1. प्रश्न : सभ्यता का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?
उत्तर : सभा में बैठने की योग्यता।
सभायाम् अर्हति इति।
2. प्रश्न : पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार संस्कृति किसे कहते हैं?
उत्तर : मनुष्यों की साझा समझ के परिणाम स्वरूप उत्पन्न आचरण, व्यवहार एवं आदतों को संस्कृति कहा जाता है।
3. प्रश्न : भारतीय विद्वानों के अनुसार संस्कृति किसे कहते हैं?
उत्तर: सभ्यता का भीतर से प्रकाशित हो उठना।
4. प्रश्न: सभ्य समाज के तत्व कौनसे हैं?
उत्तर : उन्नत कृषि, लंबी दूरी के व्यापार, व्यावसायिक विशेषज्ञता, नगरीकरण और वैज्ञानिक प्रगति सभ्य-समाज के मूल तत्त्व हैं।
5. प्रश्न: सभ्य समाज के द्वितीय तत्त्व अथवा माध्यमिक तत्त्व कौनसे हैं?
उत्तर : विकसित यातायात व्यवस्था, लेखन, मापन के मानक, संविदा पर आधारित विधि-व्यवस्था, कला शैलियां, स्थापत्य, गणित, उन्नत धातुकर्म एवं खगोलविद्या आदि, सभ्य समाज के माध्यमिक तत्त्व हैं।
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6. प्रश्न: संस्कार का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर: पूरा करना, सुधारना, सज्जित करना, मांज कर चमकाना, शृंगार करना, सजावट करना, आदि। संस्कार विशेषण की संज्ञा संस्कृति है।
7. प्रश्न: वाजसनेयी संहिता में संस्कृति किसे कहा गया है?
उत्तर: तैयार करना या पूर्ण करना को।
8. प्रश्न: ऐतरेय ब्राह्मण में संस्कृति का उल्लेख किन अर्थों में हुआ है?
उत्तर: बनावट या संरचना के अर्थ में, अर्थात् कोई समाज कैसा बना हुआ है। वह उसकी संस्कृति है।
9. प्रश्न: महाभारत में किस महापुरुष को संस्कृति कहा गया है?
उत्तर: श्रीकृष्ण को।
10. प्रश्न : हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार संस्कृति शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: साफ या परिष्कृत करना।
11. प्रश्न: यह किसने कहा है- संस्कृति जिंदगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं।
उत्तर: राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय में।
12. प्रश्न: किस भारतीय विद्वान ने मानव द्वारा सीखे गए समस्त व्यवहार को संस्कृति का अंग नहीं माना है?
उत्तर: डॉ. सम्पूर्णानंद के अनुसार- मानव का प्रत्येक विचार संस्कृति नहीं है। अपितु जिन कामों से किसी देश के समस्त समाज पर कोई अमिट छाप पड़े, वह स्थाई प्रभाव ही संस्कृति है।
13. प्रश्न: यह किसने लिखा है- किसी भी जाति अथवा राष्ट्र के शिष्ट पुरुषों में विचार, वाणी एवं क्रिया का जो रूप व्याप्त रहता है, उसी का नाम संस्कृति है।
उत्तर: चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने।
14. प्रश्न: यह किसने लिखा है-
संस्कृति, शारीरिक मानसिक शक्तियों के प्रशिक्षण, सुदृढ़़ीकरण या विकास परम्परा और उससे उत्पन्न अवस्था है।
उत्तर: पं. जवाहरलाल नेहरू।
15. प्रश्न: यह किसने लिखा है-
संसार भर में जो भी सर्वोत्तम बातें जानी या कही गई हैं, उनसे अपने आपको परिचित करना संस्कृति है।
उत्तर: मैथ्यू आर्नोल्ड।
16. प्रश्न: यह किसने लिखा है-
संस्कृति एक जटिल सम्पूर्णता है जिसमें समस्त ज्ञान, विश्वास, कलाएँ, नीति, विधि, रीति-रिवाज तथा अन्य योग्यताएँ समाहित हैं जिन्हें मनुष्य किसी समाज का सदस्य होने के नाते अर्जित करता है।
उत्तर: ई. वी. टॉयलर।
सभ्यता ओर संस्कृति के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार-
किसी समाज की संस्कृति उस समाज के भीतर घटने वाली बौद्धिक घटनाओं का एक चिंरतन प्रवाह है।
किसी देश के विभिन्न कालखण्डों में, उस देश के समस्त नागरिकों द्वारा व्यवृहत किए जाने वाले आचार-विचार से संस्कृति रूपी वृक्ष में नित्य नए पत्ते लगते हैं।
बौद्धिकता केवल असाधारण प्रतिभा से सम्पन्न व्यक्तियों में ही नहीं होती अपितु समाज का साधारण से साधारण व्यक्ति और असाधारण से असाधारण व्यक्ति देश की संस्कृति के निर्माण में अपना सहयोग देता है।
किसी देश की संस्कृति उसकी सम्पूर्ण मानसिक निधि को सूचित करती है।
संस्कृति किसी भी समाज का समग्र व्यक्तित्त्व है, जिसका निर्माण उस समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के विचार, भावना, आचरण तथा कार्यकलाप से होता है।
संस्कृति मनुष्य की आत्मोन्नति का मापदण्ड भी है और आत्माभिव्यक्ति का साधन भी। – स्वामी ईश्वरानंद गिरि
सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की और संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है।
भारत के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार-
अगर इस धरती पर कोई जगह है जहाँ सभ्यता के आरम्भिक दिनों से ही मनुष्यों के सारे सपने आश्रय पाते रहे हैं, तो वह हिन्दुस्तान है
– रोमां रोलां। (19वीं-20वीं शताब्दी के फ्रैंच लेखक एवं नाटककार )
हे भारत! मैं तुम्हें विस्मययुक्त श्रद्धा और आश्चर्य के साथ प्रणाम करता हूँ …… कला और दर्शन के क्षेत्र में अति-उच्च स्थान प्राप्त उस भारत को जिसका मैं विशेषज्ञ हूँ।
– पियरे लोती।
समस्त लेखकों की एकमत से यह राय है कि पृथ्वी पर रहने के लिए भारत सबसे अधिक रमणीय स्थल है और विश्व का सबसे आनन्ददायक प्रदेश है…… यदि यह कहा जाए कि स्वर्ग भारत में है तो आश्चर्य मत करना क्योंकि स्वर्ग स्वयं ही भारत से तुलना योग्य नहीं है।
– 14वीं शताब्दी के इतिहासकार अब्दुल्ला वासफ, ताजियत उल अम्सार में।
पाश्चात्य जगत् की कल्पनाओं में यह भारत हमेशा ही अत्युत्तम और अलंकृत, स्वर्ण और रत्नों से जगमगाता तथा मनमोहक गंधों से सुरभित रहा……..।
– अंग्रेजी विद्वान मुरे।
भारत की प्राचीन स्थिति निश्चित रूप से अतिविशिष्ट भव्यता की रही होगी।
– थॉर्नटन।
भारत में हर वस्तु विशिष्ट, भव्य और रूमानी है……।
– काण्डट ब्जोन्सर्टजेरना।
मनुष्य के मस्तिष्क का जितना भी विस्तार सम्भव है, हिन्दुओं के पास उसका सर्वाधिक विस्तार था।
– श्रीमती मैनिंग।
मानव मस्तिष्क के अध्ययन के इतिहास में स्वयं के अध्ययन में तथा हमारे वास्तविक अस्तित्त्व के अध्ययन में भारत का स्थान समस्त देशों में प्रथम है। अपने विशेष अध्ययन के लिए आप मानव मस्तिष्क के किसी भी क्षेत्र को चुनें, भले ही वह भाषा हो या धर्म, या पौराणिक कथाएँ, या दर्शन या फिर चाहे विधि या प्रथाएं या प्रारम्भिक कला या प्रारम्भिक विज्ञान, हर स्थिति में चाहने या न चाहने पर भी आपको भारत जाना ही होगा क्योंकि मानव के इतिहास की सबसे अधिक मूल्यवान और शिक्षाप्रद सामग्री का कोष भारत में और केवल भारत में ही है।
– प्रो. मैक्समूलर।