Monday, October 14, 2024
spot_img

119. पागलों की तरह दहाड़ें मार कर रोता था अल्लाउद्दीन खिलजी!

अल्लाउद्दीन खिलजी का जन्म ई.1266 में हुआ था। तीस साल की आयु में अर्थात् ई.1296 में वह सुल्तान बना था और ई.1316 तक वह शासन करता रहा किंतु उसके शासनकाल में ई.1312 से लेकर ई.1316 तक का समय प्रतिक्रिया का काल माना जाता है।

ई.1312 तक अल्लाउद्दीन खिलजी के समस्त उद्देश्य पूरे हो चुके थे। साम्राज्य विस्तार का कार्य पूरा हो चुका था। मंगोलों को बुरी तरह परास्त किया जा चुका था। उत्तर भारत में स्थानीय शासन पर भी कब्जा कसा जा चुका था तथा दक्षिण भारत में राजाओं से वार्षिक कर देना स्वीकार करवाकर उन्हें दिल्ली के अधीन लाया जा चुका था।

ई.1312 के आते-आते अल्लाउद्दीन खिलजी थकने लगा। मात्र 46 वर्ष की आयु में उसे बुढ़ापे ने घेर लिया जिसके कारण सुल्तान की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रह गयी। उसके कई विश्वस्त अमीर एवं सेनापति भी मर गए।

राज्य की सैनिक शक्ति ई.1306 से ही धीरे-धीरे मलिक काफूर के हाथों में जाने लगी थी तथा ई.1312 के बाद मलिक काफूर का सेना पर पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। यद्यपि शहजादा खिज्र खाँ सुल्तान का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया था परन्तु उसमें इतने विशाल साम्राज्य को संभालने की योग्यता नहीं थी।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

दरबार में दो दल बन गए थे। एक दल शहजादे खिज्र खाँ का था जिसे शहजादे की माँ मलिका-ए-जहाँ संभाल रही थी। शहजादे का मामा अल्प खाँ उसका सहयोग कर रहा था। दूसरा दल मलिक काफूर का था जिसका सेना के ऊपर प्रभाव था। मलिक काफूर की दृष्टि दिल्ली के तख्त पर थी। अतः वह ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने लगा जिनसे सम्पूर्ण राजनैतिक शक्ति भी काफूर के हाथों में आ जाये।

मलिक काफूर सुल्तान की वृद्धावस्था जानकर अब उससे उन सब अपमानों एवं कष्टों का बदला लेना चाहता था जो मलिक काफूर ने जीवन भर सहे थे। मलिक काफूर का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था किंतु सुल्तान के सुखभोग के लिए उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया। सुल्तान के सुख भोग के लिए ही मलिक काफूर को हिंजड़ा बनाकर सुल्तान की पुरुष रखैल के रूप में रखा गया। अब वह समय आ गया था जब मलिक काफूर अल्लाउद्दीन खिलजी का सर्वनाश कर दे। उसने राजपरिवार में फूट पैदा करने के लिए सुल्तान अल्लाउद्दीन को समझाया कि मलिका-ए-जहाँ, शहजादा खिज्र खाँ, अमीर अल्प खाँ और मुबारक खाँ सुल्तान की हत्या करवाने का प्रयत्न कर रहे हैं ताकि खिज्र खाँ को सुल्तान बनाया जा सके।

To purchase this book, please click on photo.

अल्लाउद्दीन खिलजी, मलिक काफूर की बातों में आ गया और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ तथा मुबारक खाँ को ग्वालियर के कारागार में डलवा दिया। सुल्तान ने मलिका-ए-जहाँ को पुरानी दिल्ली में कैद कर लिया और अल्प खाँ की हत्या करवा दी। इससे अमीरों एवं राजघराने में अल्लाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध अंसतोष की अग्नि और अधिक भड़क गई।

इस असंतोष की चिन्गारियां अल्लाउद्दीन तक पहुंचने लगीं और उसे लगने लगा कि राजमहल का प्रत्येक व्यक्ति सुल्तान के प्राण लेना चाहता है। हत्या के भय से अल्लाउद्दीन खिलजी उन्मादी हो गया और वह जरा-जरा सी बात पर चिढ़कर लोगों के सिर तराशने (सिर काटने) के आदेश देने लगा। इससे स्थिति और अधिक बिगड़ने लगी। अब कोई भी व्यक्ति सुल्तान के निकट जाने एवं उसके सामने पड़ने को तैयार नहीं था।

अल्लाउद्दीन के सेवक जब भोजन लाकर उसके समक्ष रखते तो सुल्तान को लगता था कि उसमें जहर मिला हुआ है। इसलिए वह भोजन की थालियां उठाकर फैंक देता और भोजन परोसने वालों को लात-घूंसों से पीटने लगता। जब अल्लाउद्दीन के अमीर उसे दूरस्थ राज्यों के समाचार लाकर देते कि अमुक गवर्नर अथवा राजा ने बगावत करके स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया तो अल्लाउद्दीन पागलों की तरह दहाड़ें मारकर रोने लगता। जो तिलिस्म उसने तलवार के बल पर खड़ा किया था, वह तलवार पर पकड़ ढीली पड़ते ही विलुप्त होने लगा था।

अल्लाउद्दीन के जीवन का अंतिम भाग उतना ही बुरा था जितना उसके जीवन का आरम्भिक भाग। वह बहुत छोटा बच्चा ही था जब उसके पिता का निधन हो गया था। जब वह जवान हुआ तो उसने अपने पालनकर्ता ताऊ (एवं श्वसुर) की हत्या कर दी और अब जबकि वह बूढ़ा हो रहा था, उसने अपनी पत्नी एवं जवान पुत्रों को जेल में डाल दिया था। इन्हीं परिस्थितियों में अल्लाउद्दीन खिलजी घातक रूप से बीमार पड़ा और 4 जनवरी 1316 को उसकी मृत्यु हो गयी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि मलिक काफूर ने अल्लाउद्दीन खिलजी को विष देकर मार डाला।

इस समय अल्लाउद्दीन की बेगम मलिका-ए-जहाँ, बड़ा शहजादा खिज्र खाँ तथा उससे छोटा शहजादा शादी खाँ कारागृह में बन्द थे। मरहूम अल्लाउद्दीन के और भी कई पुत्र थे जिनमें से किसी एक को सुल्तान बनाया जाना था। चूंकि सेना पर मलिक काफूर का नियंत्रण था। इसलिए वही उत्तराधिकार का निर्णय कर सकता था। उसने तुर्की अमीरों को एकत्रित किया और उन्हें मरहूम सुल्तान द्वारा लिखी गई एक वसीयत दिखाई जिसमें सुल्तान ने अपने सबसे छोटे पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को अपना उत्तराधिकारी और मलिक काफूर को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया था।

उस समय शहजादा शिहाबुद्दीन उमर केवल पांच साल का था। स्वार्थी अमीरों ने इस वसीयत को स्वीकार कर लिया तथा शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान घोषित कर दिया। मलिक काफूर उसका संरक्षक बन गया। इस प्रकार राज्य की सारी शक्ति मलिक काफूर के हाथों में चली गई और वह सल्तनत का वास्तविक शासक बन गया। राज्य की बागडोर हाथ में आते ही मलिक काफूर ने खिलजी वंश के समर्थकों पर अत्याचार करने आरम्भ किये। उसने खिलजी वंश के समस्त समर्थकों को उनके पदों से हटा दिया।

इतना होने पर भी मरहूम सुल्तान का बड़ा शहजादा खिज्र खाँ तथा सुल्तान का दूसरा शहजादा शादी खाँ मलिक काफूर के लिए कोई बड़ा खतरा पैदा कर सकते थे। जब तक शहजादे जीवित थे, तब तक मलिक काफूर के लिए खतरे भी जीवित थे!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source