सूरी साम्राज्य का पतन होने के कई कारण थे। उस काल में उत्तर-पश्चिमी भारत में मुगल एवं अफगान तो सक्रिय थे ही, राजपूत राजाओं के वंशज भी अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पाने के लिए उद्यत थे।
सूरी साम्राज्य का पतन होने के कारण
(1.) शेरशाह की अकाल मृत्यु
शेरशाह की अकाल-मृत्यु से सूरी साम्राज्य को बड़ा धक्का लगा। यदि वह अधिक दिनों तक जीवित रहा होता तो सूरी साम्राज्य इतनी जल्दी नहीं बिखरता। उसने ऐसी व्यवस्था कर दी होती जिससे भारत में मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना असम्भव अथवा अत्यंत कठिन हो गई होती।
(2.) स्वेच्छाचारी तथा केन्द्रीभूत शासन व्यवस्था
शेरशाह ने जिस शासन की स्थापना की थी वह स्वेच्छाचारी तथा केन्द्रीभूत शासन व्यवस्था थी। राज्य की सारी शक्तियाँ सुल्तान के हाथ में थीं। इस प्रकार का शासन तभी तक चलता है जब तक शासन सूत्र योग्य तथा प्रतिभावान व्यक्ति के हाथ में रहे। जैसे ही शासन सूत्र अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी के हाथ में आता है, वैसे ही उसका विनाश हो जाता है। सूरी साम्राज्य के साथ भी यही हुआ।
(3.) निर्बल उत्तराधिकारी
शेरशाह की मृत्यु के उपरांत इस्लामशाह को छोड़कर और कोई शासक ऐसा नहीं था जो साम्राज्य को छिन्न-भिन्न होने से बचा सकता था। इसलिये इस्लामशाह की मृत्यु के उपरान्त सूरी साम्राज्य पतनोन्मुख हो गया।
(4.) उत्तराधिकारियों का आत्मघाती संघर्ष
इस्लामशाह की मृत्यु के उपरान्त महमूदशाह, इब्राहीम खाँ तथा सिकन्दरशाह में जो संघर्ष हुआ वह साम्राज्य के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ। सूर साम्राज्य को इन तीनों शासकों ने बाँट कर छिन्न-भिन्न कर दिया जिससे उसमें विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करने की क्षमता न रह गई।
(5.) अमीरों से संघर्ष
अफगानियों में कबीलाई भावना इतनी अधिक थी कि वे किसी दूसरे कबीले का उत्कर्ष होते हुए नहीं देख सकते थे। जैसे ही किसी एक कबीले का अफगान अमीर, अपने उत्कर्ष का प्रयास करता था, दूसरे कबीलों के अफगान अमीर उसके सर्वनाश पर तुल जाते थे। इस कारण शेरशाह के उत्तराधिकारियों से अमीर नाराज हो गये। उत्तराधिकारियों में इन अमीरों को दबाने तथा उनके साथ अच्छा व्यवहार करके उन्हें अपने समर्थन में करने की शक्ति नहीं थी इसलिये शासन का आधार खिसक गया।
(6.) हुमायूँ का प्राबल्य
सूर-साम्राज्य के विनाश का अन्तिम कारण यह था कि फारस से लौटने के बाद हुमायूँ की शक्ति काफी प्रबल हो चुकी थी। वह अपने भाइयों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा था। हुमायूँ के पास फिर से एक प्रबल सेना हो गई थी। अतः उसने सरलता से अफगानों को परास्त करके दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसी के साथ सूरी साम्राज्य का पतन हो गया।
यह भी देखें-
द्वितीय अफगान साम्राज्य का संस्थापक – शेरशाह सूरी
शेरशाह सूरी के कार्यों का मूल्यांकन
सूरी साम्राज्य का पतन