बाबर का पूर्वज तैमूर लंग भारत की अपार सम्पदा लूटना चाहता था, भारत के लोगों को मारना और गुलाम बनाना चाहता था तथा इस प्रकार भारत से कुफ्र अर्थात् मूर्तिपूजा समाप्त करके इस्लाम का प्रसार करना चाहता था किंतु उसका काम अधूरा रह गया था। बाबर ने भारत में मुगलों के राज्य की स्थापना करके भारत की अपार सम्पदा पर अधिकार कर लिया, जनता को अपना गुलाम बना लिया, उनके कटे हुए सिरों की मीनारें बनवाईं, गाजी की उपधि धारण की और इस तरह से बाबर ने तैमूर लंग के अधूरे सपने को पूरा किया।
महाराणा तथा मेदिनी राय को मारकर बाबर ने हिन्दुओं को अपने ही देश भारत की केन्द्रीय-राजनीतिक-शक्ति बनने से सदा के लिये वंचित कर दिया। उसने लोदियों को निपात करके अफगानों को भी नष्ट-प्रायः कर दिया किंतु अफगान पूरी तरह नष्ट नहीं हुए। उनमें अफगान-राज्य के पुनरुत्थान की आशा अब भी जीवित बची थी। भारत में बाबर की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ रचनात्मक कम और विध्वंसात्मक अधिक थीं। इस्लाम के सिपाही के रूप में उसने भारत में काफिर-हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर विनाश किया। उसने शियाओं का भी दमन किया।
बाबर ने पंजाब पर कम से कम पांच बार आक्रमण करके उसके विभिन्न भागों को अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को परास्त किया। खानवा के युद्ध में राणा सांगा को परास्त किया। चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय को परास्त किया। घाघरा के युद्ध में महमूद खाँ लोदी को परास्त किया। भले ही बाबर की ये विजयें भारत के इतिहास को गहरे घाव देने वाली थीं किंतु मुगलों की दृष्टि से ये चारों विजयें बाबर की शानदार सामरिक उपलब्धियाँ थीं। बाबर की सामरिक विजयों की तरह बाबर की राजनीतिक उपलब्धियाँ भी अत्यंत घातक थीं। उसने दिल्ली सल्तनत को सदा के लिये समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर भारत में एक नवीन तुर्को-मंगोल राज्य की स्थापना की जो मुगल सल्तनत के नाम से जाना गया। बाबर द्वारा भारत में स्थापित इस राज्य पर बाबर के वंशज अगले 200 वर्षों तक शासन करते रहे।
बाबर ने अयोध्या के राममंदिर एवं कुछ अन्य मंदिरों को तोड़कर देश की प्रजा को प्राचीन भवनों एवं स्थापत्य के शानदार उदाहरणों से वंचित कर दिया। हालांकि बाबर आदमियों को मारने में किंचत् भी संकोच नहीं करता था किंतु उसमें भवनों को तोड़ने, किसी कलाकृति को नष्ट करने अथवा नगरों को जलाने की प्रवृत्ति बहुत कम थी। देवालय एवं प्रतिमाएं तोड़ने का यह काम बाबर ने भारत के अतिरिक्त और कहीं नहीं किया। इसका मुख्य कारण यह था कि उस काल तक अफगानिस्तान में देवालय एवं प्रतिमाएं अपवाद-स्वरूप ही बचे थे।
बाबर में नई चीजों को देखने और समझने का प्रबल उत्साह था। जब उसने 11 मार्च 1519 को झेलम पार करने के बाद जीवन में पहली बार बाल्टियों सहित रहट को चलते हुए देखा तब उसने काफी देर तक वहीं पर रुककर रहट की कार्य-विधि को जानने के लिए कई बार पानी निकलवाया। बाबर ने कांधार में ‘पेशताक’ नामक एक भवन बनवाया। इसके लिए उसने ‘सरपूजा’ (पूज्य-सरोवर) नामक पहाड़ से पत्थर कटवाकर मंगवाए। पत्थर काटने वाले 80 कारीगरों ने 9 वर्ष तक प्रतिदिन काम करके इस भवन को पूरा किया।
बाबर ने काबुल में भी एक बाग बनवाया जिसे ‘बाग-ए-बाबर’ कहा जाता था। इसमें पानी की नहरें, बारादरियां, बैठक के कमरे आदि अनेक निर्माण करवाए गए जिन्हें पाकिस्तान बनने के बाद तालिबानी आतंकियों ने बर्बाद कर दिया। वर्तमान में इस बाग के अवशेष ही देखे जा सकते हैं।
बाबर को दिल्ली और आगरा में तुर्क तथा अफगान सुल्तानों द्वारा निर्मित इमारतें पसंद नहीं आईं। वह ग्वालियर में राजा मानसिंह तोमर एवं राजा विक्रमादित्य तोमर के महलों की स्थापत्य-शैली से अत्यधिक प्रभावित हुआ। बाबर ने अपनी आत्मकथा में इन महलों का विस्तार से वर्णन करते हुए लिखा है कि ये महल बड़े मजबूत एवं सुंदर हैं। महलों की दीवारों पर अच्छा प्लास्टर किया गया है और कुछ महलों में सुरंगें बनी हुई हैं।
बाबर के काल में ग्वालियर के महल ही हिन्दूकला के सुंदर उदाहरण के रूप में शेष बचे थे। यद्यपि बाबर के अनुसार इनके निर्माण में किसी निश्चित नियम एवं योजना का पालन नहीं हुआ था तथापि वे बाबर को सुंदर एवं हृदयग्राही प्रतीत हुए। बाबर ने आगरा, सीकरी एवं धौलपुर में अपने लिए ग्वालियर के अनुकरण पर महल बनवाए।
बाबर ने स्वयं अपनी प्रशंसा करते हुए लिखा है- ‘मैंने आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर एवं कोल अर्थात् अलीगढ़ नामक स्थानों पर भवन निर्माण के कार्य में संगतराशों को लगाया।’
बाबर के भारत आगमन के समय रूहेलखण्ड क्षेत्र में राप्ती नदी के तट पर एक पौराणिक नगर स्थित था जिसे मुगल काल में सम्भल कहा जाता था। इस नगर में पौराणिक युगीन ‘हरिहर मंदिर’ स्थित था। बाबर ने इस मंदिर को तोड़कर उसके ध्वंसावशेषों पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे जामा मस्जिद कहा गया।
सतीश चन्द्र ने लिखा है- ‘बाबर के लिए स्थापत्य का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नियम-निष्ठता एवं समरूपता थी जो उसे भारतीय इमारतों में दिखाई नहीं दी। इसलिए बाबर ने प्रसिद्ध अल्बानियाई कलाकार ‘सिनान’ के शिष्यों को भारत बुलाया। बाबर को भारत में अधिक समय नहीं मिला और उसने जो कुछ बनवाया उनमें से अधिकतर भवन नष्ट हो चुके हैं।’
ऐसा प्रतीत होता है कि बाबर ने आगरा, सीकरी, बयाना आदि स्थानों पर बड़े निर्माण अर्थात् महल एवं दुर्ग आदि नहीं बनवाकर मण्डप, स्नानागार, कुएं, तालाब एवं फव्वारे जैसी लघु-रचनाएं ही बनवाई थीं या फिर बाबर द्वारा निर्मित इमारतें मजबूत सिद्ध नहीं हुईं। क्योंकि वर्तमान में पानीपत के काबुली बाग की विशाल मस्जिद एवं रूहेलखण्ड में संभल की जामा मस्जिद को छोड़कर, बाबर द्वारा निर्मित कोई भी इमारत उपलब्ध नहीं है। या तो वे बनी ही नहीं थीं या फिर वे खराब गुणवत्ता के कारण नष्ट हो चुकी हैं।
यद्यपि पानीपत के काबुली बाग की मस्जिद एवं रूहेलखण्ड की मस्जिद पर्याप्त विशाल रचनाएं हैं तथापि उनमें शिल्प, स्थापत्य एवं वास्तु का कोई सौंदर्य दिखाई नहीं देता। इन दोनों भवनों के बारे में स्वयं बाबर ने स्वीकार किया है कि इनकी शैली पूरी तरह भारतीय थी। यहाँ भारतीय-शैली से तात्पर्य मुगलों के पूर्ववर्ती दिल्ली-सल्तनत-काल की स्थापत्य-शैली से है। बाबर को भारत में समरकंद जैसी विशाल इमारतें बना सकने योग्य कारीगर उपलब्ध नहीं हुए। न बाबर के पास इतना धन एवं इतना समय था कि वह इमारतों का निर्माण करवा सके।
बाबर ने ई.1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को परास्त करने के बाद अपनी विजय की स्मृति में ई.1527 में पानीपत में एक बाग और मस्जिद का निर्माण करवाया। बाबर की एक बेगम का नाम मुस्समत काबुली था। उसी के नाम पर इस बाग एवं मस्जिद का नाम काबुली बाग एवं काबुली मस्जिद रखा गया। यह एक विशाल एवं मजबूत भवन है किंतु स्थापत्य एवं शिल्प की दृष्टि से अत्यंत सामान्य है। इस मस्जिद के निर्माण के छः साल बाद हुमायूँ ने सलीमशाह को हराया तथा अपनी विजय के उपलक्ष्य में इस बाग में एक चबूतरा बनवाया जिसे फतेह मुबारक कहा जाता है। अकबर के काल में ई.1557 में इस मस्जिद में फारसी भाषा में दो शिलालेख लगवाए गए।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता