Friday, October 4, 2024
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दोहावली में ज्योतिष शास्त्र के संदर्भ

गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित दोहावली में ज्योतिष संदर्भों एवं तथ्यों का प्रचुरता से उल्लेख हुआ है। जीवन में पग-पग पर इन दोहों की सहायता ली जा सकती है। चाहे वह करणीय-अकरणीय का प्रश्न हो अथवा ज्योतिष का अथवा नैतिकता का, यहाँ तक कि दोहावली हमें यह भी बताती है कि व्यावहारिक क्या और ओर अव्यावहारिक क्या है!

व्यापार प्रारम्भ करने के लिये श्रेष्ठ नक्षत्रों का नाम गिनाते हुए गोस्वामीजी लिखते हैं- श्रवण, धनिष्ठा, शतभिष, हस्त, चित्रा, स्वाती, पुष्य, पुनर्वसु, मृगशिरा, अश्विनी, रेवती तथा अनुराधा में किया गया व्यापार एवं दिया गया धन, धनवर्द्धक होता है। किसी भी परिस्थिति में यह सम्पत्ति डूब नहीं सकती-

श्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हय रेवती सखाउ।

देहि लेहि धन धरनि धरु गएहुँ न जाइहि काउ।।

एक अन्य दोहे में कहा गया है- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, रोहिणी, कृत्तिका, मघा, आर्द्रा, भरणी, अश्लेषा और मूल नक्षत्रों में चोरी गया हुआ, छिना हुआ, उधार दिया हुआ, गाड़ा हुआ अर्थात् किसी प्रकार से हाथ से निकला हुआ धन कभी भी वापस नहीं आता-

ऊगुन पूगुन बि अज कृ म आ भ अ मू गुनु साथ।

हरो धरो गाड़ो दियो धन फिरि चढ़इ न हाथ।।

कौन-सी तिथि किस दिन पड़ने पर हानिकारक एवं कष्टदायी योग बनाती हैं, इससे सम्बन्धित एक दोहा, दोहावली में इस प्रकार कहा गया है- रविवार को द्वादशी, सोमवार को एकादशी, मंगलवार को दशमी, बुधवार को तृतीया, गुरुवार को षष्ठी, शुक्रवार को द्वितीया और शनिवार को सप्तमी तिथियाँ पड़ती हैं, तब ये कुयोग का सूचक और सर्वसामान्य के लिये हानिकारक योग बनाती हैं-

रबि हर दिसि गुन रस नयन मुनि प्रथमादिक बार।

तिथि सब काज नसावनी होइ कुजोग बिचार।।

पति-पत्नी की जन्मपत्रिका का विवाह-पूर्व मिलान करना क्यों आवश्यक है, इस पर दोहावली में एक दोहा इस प्रकार आया है-

जनमपत्रिका बरति के देखहु मनहिं बिचारि।

दारुन बैरी मीचु के बीच बिराजति नारि।।

इस दोहे का आशय यह है कि जन्मांगचक्र के बारह प्रकोष्ठों में से प्रत्येक प्रकोष्ठ, जातक के विशेष भाव दशा का सूचक होता है। लग्न अर्थात् प्रथम स्थान जातक की दैहिक स्थिति का परिचायक है। इसके छठे स्थान में ग्रहस्थिति एवं ग्रहदृष्टि से जातक के शत्रु तथा आठवें स्थान में ग्रहस्थिति एवं ग्रहदृष्टि से जातक की मृत्यु की गणना की जाती है। इन दोनों के मध्य सातवाँ स्थान पुरुष की कुण्डली में पत्नी का तथा नारी की कुण्डली में पति का होता है।

अर्थात् भयानक वैरी और मृत्यु के बीच पति या पत्नी का स्थान होता है। यानी पत्नी शत्रु और मृत्यु के मध्य बैठ मध्यस्थता करती है। अगर पत्नी सुलक्षणा एवं पतिव्रता है तो पति के शत्रु होते ही नहीं, अगर हुए भी तो वे ज्यादा कष्टदायक सिद्ध नहीं होंगे, उसका पति दीर्घायु होता है, उसकी मृत्यु स्वाभाविक कारणों से होती है। किंतु यदि पत्नी दुष्टा, कुलक्षणी और पतिवंचक हुई; तब पति के बड़े-बड़े भयकारी, कष्टदायक शत्रु हो जाते हैं तथा उसकी आयु छोटी हो जाती है; वह अल्पायु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

चन्द्रमा शुभ, शान्त एवं सौम्य ग्रह है। यह पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करके सब जीवों को दीर्घायु एवं आरोग्य देता है, पर कुसंगति में आकर यह भी जातक के लिये घातक बन जाता है। दोहावली के एक दोहे में कहा गया है कि मेष के प्रथम, वृष के पंचम, मिथुन के नौंवें, कर्क के दूसरे, सिंह के छठे, कन्या के दसवें, तुला के तीसरे, वृश्चिक के सातवें, धनु के चौथे, मकर के आठवें, कुम्भ के ग्यारहवें और मीन के बारहवें घर में चन्द्रमा पड़े तो वे ग्रह घातक बन जाते हैं-

ससि सर नव दुइ छ दस गुन मुनि फल बसु हर भानु।

मेषादिक क्रम तें गनहि घात चंद्र जियँ जानु।।

यात्रा के समय किन-किन वस्तुओं का दर्शन शुभ और मांगलिक होता है, इस आशय के एक दोहे में कहा गया है कि यात्रा पर निकलते समय नेवला, मछली, दर्पण, सफेद मुँह वाली चील, चकवा पक्षी तथा नीलकण्ठ के दर्शन से यात्रा निर्विघ्न और सुखप्रद हो जाती है, उक्त छहों को किसी भी दिशा में देखने से यात्रा मनवांछित फलदायक हो जाती है-

नकुल सुदरसन दरसनी छेमकरी चक चाष।

दस दिसि देखत सगुन सुभ पूजहिं मन अभिलाष।।

इस प्रकार दोहावली में ज्योतिष सम्बन्धी उल्लेख भरे पड़े हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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