प्रस्तावना – चिश्तिया सूफी सम्प्रदाय एवं ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती पृष्ठ पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ई-बुक की पृष्ठभूमि को स्पष्ट किया गया है।
बहुत से लोग सूफीवाद को इस्लाम का एक रूप मानते हैं तथा सूफियों को मुसलमान मानते हैं किंतु सूफीवाद का उदय इस्लाम के विरुद्ध एक वैचारिक क्रांति के रूप में हुआ। इस्लमा में सूफीवाद की मान्यताओं के लिए कोई स्थान नहीं है। यह बात सही है कि भारत में सूफीवाद ने इस्लाम के साथ प्रवेश किया तथा सूफियों ने भारत में इस्लाम का प्रचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई किंतु वस्तुतः सूफीवाद और इस्लाम एक-दूसरे के विरोधी हैं।
विद्वानों की मान्यता है कि सूफी सम्प्रदाय रहस्यवादी उपासना पद्धति है जिसका जन्म तो स्वतन्त्र रूप से हुआ किंतु उसने विश्व के लगभग समस्त प्रमुख धार्मिक मतों से रहस्यवादी दर्शन को ग्रहण करके सार्वभौमिक स्वरूप ग्रहण किया। उस पर भारतीय वेदान्त तथा बौद्ध धर्म का प्रभाव है तो यूनान के अफलातून (अरस्तू) के मत का भी उतना ही प्रभाव है।
मसीही धर्म से भी उसने बहुत कुछ लिया है तो पैगम्बर मुहम्मद ने भी उस पर अपनी छाप छोड़ी है। इन सारे धर्मों में जो कुछ भी रहस्यमयी उपासना पद्धतियां थीं उन सबको सूफियों ने ग्रहण करके अपने लिये एक ऐसे अद्भुत दर्शन की रचना की जो अपने आप में बेजोड़ है।
मध्य एशिया की शामी जातियों के कबीलों की गोद में इस सम्प्रदाय ने जन्म लिया तथा प्रेम के बोल बोलते हुए और अपनी मस्ती में नाचते-गाते हुए यह सम्प्रदाय पूरी दुनिया में फैल गया। सूफी सम्प्रदाय के भीतर भी बहुत से सम्प्रदाय हो गये जिनमें से 14 सम्प्रदाय भारत में आये।
इनमें से भी चार सम्प्रदयों ने भारत में विशेष प्रभाव जमाया। इन चारों में से भी चिश्तिया सम्प्रदाय अपने आप में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। बारहवी शताब्दी में इसी चिश्तिया सम्प्रदाय के ख्चाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का भारत में आगमन हुआ।
इस पुस्तक में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के जीवन की संक्षिप्त जानकारी के साथ-साथ उनकी शिक्षाओं का उल्लेख किया गया है। उस युग के इतिहास, दर्शन तथा समाजशास्त्र को इस पुस्तक में पर्याप्त स्थान दिया गया है। आशा है यह पुस्तक पाठकों के लिये बहु-उपयोगी सिद्ध होगी।