान जीव-जन्तुओं को चित्रित करना पाप समझते थे।
इसलिए दिल्ली के सुल्तान, मुसलमान अमीर और जनसाधारण चित्रकला से दूर रहते थे और मूर्तिकारों एवं चित्रकारों को संरक्षण नहीं देते थे। फिर भी सल्तनतकाल में अपवाद स्वरूप कुछ चित्र बने जिन पर ईरानी प्रभाव है।
सिकन्दर लोदी ने अपने काल के किसी दक्ष चित्रकार से वल्लभाचार्यजी का चित्र अपने सामने बैठकर बनवाया। यह चित्र सिकन्दर लोदी के महल में हर समय लगा रहता था। बाद में जब मुगलों ने आगरा पर अधिकार किया तब यह चित्र मुगल बादशाहों के पास आ गया। मुगल बादशाह हुमायूँ ने इस चित्र की रक्षा की तथा इसे अपने महल में लगा लिया।
जब शेरशाह सूरी ने हूमायूँ को भारत से भगा दिया तब भी वल्लभाचार्यजी का यह चित्र सुल्तान के महलों में सुरक्षित रहा। जब हुमायूँ लौटकर आया तब भी यह चित्र सुरक्षित था। अकबर, जहाँगीर तथा शाहजहां ने भी इस चित्र को संभाल कर रखा। शाहजहाँ के काल में जब किशनगढ़ का राजा रूपसिंह बलख और काबुल विजय के बाद आगरा आया तब उसने यह चित्र अपनी विजय के पुरस्कार के रूप में शाहजहाँ से मांग लिया।
इस प्रकार यह चित्र आज भी किशनगढ़ में सुरक्षित है। इस घटना से यह कहा जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत में सिकंदर लोदी के काल से ही चित्रकला को पुनः प्रतिष्ठा मिलने लगी थी जो मुगलों के समय भी तब तक जारी रही जब तक कि औरंगजेब मुगलों के तख्त पर नहीं बैठ गया।
मुगल कालीन मुस्लिम चित्रकला
मुगल साम्राज्य की स्थापना के साथ ही मुस्लिम चित्रकला में नवजीवन आ गया। मुगल बादशाह चित्रकला के महान् प्रेमी थे। हेरात में बहजाद नामक चित्रकार ने चित्रकला की एक नई शैली आरम्भ की जो चीनी कला का प्रान्तीय रूप था और इस पर भारतीय, बौद्ध, ईरानी, बैक्ट्रियाई और मंगोलियन तत्त्वों का प्रभाव था। इसे बहजाद कला कहा जाता था। फारस के तैमूरवंशी राजाओं ने इसे राजकीय सहायता दी।
बाबर के काल में मुस्लिम चित्रकला
बाबर जब हेरात में आया, तब उसका बहजाद की मुस्लिम चित्रकला से परिचय हुआ। बाबर ने इस चित्रशैली में अनेक हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ चित्रित करवाईं तथा इस कला को अपने साथ भारत ले आया।
हुमायूँ के काल में मुस्लिम चित्रकला
हुमायूँ भी चित्रकला प्रेमी था। उसका फारस के उच्चकोटि के चित्रकारों से अच्छा परिचय था। इनमें से एक हेरात का प्रसिद्ध चित्रकार बहजाद का शिष्य मीर सैय्यद अली था और दूसरा ख्वाजा अब्दुस समद था। हुमायूँ इन दोनों को अपने साथ भारत ले आया। अब्दुस्समद द्वारा तैयार किए जाने वाले चित्रों में कुछ चित्र जहाँगीर द्वारा संकलित ‘गुलशन चित्रावली’ में संकलित हैं। ‘हम्जनामा’, जिसे ‘दास्ताने अमीर हम्जा’ भी कहते हैं, मुगल चित्रकला शैली में चित्रित सबसे महत्वपूर्ण चित्र संग्रह है।
‘हम्जनामा’ मीर सैय्यद अली एवं अब्दुस्समद के नेतृत्व में देश के विभिन्न भागों से बुलाए गए लगभग 100 चित्रकारों के समूह द्वारा तैयार किया गया जिसे पूरा करने में लगभग पन्द्रह वर्ष लगे। हम्जनामा में लगभग 1400 पृष्ठों को चित्रित किया गया। हुमायूँ तथा अकबर ने ईरानी कलाकारों से चित्रकला का कुछ ज्ञान प्राप्त किया। इस काल में अधिकांश चित्र सूती-वस्त्रों पर बनाए जाते थे।
इन चित्रों में ईरानी, भारतीय तथा यूरोपीयन शैलियों का सम्मिश्रण है किन्तु ईरानी शैली की प्रधानता होने के कारण इसे ईरानी कलम कहा गया। इस शैली को मुगल काल की प्रारम्भिक चित्रकला शैली कहा जा सकता है।
अकबर के काल में मुस्लिम चित्रकला
अकबर के उदारवादी दृष्टिकोण के कारण अकबर के शासनकाल में मुस्लिम चित्रकला की नई शैली विकसित हुई जो ईरानी और भारतीय शैली के सर्वोत्तम तत्त्वों का सम्मिश्रण थी। इस नवीन शैली में विदेशी तत्त्व भारतीय शैली में इस तरह घुल-मिल गये कि दोनों के पृथक् अस्तित्त्व का पत लगा पाना असम्भव हो गया और वह बिल्कुल भारतीय हो गई। अकबर ने चित्रकारी हेतु एक अलग विभाग स्थापित किया।
अबुल फजल ने आइने अकबरी में पन्द्रह प्रसिद्ध चित्रकारों का उल्लेख किया है जिनमें तेरह हिन्दू थे। दसवन्त, बसावन महेश, लाल मुकुन्द, सावलदास, अब्दुस्समद, सैय्यद अली आदि अकबर के दरबारी चित्रकार थे। रज्मनामा में दसवन्त के बनाए चित्र हैं।
मुगल चित्रकला के इतिहास में रज्मनामा को मील का पत्थर माना जाता है। दसवन्त के द्वारा बनाई गई अन्य कलाकृतियों में खानदाने-तैमूरिया और तूतीनामा शामिल हैं। बसावन अकबर के दरबार के मुख्य चित्रकारों में से एक था। बसावन को चित्रकला के सभी पक्षों में सिद्धहस्तता प्राप्त थी। एक कृशकाय घोड़े के साथ निर्जन क्षेत्र में भटकता हुआ मजनूं का चित्र बसावन की उत्कृष्ट कृति है।
जहाँगीर के काल में चित्रकला
जहाँगीर का शासनकाल मुस्लिम चित्रकला का स्वर्ण-काल था। जहाँगीर स्वयं अच्छा चित्रकार था। इस काल की चित्रकला में कई प्रयोग हुए। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुके जहाँगीरी में लिखा है कि कोई भी चित्र चाहे वह किसी जीवित चित्रकार द्वारा बनाया गया हो अथवा मृतक चित्रकार द्वारा, मैं चित्र को देखते ही बता सकता हूँ कि यह किसकी कृति है। यदि कोई चित्र विभिन्न चित्रकारों द्वारा बनाया गया है तो भी मैं उनके चेहरे अलग-अलग करके बता सकता हूँ कि कौन से अंग किस चित्रकार ने बनाएं हैं।
जहाँगीर ने हेरात के प्रसिद्ध चित्रकार आकारिजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रशाला की स्थापना की। जहाँगीर के शासनकाल में शिकार, युद्ध और दरबारी दृश्यों, आकृति-चित्रण, पशुओं व फूलों आदि के चित्रांकन में विशेष उन्नति हुई। उस्ताद मंसूर और अबुल हसन इस काल के दो बड़े नाम थे. मंसूर पक्षी-विशेषज्ञ चित्रकार था जबकि अबुल हसन व्यक्ति-चित्र बनाने में निपुण था।
जहाँगीर ने मंसूर को नादिर-उल्-सर तथा हसन को नादिर-उल-जमा की उपाधि दी। मंसूर की उत्कृष्ट कृतियों में साइबेरियाई सारस तथा बंगाल का अनोखा पुष्प सम्मिलित हैं। फारूखबेग, बिसनदास, दौलत एवं मनोहर भी जहाँगीर कालीन प्रमुख चित्रकार थे। जहाँगीर की मृत्यु के साथ ही मुगल चित्रकला का विकास रुक गया।
शाहजहाँ के काल में चित्रकला
शाहजहाँ को चित्रकला में विशेष रुचि नहीं थी तो भी उसने चित्रकला को संरक्षण प्रदान किया। फकीर उल्ला, मीर हाशिम, अनूप, चित्रा, मुहम्मद नादिर, हुनर एवं मुरार आदि शाहजहांकालीन प्रमुख चित्रकार थे।
औरंगजेब के काल में चित्रकला
औरंगजेब ने मुगल दरबार से चित्रकारों, संगीतज्ञों, कला-मर्मज्ञों आदि को निकाल दिया। इन कलाकारों ने राजस्थान और पंजाब के राजाओं के यहाँ आश्रय प्राप्त किया जिससे वहाँ नवीन चित्रकला शैलियों का विकास संभव हो सका।