यू-ची गोबी प्रदेश छोड़कर नान-शान प्रदेश में चले गये किंतु यहाँ भी हूणों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। 140 ई.पू. में हूणों की वू-सुन शाखा के राजकुमार ने नान-शान प्रदेश पर आक्रमण कर दिया। यू-ची एक बार पुनः परास्त होकर ता-हिया (बैक्ट्रिया) की ओर भाग गये।
हूणों ने जब एक बार पश्चिम की ओर सरकना आरंभ किया तो वे सरकते ही चले गये। जब वे ईरान पहुँचे तो उनमें ईरानियों का खून भी शामिल हो गया किंतु उनके खून की मूल तासीर बची रही। उसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं आया। हूंग-नू जाति में उत्पन्न हुए ‘तुरू’ अथवा ‘तुर्क’ नाम के आदमी से इनकी एक शाखा तुर्कों के नाम से विख्यात हुई
जब अरब के मुसलमानों ने मध्य ऐशियाई देशों पर आक्रमण किया तो तुर्कों ने अरबों का भारी विरोध किया किंतु अरबवाले मध्य एशिया पर अधिकार जमाने में सफल हो गये। उनके प्रभाव से आठवीं शताब्दी के प्रारंभ में तुर्कों ने भी मुसलमान होना आरंभ कर दिया। तुर्कों के मुसलमान हो जाने के बाद दुनिया में इस्लाम का प्रसार बहुत तेजी से हुआ। तुर्कों की खूनी ताकत को देखते हुए अरब के खलीफाओं ने उन्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त किया। नौवीं-दसवीं शताब्दी में ये तुर्क इतने ताकतवर हो गये कि बगदाद और बुखारा में इन्होंने अपने स्वामियों के तखते पलट दिये और उनके स्थान पर स्वयं खलीफा बन गये।
इन नये खलीफाओं ने 1453 ईस्वी में कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार जमा लिया जो उन दिनों व्यापार का बड़ा केन्द्र था। इससे यूरोप वालों के लिये पूर्व का स्थल मार्ग बन्द हो गया और यूरोप वालों को नये जल मार्गों की खोज करनी पड़ी। वास्कोडिगामा और कोलम्बस की खोजें उसी अभियान के परिणाम हैं।
कहा जाता है कि अरबवासी इस्लाम को मक्का और मदीना से कार्डोवा तक लाये, ईरानियों ने उसे बगदाद तक पहुँचाया और तुर्क उसे बगदाद से दिल्ली ले आये। इस प्रकार अरब के मुसलमानों ने जो काम आरम्भ किया उसे तुर्कों ने पूरा किया।