Sunday, May 25, 2025
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मंगोलों के सिर कटवाकर मीनारें बनवाईं अल्लाउद्दीन खिलजी ने (94)

मलिक काफूर ने रावी नदी के तट पर कबक खाँ नामक मंगोल सरदार को बीस हजार मंगोलों सहित कैद कर लिया। इन्हें दिल्ली लाकर हाथियों के पैरों तले कुचलवाया गया। इन मंगोलों के सिर कटवार बदायूं दरवाजे पर मंगोलों के सिरों की एक मीनार बनाई गई।

ई.1302 में मंगोल दिल्ली पर अधिकार करने में सफल हो गए थे तथा अल्लाउद्दीन खिलजी तथा उसकी सेना दिल्ली छोड़कर भाग गए थे किंतु कुछ दिन बाद मंगोल स्वतः ही दिल्ली खाली करके चले गए और अल्लाउद्दीन खिलजी तथा उसके सैनिक फिर से दिल्ली में लौट आए। इसके लगभग तीन साल बाद ई.1305 में 50 हजार मंगोलों ने अलीबेग के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत पर पुनः आक्रमण किया। मंगोलों की सेना अमरोहा तक पहुँच गई।

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उन दिनों गाजी तुगलक नामक एक अमीर अपनी सेना के साथ दिपालपुर में था। उसने मंगोलों से भीषण युद्ध किया और उन्हें बड़ी क्षति पहुँचाई। असंख्य मंगोलों का संहार हुआ और वे भारत की सीमा के बाहर खदेड़ दिए गए। अलीबेग तथा तार्तक नामक मंगोल सरदारों को कैद करके दिल्ली लाया गया जहाँ उनका कत्ल करके मंगोलों के सिर सीरी के दुर्ग की दीवार में चिनवा दिए गए। ई.1307 में मंगोल सरदार इकबाल मन्दा ने विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया। अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस विपत्ति का सामना करने के लिए मलिक काफूर तथा गाजी मलिक तुगलक के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। मलिक काफूर ने रावी नदी के तट पर इकबाल खाँ मंदा को मार डाला तथा कबक खाँ नामक मंगोल सरदार को बीस हजार मंगोलों सहित कैद कर लिया। इन्हें दिल्ली लाकर हाथियों के पैरों तले कुचलवाया गया। मंगोलों के सिर काटकर बदायूं दरवाजे पर सिरों की एक मीनार बनाई गई। इस पराजय से मंगोल इतने आतंकित हो गए कि अल्लाउद्दीन खिलजी के शासन काल में उन्हें फिर कभी भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। मध्यएशिया के मंगोलों में दिल्ली के तुर्कों का भय व्याप्त हो चुका था और यह संदेश भलीभांति फैल गया था कि जब तक वर्तमान तुर्क सुल्तान दिल्ली के तख्त पर बैठा है, तब तक दिल्ली पर अभियान करना निरर्थक है।

इस प्रकार ई.1296 में अल्लाउद्दीन खिलजी के दिल्ली तख्त पर बैठने से लेकर ई.1307 तक दिल्ली सल्तनत पर मंगोलों के आक्रमण लगातार होते रहे। अल्लाउद्दीन खिलजी ने बड़ी हिम्मत से उनका दमन किया तथा अपनी सल्तनत को बचाए रखने में सफल रहा। अल्लाउद्दीन खिलजी ने ई.1316 तक शासन किया था। अतः उसके शासन के अंतिम नौ वर्ष मंगोलों के आक्रमण से मुक्त रहे।

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इस विवरण से स्पष्ट है कि अल्लाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मंगोलों को केवल एक ही अभियान में सफलता मिली थी और शेष सभी आक्रमणों में असफल होना पड़ा। मंगोलों की पराजय के कई कारण थे-

(1.) इस समय मंगोल कई शाखाओं में विभक्त होकर पारस्परिक संघर्षों में व्यस्त थे। इस कारण वे संगठित होकर पूरी शक्ति के साथ भारत पर आक्रमण नहीं कर सके।

(2.) मंगोल अपने साथ स्त्रियों, बच्चों तथा वृद्धों को भी लाते थे जो युद्धक्षेत्र में सेना के लिए भार बन जाते थे।

(3.) ट्रांसआक्सियाना के शासक दाऊद खाँ की मृत्यु के बाद मंगोल अस्त-व्यस्त हो गए थे तथा दिल्ली सल्तनत पर लगातार आक्रमण करते रहने के कारण उनकी सैन्यशक्ति काफी छीजती जा रही थी।

(4.) जफर खाँ, उलूग खाँ तथा मलिक काफूर जैसे सेनापतियों का साथ मिल जाने के कारण अल्लाउद्दीन की सेना ने मंगोलों को जीतने नहीं दिया।

इतना होने पर भी मंगोल-आक्रमणों के भारत पर गहरे प्रभाव पड़े जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

(1.) मंगोलों के आक्रमणों में लाखों निरीह व्यक्तियों एवं सैनिकों के प्राण गए और उनकी सम्पत्ति लूटी गई।

(2.) मंगोलों से भयभीत रहने के कारण जनता राज्य के संरक्षक तथा अवलम्ब की ओर झुक गई और उसमें राज-भक्ति की भावना प्रबल हो गई। इससे सुल्तान की शक्ति में बड़ी वृद्धि हो गई।

(3.) मंगोलों के आक्रमण की निरन्तर सम्भावना बनी रहने के कारण सुल्तान को अत्यन्त विशाल सेना की व्यवस्था करनी पड़ी। इसका प्रभाव शासन व्यवस्था पर भी पड़ा। शासन का स्वरूप सैनिक हो गया और सेना की स्वेच्छाचरिता तथा निरंकुशता में वृद्धि हो गई।

(4.) मंगोलों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए सुल्तान को बड़े सैनिक-सुधार तथा प्रशासकीय सुधार करने पड़े।

अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए बलबन की सीमा नीति का अनुसरण किया। उसके द्वारा किए गए सुधार इस प्रकार थे-

(1.) अल्लाउद्दीन खिलजी ने पुराने दुर्गों की मरम्मत करवाई तथा पंजाब, मुल्तान एवं सिंध में नये दुर्गों का निर्माण करवाया।

(2.) सीमा प्रदेश के दुर्गों में योग्य तथा अनुभवी सेनापतियों के नेतृत्व में विशाल सेनायें रक्खी गईं।

(3.) पंजाब के समाना तथा दिपालपुर नामक नगरों की किलेबन्दी की गई।

(4.) दिल्ली सल्तनत की सेना में वृद्धि की गई और हथियार बनाने के कारखाने खोले गए।

(5.) राजधानी की सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था की गई और दिल्ली के दुर्ग का जीर्णोद्धार कराया गया।

(6.) सीरी में एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया गया। संभवतः अल्लाउद्दीन के सुल्तान बनने से पहले ही यह दुर्ग बनना आरम्भ हो गया था और अल्लाउद्दीन ने उसका बाहरी परकोटा बनवाया था।

(7.) सेना की रणनीति में परिवर्तन किया गया। सेना की सुरक्षा के लिए दिल्ली के चारों ओर खाइयाँ खुदवाई गईं, लकड़ी की दीवारें बनवाई गईं तथा हाथियों के दस्तों की व्यवस्था की गई।

(8.) आक्रमणकारियों की वास्तविक शक्ति से अवगत होने के लिए गुप्तचर विभाग की व्यवस्था की गई।

यदि अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपनी सल्तनत की सुरक्षा के लिए मंगोलों के सिर नहीं काटे होते तथा इतने व्यापक सुरक्षा प्रबंध नहीं किए होते तो मंगोलों के हाथों उसी काल में दिल्ली सल्तनत का सदा के लिए अंत हो गया होता।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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