जब दिल्ली के अमीरों को प्रांतीय सूबेदारों द्वारा सेनाएं लेकर दिल्ली की तरफ कूच करने का समाचार मिला तो वे रजिया को सुल्तान बनाने की सोचने लगे। इस पर शाह तुर्कान ने शहजादी रजिया की हत्या कराने का प्रयत्न किया। रजिया चौकन्नी थी। वह जानती थी कि शाह तुर्कान तथा स्वयं सुल्तान रुकनुद्दीन की तरफ से ऐसा कुत्सित प्रयास किया जा सकता था। इसलिये तुर्कान का षड़यंत्र विफल हो गया और रजिया बच गई। शहजादी रजिया की हत्या का षड़यंत्र असफल रहने पर रुकुनुद्दीन तथा शाह तुर्कान की स्थिति अत्यन्त चिंताजनक हो गई।
शहजादी रजिया का दांव
किशोरावस्था से ही अपने पिता का राज्यकार्य संभाल रही रजिया को भी राजनीति के दांवपेच भलीभांति आ गये थे। वह रुकुनुद्दीन तथा उसकी मां बेगम तुर्कान से अधिक मजबूत राजनीति कर सकती थी। जब उसने सुना कि प्रांतीय सूबेदार दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं तो उसने निष्क्रिय बैठे रहना उचित नहीं समझा। उसने प्रांतीय सूबेदारों के दिल्ली पहुंचने से पहले ही दिल्ली के तख्त पर बैठने की योजना बनाई तथा शाह तुर्कान से दो-दो हाथ करने का निश्चय किया। रजिया भी तुर्कान की तरह बला की खूबसूरत थी। वह तुर्कान से अधिक बुद्धिमान थी। इस समय रजिया का यौवन अपने चरम पर था और वह स्वयं भी दैहिक सौन्दर्य की ताकत को अच्छी तरह समझती थी। जबकि तुर्कान अपना यौवन गंवाकर प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी थी। रजिया के साथ एक अच्छी बात और यह थी कि वह अभी तक अविवाहित थी और बहुत से अमीरों ने विशेषकर युवा अमीरजादों ने रजिया को पाने के ख्वाब पाल रखे थे। रजिया इन सब बातों से अनजान नहीं थी। उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अकेली ही उस योजना को अमल में लाने के लिये तैयार हो गई। युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये उसके पास केवल दो हथियार थे एक तो उसकी बुद्धि और दूसरा उसका दैहिक सौन्दर्य। इन्हीं हथियारों के बल पर रजिया ने अपना भाग्य आजमाने का निश्चय किया।
एक शुक्रवार को जब मुसलमान, दिल्ली की जामा मस्जिद में मध्याह्न की नमाज के लिए एकत्रित हो रहे थे, रजिया चुपचाप अपने महल से बाहर निकल पड़ी। उसने भड़काऊ लाल रंग का लिबास पहन रखा था जो नौजवानों को पागल कर देने के लिये काफी था। वह अपनी मोहक अदा के साथ घोड़े पर सवार हुई और आधे मुंह पर नकाब लगाकर अचानक मस्जिद के सामने प्रकट हुई। उस समय लोग नमाज पढ़कर लौट रहे थे। रजिया ने इन लोगों के समक्ष, शाही तथा मनमोहक अंदाज में शाह तुर्कान के विरुद्ध अभियोग लगाते हुए अपने लिये न्याय की प्रार्थना की। सैंकड़ों मुस्लिम नौजवान शहजादी के के रूप-पाश और मोहक अभिनय के जादू में बंध गये। उन्होंने बेइन्तहा हुस्न की परी रजिया की अभ्यर्थना स्वीकार कर ली।
देखते ही देखते नौजवानों ने शाही महल घेर लिया। रजिया के इस तरह सहायता मांगने की खबर दिल्ली की तंग गलियों में आग की तरफ फैली और हजारों लोग अपने घरों से हथियार लेकर महल की तरफ बढ़ने लगे। बहुत से अमीर तथा अमीरजादे भी अपने सिपाहियों को लेकर रजिया की मदद के लिये पहुंचने लगे। जब उनकी संख्या कई हजार हो गई तो उनके मन से सुल्तान के सिपाहियों का भय जाता रहा और वे सिपाहियों को धकेल कर महल में घुस गये। सुल्तान के सिपाही भी सुल्तान के प्रति ज्यादा वफादार नहीं थे। महल में घुसी भीड़ ने सुल्तान की माँ शाह तुर्कान को बंदी बना लिया तथा घसीटते हुए महल के बाहर ले लाये। उसके बाद सुल्तान को भी ढूंढ निकाला गया और बंदी बना कर जेल में ठूंस दिया गया।