आखिर एक शाम शाहजहाँ (Shahjahan) की मृत्यु हो गई। जिस आदमी ने लाखों लोगों को मौत बांटी थी, आज वही आदमी मर गया और उसकी मौत से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
शाहजहाँ (Shahjahan) ने दुष्ट औरंगजेब (Aurangzeb) के पत्रों का जवाब देना बंद कर दिया था किंतु औरंगजेब गाहे-बगाहे कठोर चिट्ठियां लिखकर अपने बाप का दिल दुखाता रहता था। शाहजहाँ को अब उम्मीद नहीं रह गई थी कि वह कभी इस कैद से आजाद हो सकेगा फिर भी उसने एक बार हिम्मत अवश्य की कि वह अपने मुट्ठी भर पुराने नौकरों की मदद से लाल किले (Lal Qila) से निकल भागे किंतु लाल किले की दीवारों ने बूढ़े बादशाह को भागने नहीं दिया। वह पकड़ा गया तथा उसे और अधिक सख्त पहरे में रख दिया गया।
बादशाह ने लाल किले (Lal Qila) में यमुनाजी की ओर बनी जिस मुसम्मन बुर्ज के पीछे की सीढ़ियों से भागने का प्रयास किया था, मुतमाद हिंजड़े ने वहाँ पक्की दीवार बनवाकर सीढ़ियों को बंद करवा दिया। वह बादशाह के प्रति और अधिक कठोर हो गया और बात-बात पर अपने पुराने बादशाह की अवज्ञा करने लगा।
शाहजहाँ (Shahjahan) के बेटे-पोतों में से दारा शिकोह (Dara Shikoh), सुलेमान शिकोह, शाहशुजा तथा मुरादबक्श मारे जा चुके थे। अब शाहजहाँ के पुत्रों में से केवल औरंगजेब (Aurangzeb) तथा पोतों में से दारा शिकोह का छोटा पुत्र सिपहर शिकोह तथा औरंगजेब के चार पुत्र जीवित बचे थे जिनसे शाहजहाँ को किसी प्रकार की सहायता मिलने की उम्मीद नहीं थी।
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भागने का प्रयास करने से पहले शाहजहाँ (Shahjahan), जनाना महल के ऊपर बने मुसम्मन बुर्ज की बरसाती में आ जाता था और वहाँ से ताजमहल देखा करता था किंतु अब शाहजहाँ को बुर्ज पर जाने से रोक दिया गया था। इस कारण शाहजहाँ को ताजमहल के दर्शन भी दुर्लभ हो गए थे।
जहानआरा ने अपने भाई औरंगजेब (Aurangzeb) से पत्र-व्यवहार करके उससे अनुरोध किया कि मरहूम दारा शिकोह तथा मुरादबक्श की बेसहारा पुत्रियों को जहानआरा के संरक्षण में दे दिया जाए। औरंगजेब ने ये शहजादियां जहानआरा (Jahanara Begum) को सौंप दीं। जब शहजादियां बंदियों की तरह फटे कपड़ों में जहानआरा के सामने लाई गईं तो जहानआरा की छाती हाहाकार कर उठी। इत्र से भीगे रहने वाले उनके कपड़ों पर धूल जमी हुई थी।
जहानआरा ने पितृविहीन बच्चियों को छाती से लगा लिया और उनकी परवरिश करने लगी। इस काम में जहानआरा (Jahanara Begum) का दिन बहुत आसानी से बीत जाता था। एक-एक करके आठ साल बीत गए और ई.1665 की सर्दियां आ गईं। इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ी जिसके कारण शाहजहाँ गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। जहानआरा ने उसकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु जब ई.1666 की जनवरी आरम्भ हुई तो शाहजहाँ के बचने की उम्मीद जाती रही। यहाँ तक कि उसके लिए उठना-बैठना भी संभव नहीं रहा। अब शाहजहाँ (Shahjahan) 74 साल का बूढ़ा हो चला था। उसकी समस्त शक्तियां क्षीण हो चुकी थीं। वह कई-कई दिनों तक बेहोश जैसी स्थिति में रहता था। वह जब भी होश में आता तो जहानआरा उससे प्रार्थना करती कि वह औरंगजेब (Aurangzeb) के अपराधों को क्षमा कर दे किंतु शाहजहाँ ऐसा करने से मना कर देता था। 22 जनवरी 1666 की सुबह बादशाह अचानक उठकर बैठ गया। उसने जहानआरा को आवाज लगाई जो एक मोटी सी रजाई लेकर उसके पलंग के पास धरती पर ही पड़ी रहती थी। बादशाह ने बेटी से कहा कि वह औरंगजेब के लिए क्षमापत्र लिखे।
जहानआरा (Jahanara Begum) ने भीगी पलकों और कांपते हाथों से क्षमापत्र लिखा जिसमें औरंगजेब द्वारा अपने पिता के प्रति किए गए समस्त अपराधों को क्षमा कर दिया गया था। शाहजहाँ (Shahjahan) ने निर्विकार भाव से उस पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिए और जहानआरा ने उस कागज पर शाहजहाँ की मोहर अंकित कर दी।
इस समय तक शाहजहाँ (Shahjahan) की दो बेगमें जीवित थीं- अकबराबादी महल (Akbarabadi Mahal) और फतहपुरी महल (Fatehpuri Mahal)। शाहजहाँ ने उन्हें बुलवाया और उनके साथ बैठकर इबादत करने लगा। शाहजहाँ ने अल्लाह को उसकी समस्त रहमतों के लिए शुक्रिया कहा और अपने पलंग पर लेटकर जहानआरा के सिर पर हाथ रख लिया। थोड़ी देर बाद उसने कुछ अस्फुट शब्दों में अपनी इस संरक्षिका को सांत्वना देने की चेष्टा की तथा उन्हीं क्षणों में उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। जहानआरा (Jahanara Begum) अपने बूढ़े बाप की छाती पर गिरकर चीत्कार कर उठी।
शाहजहाँ की मृत्यु हो चुकी थी। इस समय शाम हो रही थी और जनाना महल में कोई भी पुरुष उपस्थित नहीं था। शाही औरतें दुखियारियों की तरह रोने लगीं, जिन्हें चुप कराने वाला कोई नहीं था।
शाहजहाँ (Shahjahan) अपनी मृत्यु से पहले कई बार यह इच्छा व्यक्त कर चुका था कि उसकी देह मुमताज की कब्र के पास दफनाई जाए। इसलिए मुसम्मन बुर्ज की वह दीवार तोड़ी गई जो कुछ साल पहले, शाहजहाँ को लाल किले (Lal Qila) से भाग जाने से रोकने के लिए बनाई गई थी।
शाहजहाँ की मृत्यु के बाद शाहजहाँ (Shahjahan) की रूह अपनी देह छोड़कर भाग गई थी जिसे औरंगजेब (Aurangzeb) की कोई दीवार रोक नहीं सकती थी।
मुसम्मन बुर्ज वाली सीढ़ियों के रास्ते से शाहजहाँ की देह को यमुनाजी तक लाया गया और यहाँ से एक नाव में रखकर ताजमहल (Tajmahal) में ले जाया गया जो किसी समय आम्बेर के कच्छवाहों का तेजोमय महल हुआ करता था तथा जिसे शाहजहाँ ने एक विशाल कब्रगाह में बदल दिया था।
इसी कब्रगाह के एक तहखाने में मुमताज महल की मृत देह वर्षों से लेटी हुई कयामत होने की प्रतीक्षा कर रही थी। शाहजहाँ (Shahjahan) की मृत्यु ने उसे भी वहीं लेट जाने का अवसर प्रदान कर दिया। शाहजहाँ की मृत देह वहीं लेटकर कयामत होने की प्रतीक्षा करने लगी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता




