कोई ऐसे ही एकनाथ शिंदे की सरकार नहीं बना देता!
भारतीय राजनीति में द्वापर के योगिराज कृष्ण और कलियुग के आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य के नाम आदर से लिए जाते हैं। इन दोनों के काल में हजारों साल का अंतर है, इसके उपरांत भी दोनों की राजनीति में कुछ समानताएं जबर्दस्त थीं। दोनों की राजनीतिक चालों को समय से पहले कोई कभी नहीं समझ पता था, न शत्रुपक्ष और न मित्रपक्ष।
दोनों के ही चिंतन के कैनवास अत्यंत विस्तृत थे एवं दृष्टिकोण बहुआयामी। जब कृष्ण और चाणक्य के शत्रु और मित्र तत्कालीन परिस्थितियों के समाधान के लिए व्याकुल रहते थे, तब कृष्ण और चाणक्य अपनी दृष्टि भविष्य में उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों पर केन्द्रित करते थे।
कृष्ण और चाणक्य दोनों ही इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई राजनीति के परिणाम भी तात्कालिक एवं अल्पजीवी होते हैं जबकि भविष्य के गर्भ में पल रही परिस्थितियों को समझकर बनाई गई योजनाओं के परिणाम भले ही कुछ विलम्ब से प्रकट हों किंतु उनकी आयु लम्बी होती है।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार के गठन की घटना, कृष्ण और चाणक्य की गूढ़ राजनीति का स्मरण करवाती है। जिस समय देवेन्द्र फडणवीस मुम्बई में प्रेसवार्त्ता को सम्बोधित कर रहे थे, और इस प्रेसवार्त्ता का लगभग तीन चौथाई हिस्सा पूरा कर चुके थे, तब तक किसी को यह अनुमान नहीं था कि आज शाम को महाराष्ट्र में जो मुख्यमंत्री शपथ लेने वाला है, वह देवेन्द्र फडणवीस नहीं अपितु एकनाथ शिंदे है।
कोई सामान्य व्यक्ति भी आज यह अनुमान लगा सकता है कि भारत में मेंढकों की तरह पनप चुके जो राजनीतिक विश्लेषक, बुद्धिजीवी और पत्रकार टेलिविजन की बहसों में घण्टों तक गुर्राते और टर्राते हैं और स्वयं को राजनीति का पण्डित बताते हैं, उनकी बुद्धि कभी भी इस संभावना तक नहीं पहुंच सकी होगी कि भारतीय जनता पार्टी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना देगी!
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक बाण से कई लक्ष्य साधे गए हैं। सबसे पहला लक्ष्य तो यह साधा गया है कि शिंदे गुट की बगावत को सफलता के सर्वोंच्च सोपान पर स्थापित करके, निकट भविष्य में शिंदे गुट में होने वाली किसी अप्रत्याशित फूट की संभावनाएं शून्यप्रायः कर दी गई हैं।
दूसरा लक्ष्य यह साधा गया है कि एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायक अब उद्धव ठाकरे और उनके साथी विधायकों से आंखों में आंखें डालकर बराबरी के स्तर पर निबट सकते हैं। संजय राउत और उनके जैसे विध्वंसक शिवसैनिक यदि हिंसा के बल पर शिंदे गुट को सबक सिखाने के मंसूबे पाले हुए बैठे थे, तो उन मंसूबों पर भी पानी फेर दिय गया है।
लोकतंत्र में किसी भी दल की चुनी हुई सरकार को अपनी नीतियों को बनाने, उन्हें चलाने तथा उनके परिणामों को जनता तक पहुंचाने के लिए पांच साल का समय भी कम पड़ता है। महाराष्ट्र के अगले चुनावों में तो अब लगभग दो-ढाई साल ही बचे हैं। ऐसी स्थिति में यदि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती तो दो-ढाई साल की अवधि में उसे अपनी योजनाएं बनाकर उनका लाभ जनता तक पहुंचाने में सफलता नहीं मिलती। इससे जनता में असंतोष उत्पन्न होता जिसका लाभ अगले चुनावों में विपक्षी दलों को मिलता।
शिंदे सरकार का गठन करवाकर भारतीय जनता पार्टी ने जनता में यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भाजपा ने सत्ता के लालच में शिवसेना में फूट नहीं करवाई है। भाजपा तो महाराष्ट्र की जनता को शरद पंवार की एनसीपी तथा राहुल गांधी की कांग्रेस द्वारा शिवसेना के कंधों पर बैठकर किए जा रहे कुशासन से मुक्ति दिलवाने के लिए शिवसेना के ही उन विधायकों का साथ दे रही है, जिन्होंने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जो हिन्दुत्व की राह पर चलना चाहते हैं।
इस सरकार के गठन के माध्यम से भाजपा का संदेश साफ है कि भाजपा सत्ता प्राप्ति के लिए नहीं अपितु महाराष्ट्र की भ्रष्ट सरकार को उखाड़कर एक साफ-सुथरी और हिन्दुत्व की विचारधारा के लिए समर्पित सरकार देने के लिए शिंदे गुट का साथ दे रही है।
जिस प्रकार द्वापर के कृष्ण और कलियुग के चाणक्य की राजनीति निजी स्वार्थों से प्रेरित नहीं होती थी, उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी और अमितशाह की नीतियों पर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी ने भी महाराष्ट्र में सत्ता के मोह से दूर रहकर बहुत ही चौंकाने वाली और साफ-सुथरी राजनीति की है। निश्चित ही भाजपा द्वारा खेले गए इस राजनीतिक दांव के परिणाम बहुत दूरगामी और राष्ट्र के लिए हितकारी होंगे।
- डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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