दक्षिण भारत के शिया मुसलमान शासकों की कट्टरता के कारण विजयनगर राज्य का पतन हो गया। इन शिया राज्यों ने एक साथ मिलकर विजयनगर के हिन्दू राज्य पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर दिया।
विजयनगर राज्य के पतन के कारण
विजयनगर राज्य का इतिहास, पड़ौसी मुस्लिम राज्यों से संघर्ष का इतिहास है। इस संघर्ष में विजयनगर को अत्यधिक क्षति उठानी पड़ी और वह पतनोन्मुख हो चला। विजयनगर राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
(1.) मुस्लिम शासकों की कट्टरता
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना ऐसे काल में हुई थी जब चारों ओर मुस्लिम राज्यों की बहुलता थी। मुस्लिम शासक अपनी आंखों से किसी भी हिन्दू राज्य को पनपते हुए नहीं देख सकते थे। इस कारण न केवल बहमनी पड़ौसी राज्य अपितु मालवा एवं गुजरात के दूरस्थ मुस्लिम राज्य भी विजयनगर राज्य को अस्थिर करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे।
(2.) विजयनगर की समृद्धि
विजयनगर एक समृद्ध राज्य था। इस कारण पड़ौसी मुस्लिम राज्य उसकी सम्पदा का हरण करने के लिये प्रायः हर समय विजयनगर राज्य के गांवों में लूट पाट मचाते रहते थे। इस कारण विजयनगर राज्य के वीर सैनिक बड़ी संख्या में वीरगति को प्राप्त हो जाते थे।
(3.) सैनिक दुर्बलता
विजयनगर के हिन्दू राजाओं की सेनाएँ, मुसलमान शासकों की सेनाओं की तुलना में संगठित तथा रणकुशल नहीं थीं। विजयनगर के शासकों ने सैन्य प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था नहीं की थी। उन दिनों विजयनगर में अरबी घोड़ों का व्यापार उन्नत दशा में था फिर भी विजयनगर के राजाओं ने अपनी सेना में घोड़ों की अपेक्षा हाथियों को प्रमुखता दी।
हिन्दू राजा एवं सेनापति हाथियों पर बैठकर लड़ने में अधिक विश्वास करते थे परन्तु ये हाथी, मुस्लिम तीरन्दाजों तथा घुड़सवारों के सामने नहीं ठहर नहीं पाते थे और प्रायः पीछे मुड़कर अपने ही सैनिकों को रौंद डालते थे। मुसलमान सैनिकों के पास तोपखाना उपलब्ध था जिसकी सहायता से वे अपनी पराजय को विजय में बदल देते थे।
विजयनगर की सेना का संगठन सामन्तीय पद्धति पर आधारित था जिसमें राजा, अपने सामंतों की सेना पर निर्भर रहता था। सामंती सैनिकों की स्वामिभक्ति प्रायः संदिग्ध होती थी।
(4.) प्रान्तीय शासकों पर निर्भरता
विजयनगर राज्य के लिए प्रान्तीय शासकों पर निर्भरता भी अत्यन्त घातक सिद्ध हुई। प्रान्तीय शासकों को अत्यन्त व्यापक अधिकार प्राप्त थे और उनकी अपनी निजी सेनाएँ हुआ करती थीं। इससे केन्द्रीय शक्ति का निर्बल हो जाना स्वाभाविक था। दुर्बल तथा अयोग्य शासकों के शासन काल में प्रान्तीय शासक स्वतन्त्र होने के प्रयास करते थे जिससे राज्य दुर्बल हो जाता था।
(5.) विलासिता
विजयनगर की सम्पन्नता तथा धन की प्रचुरता के कारण लोग विलासी थे। उनमें कई तरह की बुराइयाँ उत्पन्न होने लगीं तथा उनमें युद्ध करने की इच्छा-शक्ति नहीं बची।
(6.) पुर्तगालियों का विजयनगर की राजनीति में हस्तक्षेप
विजयनगर के उदार शासकों ने अपने राज्य के पश्चिमी तट पर पर्तगालियों को बसने एवं व्यापार करने की अनुमति दे दी। कालान्तर में पुर्तगाली व्यापारी अधिक व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के लिये विजयनगर की आन्तरिक राजनीति में भाग लेने लगे जिसके परिणाम विजयनगर राज्य के लिये अच्छे नहीं हुए।
(7.) रायचूर दोआब की विजय
कृष्णदेवराय द्वारा रायचूर दोआब पर विजय प्राप्त करना विजयनगर के लिये घातक सिद्ध हुआ। रायचूर पर विजय प्राप्त कर लेने से हिन्दुओं का गर्व अत्यधिक बढ़ गया। दूसरी ओर बीजापुर के सुल्तान आलिशाह ने रायचूर में परास्त हो जाने के उपरान्त अन्य मुसलमान राज्यों को विजयनगर के विरुद्ध संगठित करना आरम्भ किया। दक्षिण के मुस्लिम राज्यों का संगठन विजयनगर के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ।
(8.) अच्युतराय की अयोग्यता
कृष्णदेवराय का उत्तराधिकारी अच्युतराय अयोग्य तथा निर्बल शासक था। सेवेल के अनुसार अच्युतराय के चरित्र तथा शासन की कुव्यवस्था ने राज्य का विनाश कर दिया और आक्रमणकारियों के लिए द्वार खोल दिये। उसके राजदरबार में कई दल बन गये। इस कारण अच्युतराय ने अपने ही वंश के शत्रु आदिलशाह को अपनी सहायता करने के लिए आमन्त्रित किया।
(9.) दक्षिण के सुल्तानों के झगड़ों में हस्तक्षेप
विजयनगर राज्य के पतन का तात्कालिक कारण यह था कि सदाशिव राय तथा उसके हठधर्मी मन्त्री रामराय ने दक्षिण के सुल्तानों के झगड़ों में हस्तक्षेप करना आरम्भ किया। सबसे पहले 1543 ई. में इन लोगों ने बीजापुर के विरुद्ध अहमदनगर तथा गोलकुण्डा के साथ एक संघ बनाया। इसके बाद 1558 ई. में अहमदनगर के विरुद्ध संघ बनाया और उस पर आक्रमण कर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। कालान्तर में विजयनगर स्वयम् इस प्रकार के संघ के आक्रमण का शिकार बन गया और छिन्न-भिन्न हो गया।
(10.) सदाशिव के निर्बल उत्तराधिकारी
तालीकोट के युद्ध के उपरान्त कोई ऐसा शासक न हुआ जो विजयनगर राज्य को नष्ट-भ्रष्ट होने से बचा सकता। इस युद्ध के उपरान्त रामराय के भाई तिरूमल्ल ने 1570 ई. तक सदाशिव के नाम पर विजयनगर के बचे हुए राज्य पर शासन किया। इसके बाद उसने तख्त छीन लिया और अपने नये राजवंश की स्थापना की।
इस वंश का सबसे अधिक प्रसिद्ध राजा बैंकट (प्रथम) था। उसने राज्य को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया परन्तु उसके उत्तराधिकारी अयोग्य तथा निर्बल निकले। इससे विजयनगर राज्य उत्तरोत्तर पतन की ओर अग्रसर होता गया। अन्त में उत्तर का बहुत सा भाग मुसलमानों ने दबा लिया और दक्षिण में मदुरा तथा तंजौर के नायकों ने विजयनगर राज्य के टुकड़ों से अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। इस प्रकार विजयनगर राज्य का अन्त हो गया।
मूल आलेख – विजयनगर राज्य
विजयनगर राज्य का पतन



 
                                    