Saturday, July 27, 2024
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181 क्या अनारकली पर अधिकार को लेकर लड़े थे अकबर और सलीम!

राजा मानसिंह कच्छवाहा तथा खानेआजम अजीज कोका ने अकबर के आदेश पर सलीम के पुत्र खुसरो को अकबर का उत्तराधिकारी घोषित करने की तैयारी की किंतु रामसिंह कच्छवाहा की सहायता से सलीम अकबर तक पहुंचने में सफल हो गया। अकबर ने अपनी पगड़ी सलीम के सिर पर रख दी।

सलीम ने अपने पिता का सबसे बड़ा एवं एकमात्र जीवित पुत्र होते हुए भी और अपने पिता द्वारा साहिबे आलम अर्थात् अपना उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के उपरांत भी अपने पिता का राज्य छीनने के लिए अपने पिता से बगावत क्यों की तथा उसकी यह बगावत इतनी लम्बी क्यों चली, इस विषय पर किंचित् विचार किया जाना चाहिए।

मुगलों के इतिहास में अकबर के तीन पुत्रों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने युवावस्था प्राप्त की थी। इनमें से पहले का नाम सलीम, दूसरे का मुराद एवं तीसरे का दानियाल था। इनमें से सलीम सबसे बड़ा था जिसका जन्म ई.1569 में हुआ था। अकबर के दूसरे पुत्र मुराद का जन्म ई.1570 में तथा तीसरे पुत्र दानियाल का जन्म ई.1572 में हुआ था। अपने पिता का सबसे बड़ा पुत्र होने के कारण अकबर के तख्त पर पहला अधिकार सलीम का ही था। इसलिए सलीम को अपने दोनों छोटे भाइयों से भय नहीं होना चाहिए था।

अकबर के तीन पुत्रों में से केवल सलीम की माता ही किसी राजा की पुत्री थी। सलीम का जन्म आम्बेर की राजकुमारी हीराकंवर के पेट से हुआ था जिसे अकबर ने मरियम उज्जमानी की उपाधि दी थी। मुराद और दानियाल की माताएं मुगलों के महल में काम करने वाली दासियां थीं। इस कारण सलीम को बादशाह बनाने के लिए सलीम का ननिहाल पक्ष पूरी तरह मजबूत था जबकि मुराद और दानियाल के ननिहाल में ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें बादशाह बनाने के लिए अकबर को प्रभावित कर सके।

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अकबर के तीनों पुत्र सलीम, मुराद एवं दानियाल पक्के शराबी एवं नशेड़ी थे। उनमें से किसी ने भी कोई भी बड़ा युद्ध नहीं जीता था, उनमें से किसी में भी ऐसी कोई विशेषता नहीं थी जिसके कारण वह अपने शेष दोनों भाइयों की तुलना में, अपने पिता का अधिक स्नेह अर्जित कर सके। इस दृष्टि से भी सलीम को अपने दोनों छोटे भाइयों से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं थी।

सलीम और दानियाल दोनों का पालन पोषण सलीम की माता मरियम उज्जमानी अर्थात् आम्बेर की राजकुमारी हीराकंवर ने किया था। वह भी अपने औरस एवं बड़े पुत्र सलीम को छोड़कर सौतेले पुत्रों का पक्ष क्यों लेती! मुराद एवं दानियाल दोनों का निधन अकबर के जीवन काल में ही हो गया था, ऐसी स्थिति में भी सलीम को अपने पिता का राज्य प्राप्त करने के लिए बगावत करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

इतना सब कुछ होने पर भी सलीम ने अपने पिता के विरुद्ध लगभग पांच साल तक विद्रोह का झण्डा उठाए रखा तथा तीस हजार सैनिक जमा करके अपने पिता के खजानों को लूटता फिरा तो उसका कोई विशेष कारण होना चाहिए। क्या यह विशेष कारण अनारकली नामक एक दासी थी जिसके पेट से दानियाल का जन्म हुआ था?

मुगलों के इतिहास में मुराद और दानियाल की माताओं के नाम बड़ी ही चालाकी से छिपाए गए हैं। केवल एक अंग्रेज अधिकारी ने अपनी पुस्तक में अनारकली के पुत्र का नाम दानियाल लिखा है। कुछ लोगों का मानना है कि अकबर और सलीम के बीच अनारकली को लेकर तनाव उत्पन्न हुआ था जिसका परिणाम सलीम की बगावत के रूप में सामने आया। कहा जाता है कि अकबर की दासी अनारकली बड़ी ही खूबसूरत थी। उसका वास्तविक नाम नादिरा बेगम था। उसे शर्फुन्निसा भी कहा जाता था। वह अकबर के शासनकाल में व्यापारियों के एक काफिले के साथ ईरान से लाहौर आई थी।

ब्रिटिश पर्यटक विलियम फिंच ई.1608 से 1611 तक लाहौर में रहा था। उसने लिखा है कि अनारकली अकबर की कई पत्नियों में से एक थी। अनारकली से अकबर को एक पुत्र भी हुआ जिसे दानियाल कहा जाता था। अकबर के पुत्र सलीम से अनारकली के सम्बन्धों की अफवाह के कारण अकबर ने अनारकली को लाहौर के दुर्ग में चिनवा दिया। लाहौर में पंजाब सिविल सेक्रेटरिएट के पास सफेद रंग के पत्थरों से बना एक भवन है जिसे अनारकली का मकबरा कहा जाता है। जहाँगीर ने अनारकली की स्मृति में यह मकबरा बनवाया। यह आज भी बहुत अच्छी दशा में है। भवन के ऊपर एक खूबसूरत गुम्बद बना हुआ है तथा चारों कोनों पर गुम्बदाकार गुमटियां हैं। मकबरे के चारों ओर खूबसूरत बाग है।

सैयद अब्दुल लतीफ ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-लाहौर’ में लिखा है कि अनारकली अकबर की बेगम थी किंतु जहाँगीर से इश्क के चलते उसकी जान गई। मकबरे में स्थित कब्र पर ई.1599 और 1615 की तिथियां हैं जो अनारकली की मृत्यु एवं मकबरा पूर्ण होने की सूचना देती हैं। ई.1599 ही वह वर्ष है जब जहांगीर ने अकबर से पहली बार विद्रोह किया। अर्थात् अनारकली की मृत्यु और जहांगीर की बगावत का वर्ष एक ही है। इससे ब्रिटिश पर्यटक विलियम फिंच तथा सैयद अब्दुल लतीफ द्वारा लिखी गई इन बातों को बल मिलता है कि अनारकली अकबर की बेगम थी किंतु जहाँगीर से इश्क के चलते उसकी जान गई।

ई.1605 में सलीम जहाँगीर के नाम से बादशाह बना। ई.1615 में वह लाहौर आया। उसने लाहौर में अनारकली का मकबरा बनवाया तथा उसकी कब्र पर लिखवाया कि- ‘अगर मैं अपनी महबूबा को एक बार भी पकड़ सकता तो कयामत तक अल्लाह का शुक्रिया करता।’

कन्हैया लाल नामक लेखक ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-लाहौर’ में लिखा है कि अनारकली की मृत्यु बीमारी से हुई थी। बाद में अकबर ने उसका मकबरा बनवाया। सिख राजाओं ने उसे तुड़वा दिया और अंग्रेजों ने उस पर चर्च बनवा दिया। कन्हैयालाल का वर्णन सही प्रतीत नहीं होता जबकि सैयद अब्दुल लतीफ के विवरण अधिक सही जान पड़ते हैं क्योंकि मकबरे के शिलालेख, मकबरे के होने की सूचना देते हैं न कि चर्च की। आज भी वहाँ मेहराबों, गुम्बद एवं बुर्जों से युक्त एक आलीशान मकबरा बना हुआ है।

अकबर ई.1605 में मर गया था जबकि मकबरे पर शिलालेख की तिथि ई.1615 की है। अर्थात् यह मकबरा अकबर ने नहीं बनवाया था अपितु जहांगीर ने बनवाया था। विलियम फिंच तथा सैयद अब्दुल लतीफ द्वारा लिखे गए विवरणों और अनारकली के मकबरे पर लगे शिलालेख के भावुक शब्द यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त हैं कि अकबर की एक दासी जिसका नाम अनारकली था, वह अकबर के एक पुत्र की माता थी। जब सलीम जवान हुआ तो वह इसी दासी से प्रेम करने लगा जिसके कारण अकबर ने अनारकली की हत्या करवाई।

निश्चित रूप से अनारकली जहांगीर से उम्र में काफी बड़ी रही होगी! इस बात की काफी संभावना है कि अनारकली की हत्या से उन्मादी होकर ही जहांगीर ने अपने पिता अकबर को जहर देने एवं उसके विरुद्ध हथियार उठाने जैसे क्रूर निर्णय लिए होंगे न कि अकबर का राज्य पाने के लालच में।                      

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