शेरशाह के उत्तराधिकारी शेरशाह की तरह प्रतिभावान नहीं थे। उन्हें शेरशाह से जो साम्राज्य प्राप्त हुआ, वह लगातार कम होता हुआ नष्ट हो गया।
इस्लामशाह
शेरशाह ने अपने जीवन काल में ही अपने बड़े पुत्र आदिल खाँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया परन्तु शेरशाह की मृत्यु के उपरान्त अमीरों ने शेरशाह के छोटे पुत्र जलाल खाँ को सुल्तान बनाया जो 25 मई 1545 को इस्लामशाह के नाम से तख्त पर बैठा।
उसने सबसे पहले अपने भाई आदिल खाँ से छुटकारा पाने के लिये उसे बंदी बनाने का प्रयत्न किया। आदिल खाँ भयभीत होकर अपने पिता के विश्वस्त सेनापति खवास खाँ के पास चला गया और आँखों में आँसू लेकर अपने भाई की नीचता का वर्णन किया।
खवास खाँ को शहजादे पर दया आ गई और उसने सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसकी देखा-देखी अन्य अमीरों ने भी विद्रोह किया परन्तु इस्लामशाह ने समस्त विद्रोहों का दमन कर दिया। कुछ समय बाद पंजाब के शासक हैबत खाँ ने भी विद्रोह किया। इस विद्रोह को शान्त करने में इस्लामशाह को पाँच वर्ष लग गये। इसी समय हुमायूँ भी फारस से वापस लौट आया। इस्लामशाह ने हुमायूं की सेना को परास्त कर दिया किंतु इसी बीच इस्लामशाह बीमार पड़ा और सितम्बर 1553 में उसकी मृत्यु हो गई।
महमूदशाह आदिल
इस्लामशाह की मृत्यु के बाद अमीरों ने उसके बारह वर्ष के पुत्र फीरोजशाह को ग्वालियर के तख्त पर बिठाया परन्तु तीन दिन बाद उसके चाचा मुबारिजखाँ ने फीरोजशाह का वध कर दिया जो कि उसका मामा भी लगता था। मुबारिजखाँ महमूदशाह आदिल के नाम से तख्त पर बैठा। वह अत्यंत दुष्ट व्यक्ति था। उसने अफगान अमीरों को अप्रसन्न कर दिया जिससे सारे राज्य में विद्रोह की आग भड़क उठी। बिहार में ताज खाँ ने विद्रोह कर दिया।
इब्राहीम खाँ सूरी
जब मुहम्मदशाह ताजखाँ का दमन करने के लिए बिहार गया, तब अवसर पाकर उनका चचेरा भाई इब्राहीम खाँ दिल्ली के तख्त पर बैठ गया और आगरा की ओर बढ़ा। इसकी सूचना पाने पर महमूदशाह चुनार की ओर चला गया। इस प्रकार साम्राज्य के पूर्वी भाग में महमूदशाह और पश्चिमी भाग में इब्राहीमखाँ शासन करने लगा।
सिकंदरशाह सूरी
इसी समय पंजाब में शेरशाह के भतीजे अहमद खाँ ने विद्रोह कर दिया। उसने सिकन्दरशाह की उपाधि धारण की और अपनी सेना के साथ आगरा के लिए प्रस्थान किया। इब्राहीम खाँ ने उसका सामना किया परन्तु परास्त होकर सम्भल की ओर भाग गया। सिकन्दरशाह ने दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर लिया। थोड़े ही दिनों बाद हुमायूँ ने उसे सरहिन्द के मैदान में परास्त कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार भारत में पुनः मुगल साम्राज्य की स्थापना हो गई और सूरी साम्राज्य का अवसान हो गया।
यह भी देखें-
द्वितीय अफगान साम्राज्य का संस्थापक – शेरशाह सूरी
शेरशाह सूरी के कार्यों का मूल्यांकन
शेरशाह के उत्तराधिकारी