बाबर ने मेवात के शासक हसन खाँ मेवाती को अपनी ओर मिलाने के हर संभव प्रयास किए किंतु हसन खाँ मेवाती अपने पुत्र नाहर खाँ पर किए गए अत्याचारों का बदला लेने के लिए महाराणा सांगा के पक्ष में हो गया। जब बाबर ने सुना कि महाराणा सांगा एक विशाल सेना लेकर बाबर की ओर बढ़ रहा है तो बाबर ने भी अपनी सेना को तैयार होने के आदेश दिए।
उसने किस्मती बेग को थोड़ी सी सेना देकर बयाना की तरफ भेजा, वह कुछ लोगों को सिर काटकर ले आया और 70-80 आदमियों को बंदी बना लाया। किस्मती ने ये कटे हुए सिर बाबर को भेंट किए।
10 फरवरी 1527 को बाबर ने उस्ताद अली कुली द्वारा बनाई गई सबसे बड़ी तोप से पत्थरों के गोले चलवाकर उसका परीक्षण किया। इसने 1600 कदम तक पत्थर के गोलों को फैंका। यदि एक कदम को डेड़ फुट का माना जाए तो इस तोप से निकला हुआ गोला लगभग ढाई किलोमीटर दूर जा सकता था।
यह बाबर के लिए एक अद्भुत एवं उत्साहवर्द्धक बात थी! तोप की इस सफलता के लिए बाबर ने उस्ताद अली को तलवार की एक पेटी, खिलअत और तीपूचाक घोड़ा इनाम में प्रदान किया। 11 फरवरी को बाबर ने आगरा से प्रस्थान करके एक खुले मैदान में शिविर लगाया और सेना की भरती की जाने लगी।
बाबर के समस्त गवर्नर और सेनापति अपनी-अपनी सेनाएं लेकर उस मैदान में एकत्रित होने लगे। बाबर ने उन सबको एक क्रम में जमाना आरम्भ किया। बाबर ने अपनी सेना के एक अग्रिम दल को बयाना की तरफ रवाना किया और स्वयं मुख्य सेना के साथ रहा। जब यह सेना बयाना पहुंची तो सांगा के सैनिकों द्वारा घेर ली गई।
महाराणा सांगा अब तक अट्ठारह युद्ध लड़ चुका था जिनमें उसके शरीर पर 80 घाव लगे थे। युद्धों में ही उसने अपनी एक आँख, एक भुजा तथा एक पैर खो दिये थे। वह अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक था और लोदी साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था।
महाराणा सांगा संभवतः पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की ओर से भाग लेना चाहता था किंतु वह गुजरात के शासक मुजफ्फरशाह के संभावित आक्रमण के कारण पानीपत नहीं जा सका। अब मुजफ्फरशाह की मृत्यु हो चुकी थी और महाराणा का ध्यान दिल्ली तथा आगरा पर केन्द्रित था जहाँ बाबर ने अधिकार कर लिया था।
महाराणा सांगा का अनुमान था कि बाबर अपने पूर्वज तैमूर लंग की भांति दिल्ली को लूट-पाट कर काबुल लौट जाएगा परन्तु बाबर ने भारत में रहने का निश्चय कर लिया था। ऐसी स्थिति में महाराणा तथा बाबर में संघर्ष होना अनिवार्य था क्योंकि बाबर के निश्चय ने राणा सांगा की योजना पर पानी फेर दिया था।
जब बाबर की सेना का अग्रिम दल बयाना पहुंचा तो सांगा के सैनिकों ने बाबर की सेना के अग्रिम दल पर आक्रमण करके उसे परास्त कर दिया। उस दल का नायक संगुल खाँ जनजूहा वहीं मारा गया। सांगा के सैनिकों ने कित्ता बेग का कंधा फाड़कर बांह काट डाली। इस कारण किस्मती बेग तथा मनसूर बरलास सहित अनेक सेनापति भयभीत होकर भाग खड़े हुए। उन्होंने बाबर को सांगा की सेना की प्रचण्डता के ऐसे किस्से सुनाए कि बाबर चिंता में पड़ गया। महदी ख्वाजा इस समय बयाना के किले में था किंतु वह भी बाबर की सेना के अग्रिम दल की कोई सहायता नहीं कर सका।
इसलिए बाबर ने बायाना की ओर तेज गति से बढ़ने की बजाय अपनी गति धीमी कर दी। उसने बेलदारों को भेजकर मंधाकुर के पास कुछ कुंए खुदवाए और अपनी सेना को वहीं पड़ाव करने के आदेश दिए। 16 फरवरी 1527 को बाबर मंधाकुर से चलकर सीकरी पहुंच गया क्योंकि सीकरी में बाबर की सेना के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध था। तब तक महाराणा सांगा की सेना बयाना से 10-12 मील दूर बसावर के निकट पहुंच गई।
कुछ दिन बाद अब्दुल अजीज को महाराणा सांगा की वास्तविक स्थिति जानने के लिए भेजा गया। अब्दुल अजीज के पास 1000-1500 सैनिक थे। सांगा की सेना ने उन सैनिकों को देख लिया तथा उनमें कसकर मार लगाई। सांगा की सेना ने बाबर के बहुत से सैनिकों को बंदी बना लिया। इस प्रकार अब्दुल अजीज महाराणा सांगा की वास्तविक स्थिति का पता नहीं लगा सका।
इस पर बाबर के मंत्री निजामुद्दीन अली मुहम्मद खलीफा के अमीर मुहिब अली को निजामुद्दीन अली मुहम्मद खलीफा के सेवकों सहित सांगा की तरफ भेजा गया। मुहम्मद अली जंगजंग को भी भेजा गया। सांगा की सेना ने इस बार भी बाबर के बहुत से सैनिकों को पकड़कर मार डाला। मुहिब अली भी जंग में गिरने वाला था किंतु बाल्तू नामक एक सैनिक ने पीछे से पहुंचकर मुहिब अली को बचा लिया।
एक दिन बाबर को समाचार मिला कि शत्रु तेजी से निकट आ रहा है, इस पर बाबर की सेना ने अस्त्र-शस्त्र धारण कर लिए तथा घोड़ों को कवच पहना दिए। बाबर ने लिखा है- ‘हम एक कोस तक बढ़ते चले गए। हमारे सामने एक बड़ी झील थी। इसलिए हम वहीं उतर पड़े। हमने अपने सामने का भाग गाड़ियों से सुरक्षित कर लिया और गाड़ियों को जंजीरों से जकड़ दिया। दो गाड़ियों के बीच में 7-8 गज की दूरी रखी गई।’
संभवतः गाड़ियों से बाबर का आशय तोपगाड़ियों से है। क्योंकि वह लिखता है- ‘मुस्तफा रूमी ने रूमी ढंग से गाड़ियां तैयार करवाई थीं। वे बड़ी मजबूत थीं। चूंकि उस्ताद कुली को मुस्तफा से ईर्ष्या थी, इसलिए मुस्तफा को सेना के दाहिनी ओर हुमायूँ के सामने नियुक्त किया गया एवं उस्ताद अली कुली को बाईं ओर नियुक्त किया गया। जिन स्थानों पर गाड़ियां नहीं पहुंच पाई थीं, वहाँ खुरासानी एवं हिन्दुस्तानी बेलदारों द्वारा खाइयाँ खुदवा दी गईं।’
बाबर ने लिखा है- ‘मेरी सेना, इतनी सुरक्षा के बावजूद हतोत्साहित थी। इसलिए मैंने जिन स्थानों पर गाड़ियां नहीं पहुंच सकती थीं, उन स्थानों पर 7-8 गज की दूरी पर लकड़ी की तिपाइयां रखवा दीं और उन्हें कच्चे चमड़े की रस्सियों द्वारा खिंचवाकर बंधवा दिया। इन कार्य में 20-25 दिन लग गए।’
इसी बीच कासिम हुसैन सुल्तान, अहमद यूसुफ तथा बाबर के बहुत से दोस्त काबुल से बाबर के पास आ गए। बाबर ने उनकी संख्या 500 बताई है। मुहम्मद शरीफ तथा बाबा दोस्त बहुत से ऊंटों पर गजनी से शराब रखवाकर ले आये।
बाबर ने लिखा है- ‘मुहम्मद शरीफ ज्योतिषी था। उसने भविष्यवाणी की कि इन दिनों मंगल ग्रह पश्चिम दिशा में है, इस कारण जो कोई इस ओर से युद्ध करने जाएगा, वह पराजित होगा। इस भविष्यवाणी को सुनकर मेरी सेना में अत्यधिक घबराहट फैल गई। मैंने मुहम्मद शरीफ की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।’
अब बाबर ने हसन खाँ मेवाती को सांगा से अलग करने की योजना बनाई। बाबर ने एक सेना मेवात के लिए रवाना की ताकि वह मेवात में लूटमार करके अशांति फैला दे और हसन खाँ मेवाती को युद्ध का मैदान छोड़कर मेवात जाना पड़े किंतु हसन खाँ एक अनुभवी सेनापति था। इसलिए वह मोर्चा छोड़कर नहीं गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता