Friday, March 29, 2024
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136. फीरोज तुगलक ने मुल्ला-मौलवियों पर धन की बरसात कर दी!

मुहम्मद बिन तुगलक के राज्य में न केवल हिन्दुओं की चोटी, पोथी और मूर्ति खतरे में थीं अपितु उनके तन पर लंगोटी, सिर पर खपरैल और थाली में सूखी रोटी भी सुरक्षित नहीं थी। फिर भी मुल्ला-मौलवी सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि बेईमान मुल्ला-मौलवियों और बागी अमीरों की खाल उतारने में भी सुल्तान पीछे नहीं रहता था।

मुल्ला-मौलवियों के असहयोग के कारण मुहम्मद बिन तुगलक की लगभग सभी बड़ी योजनाएं विफल हो गईं तथा सल्तनत की सेना, सीमा और खजाना तीनों ही सीमित हो गए थे। इन्हीं परिस्थितयों में तगी नामक विद्रोही अमीर का पीछा करते हुए 20 मार्च 1351 को सिन्ध प्रदेश के थट्टा में मुहम्मद बिन तुगलक की अचानक मृत्यु हो गई।

मुहम्मद बिन तुगलक के कोई पुत्र नहीं था। इसलिए प्रधानमन्त्री ख्वाजाजहाँ ने दिल्ली का तख्त हड़पने की नीयत से एक अल्पवयस्क बालक को सुल्तान का पुत्र घोषित कर दिया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया किंतु दिल्ली के अमीरों को ख्वाजाजहाँ की यह कार्यवाही पसंद नहीं आई और उन्होंने नये सुल्तान का मनोनयन करने के लिए अमीरों की एक सभा बुलाई। उस समय मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई फीरोज तुगलक शाही खेमे में उपस्थित था।

शेख नासिरूद्दीन अवधी नामक एक अमीर ने फीरोज तुगलक का नाम प्रस्तावित किया। विचार-विमर्श के उपरान्त अमीरों की समिति ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। फलतः फीरोज को मुहम्मद बिन तुगलक का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया।

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इस प्रकार मुहम्मद बिन तुगलक के बाद फीरोजशाह तुगलक दिल्ली के तख्त पर बैठा। फरोजशाह का जन्म ई.1309 में हुआ था। उसके पिता का नाम सिपहसालार रजब तुगा तथा माता का नाम बीबी नैला था। सिपहसालार रजब तुगा, सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का भाई था और बीबी नैला, पूर्वी पंजाब में दिपालपुर के भट्टी सूबेदार रणमल की अत्यंत सुंदर पुत्री थी।

एक बार गाजी तुगलक ने इस लड़की को देखा और भट्टी सूबेदार से कहा कि वह इस लड़की का निकाह शहजादे रजब तुगा से कर दे किंतु भट्टी सूबेदार ने ऐसा करने से मना कर दिया। इस पर गाजी तुगलक ने रणमल भट्टी पर आक्रमण करके जबर्दस्ती इस लड़की को प्राप्त कर लिया तथा उसका निकाह अपने छोटे पुत्र रजब तुगा से कर दिया। इसी लड़की की कोख से फीरोज तुगलक ने जन्म लिया था। राजपूत स्त्री का पुत्र होते हुए भी फीरोज कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसे हिन्दुओं से घृणा थी। मुहम्मद बिन तुगलक फीरोज को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था।

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कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि फीरोजशाह तुगलक दीन की खिदमत में अर्थात् इस्लाम की सेवा में अपना जीवन व्यतीत करना चाहता था। उसे राज्य की बिल्कुल आकांक्षा नहीं थी। इसलिए उसने अमीरों के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और मक्का जाने की इच्छा प्रकट की परन्तु अमीरों के दबाव के कारण तथा सल्तनत के हित में उसने राज्य की बागडोर ग्रहण करना स्वीकार कर लिया। 22 मार्च 1351 को 42 वर्ष की आयु में थट्टा के निकट शाही खेमे में उसका राज्याभिषेक हुआ।

यद्यपि अमीरों, सरदारों तथा उलेमाओं ने फीरोज तुगलक को विधिवत् सुल्तान निर्वाचित कर लिया और वह निर्विरोध दिल्ली के तख्त पर बैठ गया परन्तु उसका मार्ग पूर्णतः निरापद नहीं था। सल्तनत का प्रधानमन्त्री ख्वाजाजहाँ, फीरोज को सुल्तान बनाने के पक्ष में नहीं था। वह खुदाबन्दजादा के अल्पवयस्क पुत्र को जो कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का भान्जा था, सुल्तान का पुत्र घोषित करके उसके अधिकारों का समर्थन कर रहा था।

मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के समय शाही खेमा राजधानी दिल्ली से सैंकड़ों मील दूर युद्ध के मैदान में था जिसे अफरा-तफरी के वातावरण में शत्रुओं द्वारा नष्ट कर दिए जाने की पूरी आशंका थी।

फीरोज के तख्त पर बैठने के समय सल्तनत की अधिकांश प्रजा तुगलकों के शासन से असंतुष्ट थी और आर्थिक संकट से घिरी हुई थी। नए सुल्तान के लिए यह समस्या अत्यन्त भयानक तथा घातक थी। राज्य के हित में इसका सुलझना नितान्त आवश्यक था अन्यथा दिल्ली सल्तनत का विनाश हो सकता था।

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाओं की विफलताओं एवं विद्रोहों के कारण राज्य की आर्थिक दशा खराब हो चुकी थी। ख्वाजाजहाँ ने भी अमीरों का समर्थन प्राप्त करने के लिए काफी धन लुटा दिया था। इससे सरकारी कोष लगभग रिक्त हो गया।

फीरोज के सामने असंतुष्ट तुर्की अमीरों, मुल्ला-मौलवियों तथा उलेमाओं को प्रसन्न करके उन्हें अपने नियंत्रण एवं विश्वास में लेने की समस्या भी थी। मुहम्मद बिन तुगलक की नीति से अमीर तथा उलेमा अत्यन्त अप्रसन्न हो गए थे। इसलिए वह नीति अब चलने वाली नहीं थी। फीरोज तुगलक ने मौलवियों पर धन की बरसात करके उन्हें संतुष्ट कर लिया। 

फीरोज के सामने विद्रोही प्रान्तों की भी विकट समस्या थी। जिन प्रान्तों ने विद्रोह कर दिया था, उन्हें पराजित करके फिर से सल्तनत के अधीन करना आवश्यक था।

फीरोज की अगली समस्या शासन तंत्र को सुव्यवस्थित करने की थी। मुहम्मद बिन तुगलक ने भारतीय अमीरों की अयोग्यता को देखते हुए विदेशी अमीरों को शासन में उच्च अधिकार दिए थे किंतु फीरोज को तुर्की अमीरों एवं भारत के अमीरों ने मिलकर सुल्तान बनाया था इसलिए उसे दोनों ही खेमों में संतुलन स्थापित करके उच्च अधिकारी चुनने थे।

यद्यपि फीरोज तख्त पर बैठ गया था परन्तु भविष्य में चलकर खुदाबन्दजादा के अल्पवयस्क पुत्र के कारण कठिनाई उत्पन्न हो सकती थी जिसे ख्वाजाजहाँ सुल्तान बनाना चाहता था। इसलिए फीरोजशाह ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए ख्वाजाजहाँ की हत्या करवा दी और खुदाबन्दजादा के अल्पवयस्क पुत्र को भी अपने मार्ग से हटा दिया। इस कारण इस समस्या से सदा के लिए छुटकारा मिल गया।

यदि अमीरों में सुल्तान के विषय में झगड़ा चलता रहता तो निःसंदेह शाही खेमा दो भागों में बंट जाता, ऐसी स्थिति में शत्रुओं द्वारा उनके विनाश की पूरी संभावना थी किंतु चूंकि ख्वाजाजहाँ तथा उसके द्वारा घोषित अल्पवयस्क सुल्तान की हत्या हो गई इसलिए शाही खेमा एक जुट बना रहा और सुरक्षित राजधानी लौट आया।

ख्वाजाजहाँ ने राजकोष का जो धन लोगों में बांट दिया था, फीरोज ने उस धन को वापस लेने का प्रयत्न नहीं किया। इससे लोगों की प्रसन्नता की सीमा न रही और वे सुल्तान के समर्थक बन गए। जिन लोगों पर सरकार का कर्जा था, फीरोज ने उस कर्जे को भी माफ कर दिया। इससे भी बहुत से लोग नये सुल्तान के कृतज्ञ बन गए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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