Saturday, December 7, 2024
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88. हुमायूँ को चकमा देकर कामरान अफगानिस्तान से भारत भाग गया!

 मिर्जा हिंदाल की मृत्यु पर मुगलों के खेमे में भयानक शोक छा गया। बाबर के बेटों की आपसी लड़ाई का ऐसा भयावह परिणाम निकलेगा, इसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। जिस सल्तनत को बनाने के लिए बाबर ने अपना पूरा जीवन खपा दिया था, बाबर के बेटे न तो उस सल्तनत को आगे बढ़ा पा रहे थे और न उसे सुरक्षित रख पा रहे थे। हुमायूँ के लाख प्रयास करने पर भी कामरान मुगलों की आपसी कलह को समाप्त नहीं होने दे रहा था।

अब तक तो हुमायूँ ने मिर्जा कामरान और मिर्जा अस्करी के विरुद्ध कोई सख्त कदम नहीं उठाया था तथा हर बार उनके अपराधों को भुलाकर उन्हें गले लगाया था किंतु अब कामरान ने इसकी संभावनाएं समाप्त कर दी थीं। मिर्जा हिंदाल की हत्या एक ऐसा अपराध था, जिसे किसी भी कीमत पर क्षमा नहीं किया जा सकता था। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि मिर्जा हिंदाल की हत्या के बाद मिर्जा कामरान के जीवन में दुर्भाग्य का अंधेरा छा गया, उसे फिर किसी भी युद्ध में सफलता नहीं मिली। हुमायूँ ने कुछ समय पहले ही हिंदाल को गजनी की जागीर दी थी। हुमायूँ ने अब अपने पुत्र अकबर को गजनी का शासक बनाया तथा हिंदाल के समस्त सेवक भी अकबर को सौंप दिए। इस समय अकबर 10 वर्ष का हो चुका था।

हिंदाल की जागीर तथा सेवक अकबर को सौंपे जाने के पीछे अबुल फजल ने एक अजीब सा तर्क दिया है। वह लिखता है कि जब हिंदाल जीवित था, तब एक बार अकबर की पगड़ी उसके सिर से नीचे गिर गई। इस पर हिंदाल ने अकबर की पगड़ी उठाकर उसके सिर पर वापस रखी। इसलिए मिर्जा हिंदाल को अकबर के लिए शुभ माना गया। मिर्जा हिंदाल के पास 14 स्वामिभक्त सेवक थे जो हिंदाल के प्रति अनन्य निष्ठा रखते थे, ये समस्त सेवक अब अकबर के लिए निष्ठा रखने लगे। हिंदाल के सेवकों में बाबा दोस्त नामक एक अमीर भी था किंतु उसकी संगति और चरित्र अच्छा नहीं था, इसलिए हुमायूँ ने अकबर को बुरी संगति से बचाने के लिए बाबा दोस्त को अकबर की सेवा में नियुक्त नहीं किया।

हिंदाल की सेवा में मुहम्मद ताहिर खाँ नामक एक वृद्ध अमीर भी रहता था। वह बहुत अनुभवी एवं वीर माना जाता था। उसने भी इच्छा प्रकट की कि वह शहजादे अकबर की सेवा करना चाहता है किंतु हुमायूँ ने ताहिर खाँ को इसलिए अकबर की सेवा में नियुक्त करने से मना कर दिया क्योंकि ताहिर खाँ कामरान के हाथों से कुंदूज की रक्षा नहीं कर सका था।

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जपरियार गांव में मिर्जा हिंदाल को मारने के बाद मिर्जा कामरान की सेना जपरियार से बीहसूद भाग गई। हुमायूँ ने अकबर को तो उसके सेवकों के साथ काबुल भेज दिया तथा स्वयं कामरान का पीछा करते हुए बीहसूद पहुंच गया। हुमायूँ ने बीहसूद में एक मजबूत किला बनाने के आदेश दिए ताकि इस क्षेत्र के अफगान जागीरदारों की गतिविधियों पर नियंत्रण करने के लिए इस क्षेत्र में एक स्थाई सेना रखी जा सके।

हुमायूँ ने अपने गुप्तचरों की टोलियां चारों तरफ भिजवाईं ताकि कामरान की स्थिति का पता लगाया जा सके किंतु कामरान लगातार अपना ठिकाना बदलता रहा। अफगान कबीलों के सरदारों ने कामरान को न केवल अपने यहाँ शरण दी अपितु उसे हर संभव सहायता भी उपलब्ध करवाई।

कुछ अमीरों ने हुमायूँ को सलाह दी कि अब कामरान में बादशाह का विरोध करने की शक्ति शेष नहीं बची है, इसलिए बादशाह को काबुल लौट चलना चाहिए। इतने लम्बे समय तक राजधानी से दूर रहना ठीक नहीं है। जबकि कुछ अमीरों की सलाह थी कि बादशाह को यहीं पर रुककर उन अफगान कबीलों को दण्ड देना चाहिए जिन्होंने कामरान को शरण दे रखी है।

इस बार हुमायूँ कामरान के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करना चाहता था। संभवतः मिर्जा हिंदाल की मृत्यु से हुमायूँ किसी कठोर निश्चय पर पहुंच गया था। इसलिए उसने अफगान कबीलों पर कार्यवाही करने का निर्णय लिया ताकि कामरान को ढूंढा जा सके। अफगान कबीले दूर-दूर तक फैले हुए थे तथा अब तक यह ज्ञात नहीं हो सका था कि कामरान किस कबीले में छिपा हुआ है। हुमायूँ ने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि आगे बढ़ा जाए तथा जो भी कबीला विरोध करे उसे दण्ड दिया जाए। जब हुमायूँ ने यह अभियान आरम्भ किया तो एक दिन माहम अली कुली खाँ तथा बाबा खिजरी नामक दो अमीर हुमायूँ की सेना द्वारा पकड़े गए। ये दोनों अमीर कामरान के विश्वस्त थे तथा मलिक मुहम्मद मंदरोरी से सहायता प्राप्त करने के लिए जा रहे थे। इन दोनों को हुमायूँ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। हुमायूँ ने उनसे पूछा कि इस समय कामरान किस कबीले में है? माहम अली कुली खाँ ने बादशाह को गुमराह करने के उद्देश्य से एक दूरस्थ कबीले का नाम बताया किंतु बाबा खिजरी ने कहा कि मुझे ज्ञात है कि कामरान कहाँ है, इस समय वह बहुत घबराया हुआ है। यदि आप कुछ सैनिक मेरे साथ भेज दें तो मैं उन्हें कामरान के पास ले जा सकता हूँ।

बादशाह ने बाबा खिजरी की बात पर विश्वास करके अपने कुछ अमीरों को बाबा खिजरी के साथ जाने के आदेश दिए। ये लोग उसी रात कामरान को पकड़ने के लिए रवाना हो गए। पौ फटते ही हुमायूँ की सेना ने वह गांव घेर लिया तथा उस कबीले के अधिकांश स्त्री-पुरुष एवं बच्चों को मार दिया। उन्होंने बहुत से लोगों को बंदी बना लिया। अंत में ये लोग एक मकान में पहुंचे। उस समय कामरान मुँह ढंक कर सोया हुआ था। उसकी सेवा में केवल दो आदमी थे।

हुमायूँ के अमीरों ने उन दो आदमियों में से एक को पकड़ लिया तथा दूसरा भाग गया। पकड़े गए आदमी का नाम शाहकुली नारंजी था। इसके बाद खाट पर सोए हुए कामरान को उठाया गया। जब वह उठा तो हुमायूँ के अमीर यह देखकर चौंक गए कि वह कामरान नहीं है, वह तो कामरान होने का नाटक कर रहा था। वास्तव में जो दूसरा आदमी भाग गया था, वही मिर्जा कामरान था। इसके बाद मिर्जा कामरान की बहुत तलाश की गई किंतु वह हाथ नहीं आया। बहुत दिनों बाद हुमायूँ को अपने विश्वस्त आदमियों से सूचना मिली कि कामरान भारत चला गया है। अबुल फजल तथा गुलबदन बेगम दोनों ने लिखा है कि कामरान भारत के शासक सलीमशाह की सेवा में चला गया।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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