Tuesday, December 30, 2025
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अयोग्य शिष्य (68)

खानखाना अब्दुर्रहीम अच्छी तरह जनता था कि शहजादा सलीम एक ऐसा अयोग्य शिष्य है जिसे कभी भी पढ़ा-लिखा कर इंसान नहीं बनाया जा सकता।

कच्छवाहों की राजकुमारी जोधाबाई से निकाह करके अकबर ने उसे मरियम उज्जमानी नाम दिया और उसे शाह-बेगम घोषित किया। उससे उत्पन्न पुत्र सलीम का नामकरण सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के नाम पर किया गया।

सलीम का नामकरण भले ही सूफी संत के नाम पर किया गया था किंतु वह बहुत जिद्दी और क्रूर प्रवृत्ति का बालक था। उसकी शिक्षा के लिये कई शिक्षकों को नियुक्त किया गया किंतु वे इस दुष्ट बालक को नहीं पढ़ा सके। अंत में अकबर ने अब्दुर्रहीम को इस कार्य के लिये चुना।

जब अब्दुर्रहीम को शहजादा सलीम का अतालीक बनाया गया तो उसने बादशाह का आभार जताने के लिये बड़ा भारी जलसा किया। बादशाह अपने तमाम अमीर-उमरावों और शहजादों सहित रहीम के डेरे पर हाजिर हुआ और दिल खोलकर मिर्जाखाँ की तारीफ में कसीदे पढ़े।

अब्दुर्रहीम ने अकबर की इच्छानुसार जिद्दी बालक सलीम का समुचित शिक्षण प्रारंभ किया तथा बालक के शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक विकास का हर संभव प्रयास किया किंतु सलीम भी शिक्षा के मामले में अपने बाप अकबर का ही अनुकरण करने वाला सिद्ध हुआ।

जिस प्रकार हुमायूँ के लाख चाहने पर भी अकबर ने विधिवत् शिक्षा नहीं ली, उसी प्रकार सलीम भी पढ़ाई लिखाई से दूर ही रहा। भाग्य की यह विचित्र विडम्बना ही थी कि अकबर को बैरामखाँ जैसा और सलीम को अब्दुर्रहीम जैसा अद्भुत शिक्षक मिला किंतु वे अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके।

सलीम की अयोग्यता को देखकर अब्दुर्रहीम ने माथा पीट लिया किंतु फिर भी उसने किसी तरह सलीम को फारसी, तुर्की तथा हिन्दी भाषाओं का ज्ञान करवाया और हिन्दी तथा फारसी में कविता लिखना भी समझाया। उसे घुड़सवारी और तलवारबाजी का भी ज्ञान करवाया।

जब सलीम पंद्रह साल का हुआ तो उसका विवाह कच्छवाहा राजकुमारी मानबाई से करवा दिया गया। इसके बाद तो सलीम का मन शिक्षा से पूरी तरह हट गया। उधर खानखाना भी मुगलिया सल्तनत का दक्षिण भारत में प्रसार करने में जुट गया तो उसके पास सलीम को पढ़ाने का समय न रहा।

अब्दुर्रहीम के दूर हटते ही सलीम बुरे लोगों की संगत में पड़ गया और उसने अब्दुर्रहीम की शिक्षाओं को भुलाकर एक क्रूर इंसान का रूप ले लिया। उसके हरम में स्त्रियों की संख्या बढ़ने लगी जो शीघ्र ही आठ सौ तक जा पहुँची। दिन भर हिंजड़े, गवैये और नचकैये सलीम के हरम में धमाल मचाये रहते। सलीम इनके साथ दिन-रात शराब पीता और शिकार खेलने जाता।

नियति ने भारत वर्ष के साथ कैसा क्रूर मजाक किया था, इस संस्कारहीन, अमर्यादित शराबी के भाग्य में विधाता ने भारत का भाग्य विधाता होने के अंक लिखे थे।

-अध्याय 68, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक

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