Friday, March 29, 2024
spot_img

प्रांतों की स्वाभाविक संस्कृति को कुचल रही हैं राजनीतिक पार्टियाँ!

लालची नेताओं के लिए वोट चरने का मैदान बन गए हैं प्रांत!

भारत हजारों साल पुराना देश है जिसका स्वरूप समय-समय पर बदलता रहा है। इसके वर्तमान स्वरूप का निर्माण 15 अगस्त 1947 को 11 ब्रिटिश शासित प्रोविंसों, 6 ब्रिटिश शासित कमिश्नरियों तथा लगभग 565 देशी राजाओं द्वारा शासित प्रिंसली स्टेट्स में से पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान को निकाल देने के बाद एक संघ के रूप में हुआ।

26 जनवरी 1950 को लागू हुए भारतीय संविधान के माध्यम से इन इकाइयों को मिलाकर एक वृहद् इकाई का गठन किया गया जिसके लिए संविधान में ‘यूनियन ऑफ इण्डिया’ शब्द का प्रयोग किया गया तथा यूनियन ऑफ इण्डिया की पहचान ‘हम भारत के लोग’ के रूप में स्पष्ट की गई।

26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जो कि संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे, भारत का नया संविधान लागू करने की घोषणा करते हुए कहा कि आज पहली बार एक ऐसे संविधान की शुरुआत हो रही है जिसके दायरे में पूरा देश है और हम एक ऐसे संघीय गणराज्य को जन्म लेते हुए देख रहे हैं जिसमें अनेक राज्य हैं, जिनकी अपनी कोई संप्रभुता नहीं है और जो वास्तव में संघ के ही अंग हैं।

वास्तव में ऐसे राज्य को ही सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न कहा जा सकता है जिसकी संप्रभुता को राज्य के भीतर अथवा बाहर की कोई भी शक्ति सुपरसीड नहीं करती। संविधान निर्माताओं ने ऐसे ही भारत की संकल्पना की थी और उसी संकल्पना को साकार करने के लिए देश का संविधान बनाया था।

आज के भारत में 28 राज्य एवं 8 केन्द्रशासित प्रदेश हैं। स्वतंत्र भारत में राज्यों का गठन भाषाई भिन्नता के आधार पर किया गया क्योंकि प्रत्येक भाषा एक विशिष्ट प्रकार की संस्कृति की द्योतक है, जैसे- कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, उड़िया, गुजराती, बंगाली आदि। केन्द्र शासित प्रदेशों का निर्माण उन क्षेत्रों की विशिष्ट परस्थितियों एवं प्रशासनिक आवश्यकताओं के आधार पर किया गया, जैसे पुर्तगालियों द्वारा शासित क्षेत्र गोआ, दमन एवं दीव, फ्रांसिसियों द्वारा शासित क्षेत्र पाण्डिचेरी तथा पहले डेन्मार्क एवं बाद में अंगेजों द्वारा शासित क्षेत्र अण्डमान एवं निकोबार को अंग्रेजों द्वारा शासित क्षेत्रों में न मिलाकर अलग केन्द्रशासित क्षेत्र बनाया गया।

To Purchage this book, please click on image.

स्वतंत्र भारत में प्रांतों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया गया कि प्रत्येक क्षेत्र की संस्कृति को बिना किसी व्यवधान के मुस्कुराते रहने दिया जाए और वहाँ के निवासी सदियों से चली आ रही परम्पराओं को आगे भी जारी रखते हुए अपने जीवन आदर्शों एवं सनातन मूल्यों का आनंद लेते रह सकें।

आजादी के बाद सत्ता के लालची नेताओं ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारतीय प्रांतों को जो स्वरूप प्रदान किया है, उससे ऐसा लगता है जैसे भारत के प्रांत सांस्कृतिक इकाइयां न होकर राजनीतिक बाड़े या नेताओं के लिए वोट चरने वाले चारागाह हैं। 1952 के प्रथम लोकसभा चुनावों से ही वोटो के लालची नेताओं ने ऐसे घिनौने खेल खेलने आरम्भ कर दिए थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा पीडीपी ने काश्मीर को मुस्लिम वोटों का चारागाह बनाकर सालों तक वोटों की खूब चराई की। पंजाब में अकाली दलों ने पंजाब को सिक्ख वोटों का चारागाह बना दिया। कम्युनिस्टों ने पश्चिमी बंगाल तथा केरल को कम्युनिस्ट बाड़ों में बदल दिया।

भारतीय प्रांतों के इस बदले हुए स्वरूप में पश्चिमी बंगाल का मतलब ममता बनर्जी का बाड़ा, पंजाब का मतलब शिरोमणि अकाली दल या आप पाटी का बाड़ा, केरल का मतलब कम्युनिस्टों का बाड़ा, तमिलनाडु का मतलब जयललिता या करुणानिधि का बाड़ा, कश्मीर का मतलब महबूबा मुफ्ती या फारुख अब्दुल्ला का बाड़ा, उड़ीसा का मतलब नवीन पटनायक का बाड़ा और दिल्ली का मतलब केजरीवाल का बाड़ा हो गया है। यही स्थिति अन्य राज्यों में भी है।

जब तक केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही, तब तक देश में राजनीतिक बाड़ों की संख्या अपेक्षाकृत सीमित रही, क्योंकि तब तक देश में क्षेत्रीय दलों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी किंतु विगत कुछ दशकों में क्षेत्रीय दलों की संख्या बढ़ी है तथा जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है, तब से क्षेत्रीय दलों ने अपने-अपने प्रांतों की राजनीतिक बाड़ाबंदी घनीभूत कर दी है।

इसका एक बड़ा कारण यह भी है क्योंकि केन्द्र की कांग्रेस सरकारें जब भी आवश्यक समझती थीं, राज्य सरकारों को बिना किसी हिचक के बर्खास्त कर देती थीं जवाहरलाल नेहरू ने केरल की प्रथम सरकार को केवल इसलिए बर्खास्त कर दिया था क्योंकि वह कम्युनिस्टों की सरकार थी किंतु जब से केन्द्र में गैर कांग्रेस सरकारें बननी आरम्भ हुईं तब से कोर्ट के दखल के कारण केन्द्र से यह अधिकार छिन गया। राबड़ी देवी की बर्खास्त सरकार को कोर्ट ने वापस जीवित कर दिया। तब से राज्यों ने केन्द्र सरकार की परवाह करनी बंद कर दी।

इसका एक घिनौना उदाहरण तेलंगाना के रूप में हमारे सामने है। जब से के चंद्रशेखर राव तेलंगाना के मुख्यमंत्री बने हैं, उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तेलंगाना यात्राओं के समय शिष्टाचार स्वागत की परम्परा बंद कर दी है। हम भारत के लोग ऐसे तो नहीं थे कि जब परिवार का मुखिया घर आए तो उसके स्वागत में उठकर खड़े भी न हों!

ममता बनर्जी ने भारत के प्रधानमंत्री के लिए यह कह कर भारत के लोगों का अपमान किया कि वे प्रधानमंत्री मोदी की कमर में रस्सी बांधकर उन्हें बांगलादेश भेज देंगी तथा उन्हें दीपावली के उपहार में खाने के लिए पत्थर भिजवाएंगी। ममता बनर्जी ने तो भारत के गृहमंत्री तथा भाजपा के अन्य नेताओं की यात्राओं के दौरान उनकी रैलियों एवं सभाओं में खूनी हमले तक करवाए। अपनी ही पार्टी के गुण्डों से गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रतिमा तक तुड़वा दी ताकि अमितशाह की रैली पर आरोप मंढ़ा जा सके। हम भारत के लोगों की ऐसी परम्पराएं तो नहीं थीं!

आज केरल एक ऐसे खूनी बाड़े में तब्दील हो चुका है जिसमें आए दिन आरएसएस के स्वयं सेवकों की हत्याएं होती हैं तथा विरोधी पार्टियों के सदस्यों के हाथ-पैर काटे जाते हैं। यहाँ तक कि अब तो पंजाब में भी, अस्सी के दशक में खालिस्तान समर्थकों द्वारा खेला गया घिनौना खेल फिर से आरम्भ होने की आहट सुनाई देने लगी है। पंजाब में शिवसेना के एक कार्यकर्ता को इसलिए गोलियों से भून दिया गया क्योंकि वह हिन्दू मंदिर में तोड़ी गई मूर्तियों के अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहा था।

राजनीतिक क्षुद्रता के दौर में प्रत्येक प्रांत के मतदाता के सामने लगभग तीन-चार क्षेत्रीय दल पनप गए हैं जो कहीं ‘एमवाई’ जैसे फार्मूले बनाकर तो कहीं ‘जय भीम और जय मीम’ जैसे नारे देकर मतदाताओं के वोट चरती हैं। इन क्षेत्रीय दलों से लड़ने के लिए मतदाताओं के सामने कांग्रेस तथा भाजपा के रूप में दो प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दल हैं।

इन दो राष्ट्रीय दलों में से भी कांग्रेस की हालत यह है कि जब कांग्रेस शासित राजस्थान में किसी महिला का बलात्कार होता है तो राहुल और प्रियंका की जीभ तक नहीं खुलती किंतु जब यही काम भाजपा शासित यूपी में होता है तो पूरी कांग्रेस रैलियां लेकर दौड़ पड़ती है और प्रियंका गांधी महिला पुलिस कांस्टेबल को धक्का देकर किसी कार्यकर्ता की मोटर साइकिल पर बैठकर पीड़िता के घर पहुंचती हैं और सोचती हैं कि अब यूपी रूपी वोटों का चारागाह हमारे लिए उपलब्ध हो जाएगा।

जब-जब ऐसा होता है, तब-तब ऐसा लगता है मानो भारतीय संस्कृति दूर खड़ी खून के आंसू बहा रही है। हम भारत के लोग कभी भी ऐसे न थे कि हमारी बेटी के साथ बुरा हो तो रोएं और पड़ौसी की बेटी के साथ बुरा हो तो हंसें!

केवल दो राज्यों में सिमट चुकी और वहाँ भी अंतिम सांसें गिन रही कांग्रेस अब पूरी तरह से क्षेत्रीय दलों की राजनीति पर उतर आई है और वह भी भाजपा से जीतने के लिए केजरीवाल की ‘आप’ पार्टी जैसे हथकण्डे अपना रही है। एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा कि कांग्रेस ने दिसम्बर 2022 में होने वाले गुजरात चुनावों में अपने ‘घोषणा पत्र में ‘आप पार्टी’ की ही तरह हर घर को 300 यूनिट फ्री बिजली देने की बात कही है।

क्या कभी कांग्रेस ने यह सोचा है कि यदि कभी आगे चलकर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सरकार बनी तो क्या कांग्रेस पूरे देश में हर घर को 300 यूनिट बिजली फ्री दे सकती है! शायद कांग्रेस जानती है कि सोचने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि अब उसकी कोई संभावना भी नहीं है। भारत भर में हर घर को 300 यूनिट बिजली फ्री देने का अर्थ यह है कि भारत ने अपनी बर्बादी का मार्ग स्वयं ही चुन लिया, उसे पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रुओं की आवश्यकता नहीं है।

भारतीय संविधान में सद्भावना स्वरूप प्रांतों को राज्य कहा गया किंतु कांग्रेस की मानसिक स्थिति ऐसे है कि राहुल गांधी कहते हैं कि भारत के प्रांत, अलग-अलग देश हैं। तो क्या कांग्रेस यह कहना चाह रही है कि भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व देश नहीं है अपितु प्रभुतासम्पन्न देशों का झुण्ड है???? इससे अधिक शर्मानाक स्थिति और क्या हो सकती है कि यदि वोटों का खेत हम न चर पाएं तो इस खेत को ही बिखेर दो!

देश में हालात यहाँ तक भयावह हो चुके हैं कि जिस अहमदाबाद-उदयपुर रेलट्रैक का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया, उस रेल ट्रैक पर 13 दिन के भीतर-भीतर राजस्थान में बम विस्फोट हो गया। हम भारत के लोग ऐसे तो नहीं थे!

प्रांतों की संस्कृति को तेजी से कुचल रही राजनीतिक पार्टियों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वे कभी स्वस्थ राजनीति की तरफ मुंह भी करेंगी। अच्छा यही होगा कि देश का मतदाता इस बात को सोचे कि वे इस हजारों साल पुराने महान देश के सुसभ्य नागरिक हैं। उनके पुरखों ने जो संस्कृति बनाई थी, वह तभी सुरक्षित बनी रह सकती है जब मतदाता यह समझें कि वे वोटरों की भीड़ मात्र नहीं है, उनका प्रांत नेताओं के चरने के लिए वोटों का चारागाह नहीं है, या वे किसी नेता अथवा पार्टी के बाड़े में बंद भेड़ें नहीं हैं।

समय आ गया है जब मतदाताओं को आगे बढ़कर, राजनीतिक पार्टियों एवं नेताओं को याद दिलाना होगा कि ‘हम भारत के लोग’ ऐसे देश के नागरिक हैं जिसमें एक संविधान चलता है, एक प्रधान चलता है और एक ही निशान चलता है। इस देश में अनेक राज्य स्थित हैं किंतु राज्यों की अपनी कोई संप्रभुता नहीं है, भारत की संप्रभुता ही हमारी संप्रभुता है। हम सब भारत हैं, एक मतदाता के रूप में, एक नागरिक के रूप में और एक प्रांत के रूप में, हम भारत के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source