Tuesday, May 14, 2024
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138. मुहम्मद बिन को माफी नहीं देने वालों को फीरोज तुगलक के सैनिकों ने जमकर मारा!

फीरोज तुगलक को मुल्ला-मौलवियों की कृपा से सुल्तान का तख्त प्राप्त हुआ था, इसलिए वे दीन का मुखौटा लगाकर तथा सल्तनत के कार्यों में मुल्ला-मौलवियों की सलाह लेने का दिखावा करके जनता पर शासन करने लगा।

मुल्ला-मौलवियों ने सुल्तान फीरोज को बताया कि उसके पूर्ववर्ती सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने जनता पर इतने अत्याचार किए थे कि अल्लाह कभी भी पूर्ववर्ती सुल्तान को माफ नहीं करेगा। फीरोज तुगलक को मुहम्मद बिन तुगलक के प्रति बड़ी श्रद्धा थी। इसलिए फीरोज ने मुहम्मद बिन तुगलक के पापों का प्रायश्चित करने का निश्चय किया।

सुल्तान ने अपनी सेना को आदेश दिए कि जिन व्यक्तियों को मुहम्मद बिन तुगलक ने प्राण दण्ड दिया था, अथवा जिन्हें अंग-भंग की सजा दी थी, उनसे तथा उनके परिवार वालों से सुल्तान के लिए क्षमापत्र प्राप्त किये जाएं तथा उन्हें एक सन्दूक में बन्द करके मुहम्मद बिन तुगलक की कब्र के सिरहाने रखा जाए। इस कार्य के लिए सुल्तान ने पीड़ित परिवारों को धन देने के आदेश भी दिए ताकि मरहूम सुल्तान को कयामत के बाद मिलने वाला परलोक सुधर जाए।

सुल्तान के आदेश से उसकी सेना ने घर-घर जाकर लोगों से पूछताछ की कि उनके किसी सम्बन्धी को विगत सुल्तान के अत्याचारों का सामना तो नहीं करना पड़ा था। यदि कोई परिवार सल्तनत के अधिकारियों को अपने ऊपर जुल्म होने की शिकायत करता था तो सल्तनत के अधिकारी उस परिवार को कुछ धन देकर उससे क्षमापत्र लिखने को कहते थे। जो लोग क्षमापत्र लिखकर देने को तैयार हो जाते थे उनके गांव अथवा भूमि उन्हें वापस लौटा दी जाती थी जो कि विगत सुल्तान के समय में छीनी गई थी।

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बहुत से लोगों को मुहम्मद बिन तुगलक ने बहुत हानि पहुंचाई थी तथा उनके परिवार वालों के अंग-भंग कर दिए थे या उनके प्राण ले लिए थे। ऐसे लोगों ने क्षमापत्र लिखने से मना कर दिया। फीरोज तुगलक की सेना ने ऐसे लोगों को मारा-पीटा और उनके घरों में आग लगा दी। इस भय से बहुत से लोग जंगलों में भाग गए।

इस प्रकार इन लोगों का एक बार फिर से भयानक उत्पीड़न हुआ और जिस उद्देश्य से यह योजना आरम्भ की गई थी कि लोग सुल्तान को क्षमा कर दें, धूल में मिल गई। आज भी बहुत से सरकारी कर्मचारियों के काम करने का तरीका ऐसा ही है।

फीरोज के शासनकाल में गुलामों का बाहुल्य था। इन गुलामों की दशा बड़ी ही दयनीय थी। फीरोज तुगलक ने उनकी दशा सुधारने का प्रयत्न किया। ये गुलाम युद्धबंदी होने के कारण असभ्य तथा अशिक्षित थे। इसलिए ये राज्य के लिए सहायक सिद्ध होने के स्थान पर राज्य के लिए भार बन गए थे। फिरोज ने इनके लिए एक अलग विभाग खोला और उसका नाम ‘दीवाने बन्दगान’ रखा। इस विभाग का एक अलग कोष तथा अलग दीवान होता था।

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सुल्तान फीरोज तुगलक ने 40,000 गुलामों को सरकार की सेवा में रखा और उन्हें योग्यतानुसार विभिन्न विभागों में नियुक्त कर दिया। कुछ गुलामों की शिक्षा की व्यवस्था की गई और कुछ को सुल्तान के अंग-रक्षकों में भर्ती कर लिया गया। शेष 1,60,000 गुलाम सल्तनत के विभिन्न भागों में भेज दिए गए और प्रांतीय गवर्नरों तथा अधिकारियों के संरक्षण में रखे गए।

यद्यपि फीरोज स्वयं बहुत बड़ा विद्वान नहीं था परन्तु वह इस्लामिक शिक्षा तथा साहित्य का पोषक था। उसने जनता को इस्लामिक शिक्षा देने के लिए बहुत से मदरसे तथा मकतब खुलवाये। इन संस्थाओं को राज्य से सहायता मिलती थी। इनमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां तथा अध्यापकों को पेंशनें दी जाती थी।

मकतबों को राज्य की ओर से भूमि मिलती थी। सुल्तान ने इस्लामिक साहित्य सृजन को संरक्षण तथा सहायता प्रदान की। जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक तारीखे फीरोजशाही की रचना फीरोज तुगलक के शासन काल के प्रारंभिक भाग में की थी। इस्लामिक दर्शन पर इस काल में कई ग्रंथ लिखे गए। शम्से सिराज अफीफ ने अपनी इतिहास की पुस्तक इसी काल में लिखी थी। फीरोज ने कुछ संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद कराया। मौलाना जलालुद्दीन रूमी इस काल का बड़ा इस्लामिक चिंतक एवं तत्त्ववेत्ता था।

फीरोज तुगलक के शासन काल में सार्वजनिक सेवा के कुछ कार्य किये गए। सुल्तान ने ई.1350 में दिल्ली के निकट फीरोजाबाद नामक नगर स्थापित किया तथा वहाँ पर अम्बाला और मेरठ जिलों से लाकर दो अशोकस्तम्भ लाकर लगवाये। फीरोज तुगलक ने जौनपुर, फतेहाबाद तथा हिसार नामक नगरों का भी निर्माण करवाया।

जियाउद्दीन बरनी के अनुसार फीरोज ने 50 बांधों, 40 मस्जिदों, 30 मकतबों एवं मदरसों, 20 महलों, 100 सरायों, 200 नगरों, 30 झीलों, 100 दवाखानों, 5 मकबरों, 100 स्नानागारों, 10 स्तंभों, 40 सार्वजनिक कुओं तथा 150 पुलों का निर्माण करवाया। फीरोज को उपवन लगवाने का भी बड़ा शौक था। उसने दिल्ली के निकट 1,200 बाग लगवाये। अन्य कई स्थानों पर भी उसने बाग लगवाये। उसने अल्लाउद्दीन द्वारा बनवाये गए 30 उपवनों का जीर्णोद्धार करवाया।

फीरोज तुगलक का रहन-सहन इस्लामिक जीवन पद्धति के अुनसार सादगी से परिपूर्ण था। उसके दरबार में तड़क-भड़क नहीं थी। ईद तथा शबेरात पर अमीर लोग सज-धज कर आते थे। उनका बड़ा सम्मान होता था। इस आमोद-प्रमोद में धनी-गरीब, समस्त भाग लेते थे। राज्य परिवार की व्यवस्था को ‘कारखाना’ कहते थे। इसके अलग-अलग विभाग थे और इसके अलग-अलग पदाधिकारी तथा कर्मचारी होते थे। प्रत्येक कारखाने का अलग राजस्व विभाग होता था।

उन दिनों मध्यम श्रेणी के लोगों में बेकारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया था। बेकारी की समस्या सुलझाने के लिए सुल्तान ने बेकारी उन्मूलन का अलग विभाग खोला। कोतवाल को आदेश दिया गया कि वह बेकार लोगों की सूची बनाये। बेकार लोगों को दीवान के पास आवेदन भेजना पड़ता था और लोगों को योग्यतानुसार काम दिया जाता था। शिक्षित व्यक्तियों को महल में नौकर रख लिया जाता था। जो लोग किसी अमीर का गुलाम बनना चाहते थे, उन्हें सिफारिशी चिट्ठियां दी जाती थीं।

फीरोज तुगलक को स्वयं औषधि विज्ञान का अच्छा ज्ञान था। उसने दिल्ली में एक ‘दारूलसफा’ स्थापित करवाया जिसमें रोगियों को निःशुल्क औषधियां मिलती थीं। रोगियों के भोजन की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाती थी और देख-भाल के लिए योग्य हकीमों को रखा जाता था।

मुस्लिम फकीरों तथा सुल्तानों की कब्रों के दर्शनार्थ जाने वाले यात्रियों को राज्य की ओर से दान देने की व्यवस्था की गई।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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