Saturday, July 27, 2024
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अध्याय -16 – बौद्ध धर्म तथा भारतीय संस्कृति पर उसका प्रभाव (र)

बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कति में योगदान

प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म का उदय किसी महान् सांस्कृतिक क्रान्ति से कम नहीं था। भारतीय धर्म, दर्शन, नीतिशास्त्र, राजनीति, साहित्य, कला, शासन-नीति, विदेश नीति आदि विभिन्न क्षेत्रों पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव हुआ। विभिन्न क्षेत्रों में बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार है-

(1.) धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में योगदान

बौद्ध धर्म सरल एवं आडम्बरहीन था। उसमें निरर्थक एवं खर्चीले विधि-विधानों, जटिल नियमों, दीर्घकालिक अनुष्ठानों तथा यज्ञ के लिए आवश्यक पुरोहितों के लिए कोई स्थान नहीं था। इस कारण जनसाधारण तेजी से बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ। बौद्ध धर्म की लोकप्रियता ने वैदिक धर्म के अस्तित्त्व के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया। इस कारण वैदिक धर्म ने भी अपने भीतर सुधार की प्रक्रिया आरम्भ की।

यज्ञ, बलि, कर्मकाण्ड आदि आडम्बरों के स्थान पर हिन्दू-धर्म में मानवता, स्नेह, सौहार्द पर आधारित भागवत् धर्म का उदय हुआ। बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने भारत में मूर्ति-पूजा को अत्यंत लोकप्रिय बना दिया। भागवत् धर्म ने भी विष्णु-पूजा की प्रतिष्ठा के लिए मूर्ति निर्माण एवं मंदिरों का अवलम्बन लिया।

बौद्धों की मठ प्रणाली ने भी हिन्दू-धर्म को प्रभावित किया। इससे पूर्व हिन्दू-धर्म में मठ प्रणाली नहीं थी। जगद्गुरु शंकराचार्य ने उतर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में अपने मठों की स्थापना की। बौद्ध धर्म ने प्रचार-प्रसार की जो शैली अपनाई उसने भी हिन्दू-धर्म को प्रभावित किया। इससे पूर्व हिन्दू-धर्म प्रचार-प्रसार में विश्वास नहीं रखता था।

बौद्ध धर्म ने अनात्मवाद, अनीश्वरवाद, कार्य-कारण सम्बन्ध, कर्मवाद एवं पुनर्जन्मवाद, आन्तरिक शुद्धि तथा निर्वाण के दार्शनिक विचारों से भारतीय चिन्तन प्रणाली को नवीनता प्रदान की। असंग, नागार्जुन, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति आदि बौद्ध आचार्यों ने बौद्ध दर्शन को नई ऊँचाइयाँ दीं। बौद्धों का शून्यवाद तथा माध्यमिक दर्शन, भारत में ही नहीं अपितु वैश्विक दर्शन साहित्य में भी गौरवपूर्ण स्थान रखता है।

बौद्धों का दार्शनिक साहित्य विचारोत्तेजक था। बौद्धों के दार्शनिक विचारों का खण्डन करने के लिए भागवत धर्म में अनेक दार्शनिक पैदा हुए जिनमें शंकराचार्य एवं कुमारिल भट्ट प्रमुख थे। इन दोनों के योगदान से भारतीय दर्शन में नवीन चेतना जागृत हुई।

(2.) साहित्य के क्षेत्र में योगदान

बौद्ध धर्म ने भारतीय साहित्य को काफी प्रभावित किया। बौद्ध धर्म के विद्वानों द्वारा पालि और संस्कृत भाषा में बौद्ध दर्शन और धर्म ग्रंथों के रूप में प्रभूत साहित्य की रचना की गई। महात्मा बुद्ध के जीवन को आधार बनाकर संस्कृत एवं जन भाषाओं में विपुल साहित्य लिखा गया। काव्य एवं नीति सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ लिखे गए। इन सबने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया और संस्कृत तथा लोक भाषाओं के विकास में सहयोग दिया।

बौद्ध विद्वान दिग्नाग ने भारतीय तर्क शास्त्र का विकास किया। उन्होंने ‘न्याय प्रवेश’ और ‘आलम्बन परीक्षा’ नामक ग्रन्थ लिखे। न्याय वैशेषिक पर इसकी गहरी छाप पड़ी। बौद्ध महाकाव्य ‘बुद्ध चरित’ और नाटक ‘सारिपुत्र प्रकरण’ बौद्धों द्वारा ही लिखे गए। ‘मिलिन्दपन्हो’ तथा ‘महावस्तु’ नामक  ग्रन्थों में प्रचुर मात्रा में ऐतिहासिक सामग्री मिलती है। ‘मंजूश्री मूलकल्प’ तथा ‘दिव्यवदान’ नामक बौद्ध ग्रन्थों से भी भारत के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति की महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

(3.) कला के क्षेत्र में योगदान

भारतीय शिल्प कला, मूर्ति कला एवं चित्रकला का जो निखरा हुआ स्वरूप दिखाई देता है, वह बौद्ध धर्म की ही देन है। गुहा मन्दिरों का निर्माण, मूर्ति कला की गान्धार एवं माथुरी शैली तथा चित्रकला की अजन्ता शैली बौद्ध धर्म के प्रभाव से ही विकसित हुईं। मौर्य सम्राट अशोक ने देश भर में 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया जिनमें से कुछ स्तूप आज भी मौजूद हैं तथा भारतीय स्थापत्य कला की अनुपम धरोहर हैं।

साँची का स्तूप, बौद्ध स्थापत्य कला का श्रेष्ठ नमूना है। अशोक द्वारा निर्मित स्तम्भों में उच्चकोटि की शिल्प-कला मौजूद है। साँची, भरहुत और अमरावती में बौद्धों द्वारा उच्चकोटि की कलाकृतियों का निर्माण किया गया। महायान सम्प्रदाय के भिक्षुओं द्वारा गान्धार प्रदेश में महात्मा बुद्ध की प्रतिमाओं का बड़ी संख्या में निर्माण किया गया। इसलिए उस प्रदेश की कला को गान्धार शैली का नाम दिया गया।

गान्धार कला ने भारतीय मूर्तिकला को नवीन प्रेरणा दी जिसके फलस्वरूप मथुरा, नालन्दा और सारनाथ में मूर्ति कला की अलग-अलग शैलियाँ विकसित हुईं। अजन्ता की विश्वप्रसिद्ध गुफाओं में चित्रकला की विशिष्ट शैली विकसित हुई। इन चित्रों का मुख्य उद्देश्य महात्मा बुद्ध के जीवन प्रसंगों तथा बोधिसत्वों का जीवन्त चित्रण करना था। बादामी, बाध, सितनवासल तथा बराबर की गुफाओं की बौद्ध चित्रकला अद्वितीय है।

(4.) शासन नीति के क्षेत्र में

बौद्ध धर्म ने भारत की शासन नीति को गहराई तक प्रभावित किया है। बौद्ध संघों की स्थापना जनतान्त्रिक मूल्यों के आधार पर की गई थी जिसमें प्रत्येक भिक्षु को अपने विचार एवं शंका व्यक्त करने का अधिकार था। वहाँ अन्धश्रद्धा को बढ़ावा नहीं दिया गया था। स्वतंत्र भारत की शासन पद्धति में इन्हीं जनतान्त्रिक मूल्यों को ग्रहण किया गया है। शासन की प्रत्येक संस्था में सदस्यों को बराबरी के आधार पर अपने विचार रखने का अधिकार दिया गया है।

शासन में समानता, सहिष्णुता और भातृत्व की भावना साफ देखी जा सकती है। बौद्ध धर्म ने उपनिषदों के अहिंसा के विचार को प्रमुखता से अपनाया तथा अहिंसा परमोधर्मः का उद्घोष किया। कलिंग युद्ध के बुरे अनुभव के बाद अशोक ने भी अहिंसा के महत्व को समझा और जीवन भर अहिंसा की नीति का अवलम्बन किया। सेना और युद्ध राज्य की शक्ति के मूल-आधार होते हैं किंतु भारतीय शासकों तथा वर्तमान में भारत सरकार ने भी विश्व-शांति को प्रमुखता दी।

(5.) आचार-विचार के क्षेत्र में योगदान

बौद्ध धर्म ने दस शील को अपनाकर भारतीय जनता को जीवन में नैतिकता और सदाचार के पालन का मार्ग दिखाया और भारतीय आचार-विचार को उन्नत बनाने में सहयोग दिया। बौद्ध धर्म के कारण ही परम्परागत भारतीय समाज में जाति-पाँति के बन्धन शिथिल हुए और शासन व्यवस्था में प्रत्येक जाति के व्यक्ति को बराबर माना गया।

हेवेल ने लिखा है- ‘बौद्ध धर्म ने आर्यावर्त के जातीय बन्धनों को तोड़कर उसके आध्यात्मिक वातावरण में घुसे हुए अन्धविश्वासों को दूर कर सम्पूर्ण आर्य जाति को एकरूपता प्रदान करने में योग दिया और मौर्य वंश के विशाल साम्राज्य की नींव रखी। बौद्ध धर्म ने भारतीय लोगों के नैतिक पक्ष को उन्नत बनाने में अपूर्व योग दिया।’

(6.) अन्य क्षेत्रों में योगदान

बौद्ध धर्म ने भारत के वैदेशिक सम्बन्धों का क्षेत्र व्यापक किया तथा संसार के अनेक देशों से अपने सम्बन्धों को मजबूत बनाया। जिन देशों में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ, उन देशों के निवासी भारत को अपना पवित्र तीर्थस्थान मानने लगे और वे बौद्ध स्थलों के दर्शनों के लिए भारत आने लगे। इस कारण विश्व के अनेक देशों के साथ भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्बन्ध स्थापित हुए और उन देशों में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रसार हुआ।

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