चन्द्रमा ने देवगुरु बृहस्पति की पत्नी का हरण कर लिया!
भगवान श्रीहरि विष्णु के नाभि-सरोवर के कमल से प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। विष्णु पुराण तथा हरिवंश पुराण सहित अनेक ग्रंथों में आई एक कथा के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र हुए अत्रि और अत्रि के पुत्र हुए चंद्रमा। उन्हीं अत्रि के नेत्रों से अमृतमय चन्द्रमा का जन्म हुआ।
प्रजापति ब्रह्मा ने चन्द्रमा को ब्राह्मण, औषधि और नक्षत्रों का अधिपति बना दिया। एक बार चंद्रमा ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के पूर्ण हो जाने से चन्द्रमा की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल गई। इसस चंद्रमा पर राजमद छा गया।
राजमद से युक्त चन्द्रमा ने देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का हरण कर लिया। देवगुरु ने चंद्रमा से, अपनी पत्नी को लौटा देने के लिये बार-बार याचना की परन्तु चंद्रमा ने देवगुरु की बात नहीं मानी। दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने चन्द्रमा का पक्ष लिया। इस कारण जम्भ तथा कुंभ नामक अनेक दैत्य भी चंद्रमा के पक्ष में आ गए।
देवगुरु बृहस्पति को अकेला देखकर भवगान शिव एवं समस्त देवता देवगुरु बृहस्पति के पक्ष में आ गए। विष्णु पुराण के अनुसार देवगुरु बृहस्पति अंगिरा के पुत्र हैं तथा भगवान शिव ने अंगिरा से शिक्षा प्राप्त की थी। इसलिए भगवान शिव ने बृहस्पति का पक्ष लिया। भगवान शिव ने आजगव नामक धनुष लेकर ब्रह्मशिर नामक श्रेष्ठ शर दैत्यों को लक्ष्य करके छोड़ दिया। इससे दैत्यों का समस्त यश समाप्त हो गया।
इस प्रकार देव एवं दानव एक बार पुनः एक दूसरे के समक्ष आ खड़े हुए और देखते ही देखते घनघोर संग्राम छिड़ गया। चूंकि यह युद्ध देवगुरु बृहस्पति तारा को लेकर हुआ, इसलिए इस युद्ध को तारकामय संग्राम कहा गया।
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इस संग्राम के कारण समस्त संसार क्षुब्ध होने लगा। इस पर तुषितगण आदि देव, प्रजापति ब्रह्मा की शरण में पहुंचे। ब्रह्माजी ने शुक्राचार्य एवं शिवजी को समझा कर देवताओं एवं दानवों को युद्ध से निवृत्त कर दिया तथा देवगुरु बृहस्पति को उनकी पत्नी तारा पुनः दिलवा दी। जब तारा बृहस्पति के पास आई तो उन्होंने देखा कि तारा गर्भवती है।
बृहस्पति ने तारा से पूछा- ‘यह बालक किसका है?’
जब तारा ने बृहस्पति के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो बृहस्पति ने कहा- ‘डर मत, तू स्त्री है, इसलिए मैं तुझे दण्डित नहीं करूंगा। देवी होने के कारण तू निर्दाेष भी है। अतः बता कि यह पुत्र किसका है।’
अपने पति की बात सुनकर तारा अत्यन्त लज्जित हुई किंतु उसने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर देवगुरु बृहस्पति ने कहा- ‘मेरे क्षेत्र में किसी दूसरे का पुत्र धारण करना उचित नहीं है। इसे दूर कर, अधिक धृष्टता करना उचित नहीं है।’
बृहस्पति के ऐसा कहने पर पतिव्रता तारा ने वह गर्भ ‘इषीकास्तम्ब’ अर्थात् सींक की झाड़ी में रख दिया। कुछ समय के पश्चात् उस तेजस्वी गर्भ से एक अत्यंत तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ जिसने अपने तेज से समस्त देवताओं का तेज भी मलिन कर दिया।
बालक की सुंदरता को देखकर बृहस्पति और चंद्रमा दोनों ही उस बालक को लेने के लिए उत्सुक हुए। इस पर देवताओं ने तारा से पूछा- ‘यह बालक किसका है?’
देवताओं के बार-बार पूछे जाने पर भी लज्जावती तारा ने लज्जावश कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह बालक भी यह सारा वार्तालाप सुन रहा था तथा अपनी माँ के आचरण को देखकर क्रोधित हो रहा था।
उस बालक ने अत्यंत क्रुद्ध होकर कहा- ‘अरी दुष्टा माँ! तू मेरे पिता का नाम क्यों नहीं बताती! तुझ व्यर्थ लज्जावती की मैं ऐसी दुर्गति करूंगा जिससे तू बोलना ही भू जाएगी!’
देवताओं के बीच मचे इस कलह को देखकर पितामह ब्रह्मा ने तारा को अपने पास बुलाया और उससे पूछा- ‘पुत्री! ठीक-ठीक बता यह पुत्र किसका है, बृहस्पति का या चंद्रमा का?’
इस पर तारा ने अत्यंत लज्जित होकर उत्तर दिया- ‘चंद्रमा का।’
इस पर नक्षत्रपति भगवान चंद्रमा ने उस बालक को हृदय से लगाकर कहा- ‘बहुत ठीक बेटा, बहुत ठीक। तुम बड़े बुद्धिमान हो, इसलिए मैं तुम्हारा नाम बुध रखता हूँ।’
विष्णु पुराण के साथ-साथ यह कथा अन्य पुराणों में भी थोड़े-बहुत अंतर के साथ मिलती है। वस्तुतः इस कथा में आए पात्रों के नामों से ही यह अनुमान हो जाता है कि यह किसी खगोलीय घटना का मानवीकरण करके रूपक खड़ा किया गया है। बृहस्पति, चंद्रमा, तारा एवं बुध आदि नामों से आज भी खगोलीय पिण्ड स्थित हैं। इस कथा को पढ़ने से आभास होता है कि बृहस्पति एवं चंद्रमा नामक दो नक्षत्रों का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अथवा चुम्बकीय प्रभाव किसी तारे पर था। इस गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अथवा चुम्बकीय प्रभाव के कारण उस तारे से कुछ पदार्थ अलग हुआ जिससे एक अन्य खगोलीय पिण्ड की उत्पत्ति हुई और उसे बुध नाम दिया गया।
चूंकि जिस तारे से बुध उत्पन्न हुआ, उस तारे पर बृहस्पति एवं चंद्रमा दोनों का ही प्रभाव था, इसलिए यह संदेह उत्पन्न हुआ कि बुध का जन्म किस खगोलीय पिण्ड के प्रभाव के कारण हुआ है। इसलिए बृहस्पति एवं चंद्रमा के बीच विवाद की एवं उसके कारण हुए देवासुर संग्राम की कल्पना की गई। अंत में सृष्टि बनाने वाले ब्रह्माजी ने ही देवताओं को बताया कि इस नए नक्षत्र का जन्म चंद्रमा के प्रभाव से हुआ है।
यहाँ हम पाठकों से कहना चाहेंगे कि वे चन्द्रमा के नाम से यह न समझें कि इस समय जो चंद्रमा धरती का उपग्रह है, उस काल में यह चंद्रमा इसी स्थिति में रहा होगा। पर्याप्त संभव है कि चंद्रमा की स्थिति आज की स्थिति से भिन्न रही हो तथा कालांतर में नक्षत्रों की स्थितियों में आए परिवर्तनों के कारण चंद्रमा किसी और स्थान से खिसक कर वर्तमान स्थिति में पहुंचा हो!
पुराणों के अनुसार इसी बुध के द्वारा इला के गर्भ से पुरूरवा का जन्म हुआ। हम जानते हैं कि इला धरती को कहते हैं। अतः बुध द्वारा इला के गर्भ से पुरूरवा को उत्पन्न करने का आख्यान पुनः एक खगोलीय घटना की ओर संकेत करता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता