Monday, November 24, 2025
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चन्द्रवंशी राजा ययाति (2)

हिन्दुओं में मान्यता है कि चन्द्रवंशी राजा ययाति के बेटे ‘तुरू’ के वंशज आगे चलकर ‘तुर्क’ कहलाये। कई पुराणों में राजा ययाति की कथा मिलती है। इस कथा का सर्वप्रथम उल्लेख महाभारत में हुआ है जिसके अनुसार राजा ययाति के दो विवाह हुए। पहला विवाह दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से और दूसरा विवाह असुरराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से हुआ था।

देवयानी परम कलहकारिणी और दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी। सौतिया डाह के कारण देवयानी ने अपने पिता शुक्राचार्य से राजा की शिकायत की। शुक्राचार्य ने कुपित होकर राजा ययाति को भयंकर शाप दिया जिससे राजा का यौवन नष्ट हो गया। इंसानी खून ने जोर मारा। वह असमय ही बूढ़ा नहीं होना चाहता था। अभी वह भोग विलास से तृप्त नहीं हुआ था।

शापग्रस्त राजा अपने महल में लौट कर आया। उसके बाल सफेद हो गये थे और चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयीं थीं। यह अयाचित, अनपेक्षित और आकस्मिक विपत्ति थी। उसने देवयानी के बड़े पुत्र यदु को अपने पास बुलाया और अपने शाप की पूरी कहानी बताकर कहा- ‘देखो! मैं शाप के कारण बूढ़ा हो गया हूँ किन्तु अभी भोग विलास की मेरी लालसा मिटी नहीं है। तुम मेरे बेटे हो। मेरी इच्छा को पूरा करना तुम्हारा धर्म है। मेरा बुढ़ापा तुम ले लो और अपना यौवन मुझे दे दो। जब भोग विलास से मेरा मन भर जायेगा तो मैं तुम्हारा यौवन तुम्हें लौटा दूंगा।’

यदु ने पिता का तिरस्कार करते हुए कहा- ‘पिताजी! बुढ़ापा किसी भी तरह से अच्छा नहीं हैं। सुंदर स्त्रियाँ बूढ़े आदमी का तिरस्कार करती हैं इसलिये मैं आपका बुढ़ापा नहीं ले सकता।’

राजा कुपित हो गया। उसने कहा- ‘तू मेरे हृदय से उत्पन्न हुआ है फिर भी अपना यौवन मुझे नहीं देता! मैं तुझे और तेरी संतान को राज्य के अधिकार से वंचित करता हूँ।’

यदु से निराश होकर राजा ने देवयानी के दूसरे पुत्र तुर्वसु को बुलाया। तुर्वसु ने भी पिता की बात मानने से मना कर दिया। राजा फिर कुपित हुआ। उसने तुर्वसु को शाप दिया- ‘पिता का तिरस्कार करने वाले दुष्ट! जा! तू मांस भोजी, दुराचारी और वर्णसंकर म्लेच्छ हो जा।’

देवयानी के पुत्रों के बाद शर्मिष्ठा के पुत्रों की बारी आई। शर्मिष्ठा के दोनों बड़े पुत्रों द्रह्यु और अनु ने भी पिता को अपना यौवन देने से मना कर दिया। राजा ने उन्हें भी भयानक शाप दिये। शर्मिष्ठा के तीसरे पुत्र पुरू ने पिता की इच्छा जानकर कहा-‘पिताजी आप मेरा यौवन ले लें।’

राजा प्रसन्न हुआ। उसने पुरू का यौवन लेकर उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। राजा के शेष पुत्र राजा को त्याग कर चले गये।

 कहते हैं राजा ययाति के शाप से तुर्वसु की संतानें यवन हुईं। उसके वंशज धरती पर दूर-दूर तक फैल गये जो तुर्कों के नाम से जाने गये। ययाति के पुत्र अनु से म्लेच्छ उत्पन्न हुए। अनुमान है कि ‘अनु’ के वंशज इतिहास में ‘हूंग-नू’ अथवा हूण कहलाये।

-अध्याय 2, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक

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