Monday, November 24, 2025
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लाओ शंग (3)

लाओ शंग ने यू-ची राजा को मार डाला तथा उसकी खोपड़ी निकलवाकर अपने महल में ले गया। उसके बाद लाओ-शंग ने जीवन भर उसी खोपड़ी में पानी पिया।

चीन के उत्तर में मंगोलिया का विशाल रेगिस्तान है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में इस क्षेत्र में कई बर्बर जातियाँ निवास करती थीं। इन बर्बर जातियों का प्रसार पश्चिमी भाग में फैली सीक्यांग पर्वतमाला तक था। मंगोलिया के गोबी प्रदेश में यू-ची नामक एक प्राचीन जाति निवास करती थी। इसके पड़ौस में अत्यंत बर्बर और भयानक लड़ाका जाति रहती थी जिन्हें हूण कहा जाता था।

पश्चिमी इतिहासकारों की मान्यता है कि तुर्कों के पूर्वज यही हूण थे जिनका मूल नाम ‘हूंग-नू’ था। मूल रूप से यह एक चीनी जाति थी। ये लोग देखने में तो लम्बे, चौड़े, गोरे और सुंदर चेहरे वाले थे किंतु स्वभाव से अत्यंत बर्बर, आक्रमणकारी और हिंसक प्रवृत्ति वाले थे। इनकी खूनी ताकत का मुकाबला संसार की कोई दूसरी जाति नहीं कर सकती थी।

चीन की भौगोलिक बनावट उसे दो भागों में बांटती है- मुख्य प्रदेश तथा बाहरी प्रदेश। जहाँ चीन के मुख्य प्रदेश में सभ्यता का तेजी से विकास हुआ और उसने विश्व को सर्वप्रथम कागज, छापाखाना, पहिए वाली गाड़ी, बारूद, क्रॉस बो, दिशा सूचक यंत्र और चीनी मिट्टी के बर्तन दिये वहीं चीन के बाहरी इलाकों में रहने वाली बर्बर जातियाँ कई सौ सालों तक असभ्य बनी रहीं।

ईसा से चार सौ साल पहले भीतरी चीन में चओ राजवंश अपने चरम पर था और अगले सौ साल में उसका सामंती शासन पूरी तरह समाप्त हो गया। इसके बाद चीन के एकीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हान राजवंश के नेतृत्व में चीन के एकीकरण का काम पूरा हो गया और चीन सभ्यता के नवीन विकास की ओर बढ़ गया।

यह सब भारत से गये बौद्ध धर्म के कारण संभव हुआ लेकिन बाहरी चीन इन सब प्रभावों और परिवर्तनों से भी बिल्कुल अछूता रहा जिसके कारण हूण जाति नितांत असभ्य और बर्बर बनी रही। संभवतः राजा ययाति के शाप के कारण वे अब तक मलिन और हिंसक बने हुए थे।

ई. पू. 174 से ई.पू. 160 तक लाओ शंग हूणों का राजा हुआ। वह बर्बरता की जीती जागती मिसाल था। एक बार उसने यू-ची जाति पर आक्रमण कर दिया। यू-ची लोगों ने हूणों का सामना किया किंतु शीघ्र ही यूचियों के पैर उखड़ गये। लाओ शंग ने यू-ची राजा को मार डाला तथा उसकी खोपड़ी निकलवाकर अपने महल में ले गया। उसके बाद लाओ-शंग ने जीवन भर उसी खोपड़ी में पानी पिया।

-अध्याय 3, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक

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