Saturday, July 27, 2024
spot_img

83. हुमायूँ की कृपाओं के उपरांत भी उसके भाइयों ने दुष्टता नहीं छोड़ी!

 हुमायूँ ने अपने गद्दार भाइयों कामरान तथा अस्करी के अपराधों को भुलाकर उन्हें फिर से गले लगा लिया तथा अपने भाइयों में अपनी सल्तनत का फिर से बंटवारा कर दिया। इसके बाद हुमायूँ पारियान दुर्ग होता हुआ काबुल लौट आया।

एक दिन एक उज्बेग शहजादा अब्बास सुल्तान, हुमायूँ से मिलने काबुल आया। हुमायूँ ने उसका स्वागत किया तथा अपनी छोटी बहिन गुलचेहर बेगम का उससे विवाह कर दिया। उन्हीं दिनों काश्मीर के शासक मिर्जा हैदर ने अपना एक दूत हुमायूँ के पास भेजकर उसे काश्मीर आने के लिए आमंत्रित किया।

हुमायूँ के सौभाग्य से उन्हीं दिनों ईरान से भी शाह का एक दूत आकर हुमायूँ से मिला। हुमायूँ ने उसके हाथों ईरान के शाह के लिए बहुत से उपहार भिजवाए। हुमायूँ ने अनुभव किया कि उसके जीवन का बुरा समय बीत गया है और अच्छे दिन लौट आए हैं। फरवरी 1549 के आरम्भ में हुमायूँ ने बल्ख पर अभियान करने का निश्चय किया ताकि कुछ साल पहले असफल रहे अभियान को अब पूर्ण किया जा सके।

हुमायूँ ने एक बार फिर से अपने सौतेले एवं चचेरे भाइयों को बल्ख आने के लिए लिखा और स्वयं भी एक सेना लेकर बल्ख के लिए रवाना हो गया। सबसे पहले मिर्जा सुलेमान का पुत्र मिर्जा इब्राहीम अपनी सेना लेकर हुमायूँ की सेना से आ मिला। हुमायूँ काबुल से चलकर ईस्तालिफ, पंजसीर, अन्दाब और नारी होता हुआ नीलबर नामक स्थान पर पहुंचा। मिर्जा हिन्दाल तथा मिर्जा सुलेमान भी नीलबर में हुमायूँ से आ मिले।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

मिर्जा कामरान तथा मिर्जा अस्करी पहले की तरह इस बार भी नहीं पहुंचे। हुमायूँ को विश्वास था कि इस बार वे दोनों अवश्य आएंगे। जब हुमायूँ बकलान के निकट पहुंचा तो उसने अपनी सेना ऐबक नामक कस्बे पर आक्रमण करने भेजी। यह कस्बा बल्ख पर अधिकार जमाए बैठे उज्बेगों के अधीन था। हुमायूँ की सेना ने तीन दिन तक ऐबक दुर्ग की घेराबंदी करके उसे अपने अधिकार में ले लिया। यहाँ से हुमायूँ ट्रांसऑक्सियाना विजय के लिए जाना चाहता था किंतु वह कामरान की प्रतीक्षा में ऐबक में ही ठहरा रहा।

हुमायूँ का यह निर्णय हुमायूँ के लिए एक बार फिर से भारी पड़ गया। तब तक बल्ख के उज्बेगों ने दूर-दूर के उज्बेग राज्यों से उज्बेगों की सेनाएं बुला लीं और वे हुमायूँ की सेना पर टूट पड़े। स्वयं हुमायूँ को भी इस युद्ध में तलवार चलानी पड़ी और बड़ी कठिनाई से उज्बेगों को खदेड़ा जा सका। हुमायूँ चाहता था कि उज्बेगों का पीछा करके उन्हें नष्ट किया जाए किंतु हुमायूँ के कुछ अमीर तुरंत काबुल लौट जाना चाहते थे। उन्हें कामरान का भय सता रहा था। इसलिए उन्होंने हुमायूँ की सेना में यह अफवाह फैला दी कि कामरान काबुल के लिए रवाना हो गया है।

हुमायूँ के कुछ अमीर इस अफवाह पर विश्वास करके अपनी सेनाएं लेकर एक बार फिर से हुमायूँ को छोड़कर काबुल की तरफ भाग गए। वे बादशाह की बजाय अपने परिवारों को बचाना अधिक श्रेयस्कर समझते थे। हुमायूँ के सामने अब तक यह अच्छी तरह स्पष्ट हो गया था कि जब तक हुमायूँ अपनी सेना के मन से कामरान का भय समाप्त नहीं करता, तब तक हुमायूँ को किसी भी अभियान में सफलता नहीं मिल सकती। इसलिए हुमायूँ एक बार फिर बल्ख अभियान को अधूरा छोड़कर काबुल की तरफ लौट पड़ा। जब उज्बेगों को ज्ञात हुआ कि हुमायूँ काबुल लौट रहा है, तो उज्बेगों की सैनिक टोलियों ने हुमायूँ पर पीछे से आक्रमण करना आरम्भ कर दिया।

जब हुमायूँ अपने सैनिकों के साथ एक जंगल से होकर निकल रहा था, तब उज्बेग बिल्कुल निकट आ गए और हुमायूँ के दस्ते पर तीर बरसाने लगे। एक तीर हुमायूँ के घोड़े को आकर लगा और घोड़ा धरती पर गिर कर मर गया। हुमायूँ के अधिकांश सैनिक हुमायूँ को जंगल में ही छोड़कर भाग गए। हुमायूँ के अंगरक्षकों ने बड़ी कठिनाई से उसे अपने घेरे में लिया। हैदर मुहम्मद अख्ता नामक एक अमीर ने बादशाह को अपना घोड़ा दिया जिस पर बैठकर हुमायूँ उज्बेगों की पकड़ से दूर हो गया। अबुल फजल ने लिखा है कि हुमायूँ ने अपने कुछ सैनिक काबुल की तरफ दौड़ाए ताकि वे अकबर के पास पहुंचकर सैनिक सहायता ला सकें।

उज्बेग अब भी हुमायूँ के पीछे लगे हुए थे। हुमायूँ चहार चश्मा घाटी, घूरबंद, सियारान तथा कराबाग होता हुआ मामूरा नामक स्थान पर पहुंचा। यहीं पर अकबर अपनी सेना लेकर आ पहुंचा। इस समय अकबर की आयु 6-7 साल की थी। इसलिए अबुल फजल की यह बात सही प्रतीत नहीं होती कि अकबर सेना लेकर आया। 6-7 साल का बालक इस लायक नहीं होता कि किसी सेना का नेतृत्व कर सके। अकबर द्वारा लाई गई सेना के साथ हुमायूँ काबुल पहुंचा। इस प्रकार एक बार फिर से मिर्जा कामरान तथा मिर्जा अस्करी द्वारा साथ नहीं दिए जाने के कारण हुमायूँ का अभियान बुरी तरह से विफल हो गया।

काबुल पहुंचकर हुमायूँ ने अपने अमीरों एवं वजीरों के पदों में बड़े बदलाव किए। वह अपने अमीरों की कायरता से परेशान था जो किसी भी तरह विश्वसनीय नहीं थे। इसलिए हुमायूँ ने पुराने वजीर को हटाकर अफजल खाँ को वजीर नियुक्त किया तथा ख्वाजा मुहम्मद बेग को अपना दीवान बनाया। संभवतः इन लोगों ने मुसीबत के क्षणों में हुमायूँ का साथ नहीं छोड़ा था।

अब हुमायूँ ने मिर्जा कामरान और मिर्जा अस्करी की सुधि ली जो वायदा करके भी हुमायूँ की सेवा में नहीं पहुंचे थे। मिर्जा कामरान ने इस बार भी पुराना वाला रवैया अपनाया था। उसने हुमायूँ की सेवा में उपस्थित होने की बजाय मिर्जा सुलेमान से अपना पुराना वैर चुकता करने के लिए टालिकान पहुंचने का निर्णय लिया। कामरान ने अपनी राजधानी कुलाब को मिर्जा अस्करी के संरक्षण में छोड़ा और स्वयं सेना लेकर टालिकान के लिए रवाना हो गया।

इस समय मिर्जा सुलेमान टालिकान में नहीं होकर बल्ख की सीमा पर हुमायूँ के साथ था। जब सुलेमान को ज्ञात हुआ कि कामरान टालिकान पर चढ़कर आया है तो सुलेमान ने हुमायूँ से अनुमति लेकर अपने पुत्र मिर्जा इब्राहीम को टालिकान के लिए रवाना किया। जब हुमायूँ उज्बेगों से परास्त होकर काबुल चला गया तो मिर्जा सुलेमान और मिर्जा इब्राहीम टालिकान जाने की बजाय बदख्शां की घाटी में चले गए ताकि मिर्जा कामरान से बचा जा सके।

हुमायूँ की पराजय और सुलेमान के पलायन के बाद मिर्जा कामरान ने कुंदूज पर शासन कर रहे अपने सौतेले भाई मिर्जा हिंदाल को संदेश भिजवाया कि वह हुमायूँ का साथ छोड़कर कामरान की तरफ हो जाए। मिर्जा हिंदाल एक बार हुमायूँ को छोड़ने की गलती कर चुका था और अब वह इस गलती को दोहराना नहीं चाहता था। इसलिए मिर्जा हिंदाल ने मिर्जा कामरान का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

इस पर कामरान ने कुंदूज को घेर लिया। कामरान ने उज्बेगों को भी अपनी सहायता के लिए बुलवा लिया। मिर्जा हिंदाल कामरान तथा उज्बेगों की सम्मिलित सेनाओं का सामना नहीं कर सकता था। इसलिए उसने एक चाल चली। यह एक ऐसी शातिर चाल थी जो दुनिया के हर कोने में चली जाती थी और हर बार अपने उद्देश्य में सफल रहती थी।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source