Saturday, July 27, 2024
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शाहजहाँ के हीरे मोती

यह तो जगजाहिर है कि मुगलों के खजाने के सामने कारूं का खजाना भी कुछ नहीं रहा होगा किंतु शाहजहाँ के हीरे मोती कुछ अलग ही कहानी कहते थे। यही कारण था कि शाहजहाँ और औरंगजेब में हीरे-मोतियों को लेकर झगड़ा हुआ!

जिस समय औरंगजेब ने शाहजहाँ को बंदी बनाया था, उस समय शाहजहाँ के पास अकूत सम्पदा थी जिसमें दुनिया भर के व्यापारियों द्वारा विगत सवा सौ साल में मुगल बादशाह को बेचे गए दुर्लभ हीरे-मोती, माणक, पन्ना, याकूत, गोमेद और लाल शामिल थे। शाहजहाँ के हीरे मोती सैंकड़ों ऊँटों पर भी नहीं लादे जा सकते थे।

इस खजाने का बहुत सा हिस्सा दारा शिकोह अपने साथ ले गया था। बादशाह ने भी इस खजाने का कुछ हिस्सा ऊंटों पर लाद कर दारा शिकोह के पीछे दौड़ाया था। औरंगजेब के लाल किले में घुसने से पहले शाहजहाँ ने इस खजाने का बहुत सा हिस्सा आगरा के लाल किले में ऐसी जगह छिपा दिया था जहाँ से वह औरंगजेब के हाथ न लग सके।

जब औरंगजेब ने देखा कि खजाना लगभग खाली है तथा शाहजहाँ के हीरे मोती गायब हैं तो वह हैरान रह गया। उसने तो बचपन से लेकर आज तक इस खजाने के बारे में तरह-तरह के किस्से सुने थे किंतु यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं था। इसलिए औरंगजेब अपने बाप के कमरे में घुस गया और उससे शाही खजाने के हीरे-मोती और महंगे रत्न देने की मांग की। शाहजहाँ ने औरंगजेब को बताया कि खजाने का अधिकांश भाग आगरा के लाल किले की मरम्मत करवाने, दिल्ली का लाल किला बनवाने तथा आगरा में ताजमहल बनाने में खर्च हो चुका है।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

औरंगजेब को अपने बूढ़े बाप की बात पर विश्वास नहीं हुआ इसलिए उसने शाहजहाँ पर और अधिक सख्ती की तथा शाहजहाँ के शरीर पर मौजूद एवं पगड़ी में लगे हीरे-पन्ने उतार लिए। इस पर शाहजहाँ ने औरंगजेब से कहा कि ये जवाहरात और जेवरात सल्तनत की सम्पत्ति नहीं हैं, मेरी व्यक्तिगत सम्पत्ति हैं। इस पर औरंगजेब ने शाहजहाँ को लताड़ पिलाई और उससे कहा कि बादशाह की कोई भी सम्पत्ति व्यक्तिगत नहीं होती, यह रियाया के कर से और दुश्मनों की लूट से अर्जित की गई सम्पत्ति है, बादशाह तो उसका संरक्षक मात्र है, इसे केवल रियाया की भलाई के लिए खर्च किया जा सकता है।

औरंगजेब ने शाहजहाँ के उन निजी सेवकों को बंदी बना लिया जो अब तक शाहजहाँ को छोड़कर नहीं भागे थे। नए बादशाह ने उन्हें कोड़ों से पिटवाया ताकि वे उस सम्पत्ति का पता बता दें जिसे पुराने बादशाह शाहजहाँ ने कहीं छिपा दिया है। औरंगजेब ने शाहजहाँ, दारा शिकोह, तथा जहानआरा के महलों में रखे जेवर, कपड़े, फर्नीचर तथा अन्य सामान को एकत्रितक करवाकर उन पर अपनी मुहर लगवा दी। ताकि कोई व्यक्ति इस सम्पत्ति को लेकर नहीं भाग सके।

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औरंगजेब को ज्ञात हुआ कि आगरा से भागते समय दारा शिकोह आगरा के किले में 11 लाख रुपयों के हीरे-जवाहरात कहीं छिपा गया है। उसे लगा कि शाहजहाँ को अवश्य ही इन हीरे-जवाहरातों के बारे में ज्ञात होगा। शाहजहाँ ने इस बात की जानकारी होने से इनकार कर दिया।

इस पर औरंगजेब ने अपने बाप से कहा कि वह उन नाचने-गाने वालियों को समर्पित करे जो शाहजहाँ तथा दारा के महल में नाचा करती थीं। शाहजहाँ ने ऐसा करने से भी मना कर दिया। वे सब दासियां, औरंगजेब के भय से आगरा छोड़कर दूसरे शहरों में भाग गई थीं और औरंगजेब उन्हें ढूंढ नहीं सका।

जब औरंगजेब ने देखा कि उसका बूढ़ा और जिद्दी बाप उसकी कोई बात नहीं मान रहा है तो औरंगजेब ने शाहजहाँ के कक्ष से अपने बेटे सुल्तान मुहम्मद का पहरा हटा दिया और उसकी जगह मुतमाद नामक हिंजड़े को बूढ़े बादशाह की खबर लेने के लिए नियुक्त किया। मुतमाद बहुत ही जल्लाद सिद्ध हुआ। उसने बादशाह के साथ बहुत बदतमीजी की तथा बादशाह को कपड़े-लत्ते के लिए भी तरसा दिया। मुतमाद को देखकर बादशाह को ऐसा लगने लगा कि वह अब इस हिंजड़े का दीन दास बन गया है।

जब बादशाह इस पर भी नहीं झुका तो औरंगजेब ने अपने बाप पर इल्जाम लगाया कि आपकी आंखों के सामने दारा शिकोह ने इस्लाम को मिटाने तथा काफिरों के मजहब को लागू करने का काम किया किंतु आप बादशाह होते हुए भी चुप रहे। इसलिए आप मेरे नहीं, अपितु इस्लाम के गुनहगार हैं। इसलिए अल्लाह ने आपसे बादशाहत छीनकर मुझे प्रदान की है, हालांकि मुझे बादशाहत की जरा भी इच्छा नहीं है।

शाहजहाँ ने औरंगजेब के इस ढोंग के लिए उसे तिरस्कार पूर्ण पत्र लिखे और उसे सल्तनत का लुटेरा बताते हुए उसकी खूब लानत-मलानत की तथा उसे लिखा कि वक्त आने पर तेरे बेटे भी तेरे साथ वही करेंगे जो तूने मेरे साथ किया है।

औरंगजेब इस पत्र को पढ़कर तिलमिला गया। उसने अपने बाप को जवाब दिया कि मैं आपके जैसा खराब बादशाह नहीं हूँ। इसलिए मेरे बेटे मेरे साथ ऐसा नहीं करेंगे, और यदि करेंगे तो अल्लाह मेरी नेकनियति को देखकर मेरी रक्षा करेंगे।

इसके बाद बाप-बेटे के बीच कटु पत्रों का एक लम्बा सिलसिला चला। अंत में बूढ़ा बादशाह अपने झक्की बेटे से हार गया और उसने औरंगजेब के पत्रों का जवाब देना बंद कर दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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