Wednesday, July 2, 2025
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वेनिस शहर की दुविधा (24)

उत्तरी इटली में स्थित वेनिस शहर की बसावट का इतिहास बहुत रोचक है तथा सामुद्रिक व्यापार से लेकर सामरिक महत्ता की दृष्टि से यह संसार के अन्य शहरों से बिल्कुल भिन्न है। यह दलदल पर बसा हुआ शहर है। इसे वेनेजिया भी कहते हैं।

छठी शताब्दी ईस्वी में जब अतिला हूण आग लगाता हुआ और मारकाट करता हुआ इटली का सर्वनाश करने लगा तो रोम आदि बहुत से शहरों के लोग उत्तर में स्थित एल्प्स पहाड़ों की तरफ भागे। मार्ग में उन्होंने समुद्र के पश्चिमी तट पर स्थित दलदली क्षेत्र के बीच में कुछ टापुओं को देखा। ये लोग हूणों से अपने बच्चों के तथा अपने स्वयं के प्राण बचाने के लिए इन्हीं टापुओं पर उगे हुए पेड़ों के बीच जा छिपे।

अतिला तो समय के साथ मारा गया किंतु ये लोग यहीं रह गए। इन्हीं लोगों ने इन टापुओं को शहर के रूप में विकसित कर लिया तथा दलदली क्षेत्रों में समुद्री जल लाकर नहरें बना दीं। ये नहरें ही इस शहर में आवागमन का प्रमुख स्रोत बन गईं।

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चूंकि वेनिस शहर पूर्वी एवं पश्चिमी रोमन साम्राज्यों के बीच स्थित था तथा समुद्री टापुओं पर बसा हुआ होने एवं दलदली क्षेत्र से घिरा हुआ होने से न तो पश्चिमी रोमन साम्राज्य ने और न पूर्वी रोमन साम्राज्य ने इसे अपने अधीन करने का प्रयास किया। इस कारण वेनिस की संस्कृति रोम एवं कुस्तुंतुनिया से बिल्कुल स्वतंत्र रूप में विकसित हुई। वेनिस के व्यापारी पूरी दुनिया में विख्यात हो गए।उनके मालवाहक जहाज समुद्रों में दूर-दूर तक आने-जाने लगे जिसके कारण वेनिस भारत तथा इण्डोनेशियाई द्वीपों में स्थित राज्यों से सीधे व्यापार करने लगा। इस व्यापार के कारण वेनिस संसार के समृद्धतम शहरों में से एक बन गया। वेनिस ने अपनी स्वतंत्र नौसेना भी बना ली जिसके बल पर ग्यारहवीं-बारहवीं सदी में पूरे एड्रियाटिक सागर पर वेनिस राज्य की धाक जम गई। वेनिस धनवानों का गणराज्य था तथा इसका अध्यक्ष ‘दोज’ कहलाता था। इस कारण जब तुर्कों ने फिलीस्तीन पर अधिकार करके पूर्वी एवं पश्चिमी जगत के बीच के समुद्री एवं स्थल व्यापारिक मार्गों को अवरुद्ध कर दिया तो वेनिस के समक्ष अस्तित्व बचाए रखने का संकट उत्पन्न हो गया क्योंकि इस शहर के लोग केवल समुद्री मार्गों से होने वाले व्यापार पर ही अपनी अर्थव्यवस्था खड़ी कर पाए थे।

वेनिस गणराज्य के पास खेती करने या उद्योग खड़े करने जितनी भूमि उपलब्ध नहीं थी। वेनिस के व्यापारियों ने तुर्कों से मुक्ति पाने के उपाय ढूंढने आरम्भ किए। शीघ्र ही उन्हें यूरोप में उठी क्रूसेड्स की लहर में इस समस्या से मुक्ति का मार्ग निकलता हुआ दिखाई दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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