Saturday, July 27, 2024
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2. रोम में पहला दिन – 17 मई 2019

लियोनार्डो दा विंची एयरपोर्ट पर

 सायं 7.00 बजे हम रोम से 35 किलोमीटर दूर लिओनार्डो दा विंची एयरपोर्ट पर उतरे। फ्लाइट 2.15 की थी किंतु भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध खराब होने से फ्लाइट दिल्ली से पाकिस्तान के ऊपर होकर जाने की बजाय बम्बई होकर अरब सागर के ऊपर से होती हुई भू-मध्य सागर को पार करती हुई इटली पहुँची। यह 7 घण्टे की उड़ान थी जो लगभग 9.30 घण्टे की हो गई।

लगेज की प्राप्ति

एयरपोर्ट पर लगेज की प्राप्ति एक कठिन काम होता है। कार्गो से समान उतार कर रिवॉल्विंग बेल्ट पर पटक दिया जाता है। लोग उसमें से अपना सामान चुनकर उठा लेते हैं। आजकल सारे बैग एक जैसे होते हैं। इन्हें पहचानना कठिन होता है। गलती होने की संभावना रहती है। सामान बैल्ट पर घूमता रहता है। लोग भीड़ लगा लेते हैं और किसी दूसरे का सामान उतार लेते हैं।

जब उन्हें पता चलता है कि यह उनका नहीं है तो वे उसे बैल्ट के पास ही इधर-उधर पटक देते है। हमारे लगेज में सुषमा ने घर पर ही पीले रिबन बांध दिए थे। यदि ये नहीं होते तो हमारे लिए  एयरपोर्ट पर अपने बैग पहचान पाना संभव नहीं था। हमारी 6 अटैचियों में से तीन अटैचियां लोगों ने रिवॉल्विंग बेल्ट से नीचे उतार कर लुढ़का दी थीं। पिताजी की अैटेची का ताला सिक्योरिटी चैक वालों ने तोड़ दिया था। खैर जैसे-तैसे हमने अपना सामान लिया।

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धुएं के बादल

एयरपोर्ट से बाहर आते ही सिगरेट के धुंए के छोटे-छोटे बादलों से हमारा सामना हुआ। वहाँ सैंकड़ों आदमी और औरत अकेले खड़े हुए अथवा समूह में खड़े होकर सिगरेट एवं सिगार पी रहे थे। भारत में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान वर्जित है। इसलिए हम इस धुंए के आदी नहीं थे। इतनी बड़ी संख्या में स्त्रियों एवं पुरुषों को सिगरेट पीते हुए देखकर आश्चर्य भी हुआ और हमें उस हवा में सांस लेने में कठिनाई भी हुई।

बिना सैलफोन-सिम के

इस समय हमारे सैलफोन में इटली में काम करने वाली कोई सिम नहीं थी। हालांकि इण्डोनेशिया यात्रा में हम दिल्ली से ही सिम लेकर चले थे जिसने इण्डोनेशिया में सफलतापूर्वक काम किया था किंतु विजय अपनी विगत कोरिया यात्रा में दिल्ली से जो सिम लेकर गया था उसने कोरिया में काम नहीं किया था। इसलिए इस बार हमने इटली में ही सिम लेने का निर्णय लिया था। एयरपोर्ट के भीतर कुछ लोग सिम बेच रहे थे किंतु वे बहुत महंगी थीं। अतः हमने एयरपोर्ट की बजाय बाजार से सिम लेने का निर्णय लिया।

पैंतीस हजार के बदले साढ़े अट्ठाइस हजार रुपए

सिम को एक दिन के लिए टाला जा सकता था किंतु करेंसी को नहीं टाला जा सकता था क्योंकि बाहर निकलते ही टैक्सी वाले को यूरो में पेमेंट करना पड़ेगा। पिछली बार की इण्डोनेशिया ट्रिप की तरह इस बार भी हम दिल्ली से यूएस डॉलर लेकर चले थे। हमने एक ‘मनी-एक्सचेंजर’ से अपनी मुद्रा यूरो में बदली।

एयरपोर्ट पर हमें 500 डॉलर (लगभग 35000 भारतीय रुपए) के बदले 358 यूरो (लगभग 28640) रुपए मिले। यह बहुत महंगा सौदा था किंतु इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। उसके पास वाले एक काउण्टर पर तो इससे भी कम यूरो मिल रहे थे।

टैक्सी वाले से सम्पर्क नहीं

एयरपोर्ट से बाहर आते-आते सायं के आठ बज चुके थे किंतु बाहर काफी उजाला था और लगता था कि अभी सूर्यदेव की विदाई में कम से कम दो घण्टे बाकी हैं। विजय ने अपने सैलफोन पर एयरपोर्ट के वाई-फाई की सहायता से ऊबर के एप पर एक टैक्सी बुक करवाई।

टैक्सी तो बुक हो गई और वह एयरपोर्ट के आस-पास कहीं आकर भी खड़ी हो गई किंतु सैलफोन में सिम नहीं होने के कारण हम उससे बात नहीं कर सकते थे। अतः टैक्सी वाले से सम्पर्क नहीं हो सका। बसें भी बड़ी संख्या में आ रही थीं किंतु हम किसी से बात करके यह पता नहीं कर सकते थे कि हमें अपने सर्विस अपार्टमेंट तक जाने के लिए कौनसी बस मिलेगी और कहाँ से मिलेगी!

 ‘गूगल’ बस का नम्बर तो बता सकता था किंतु वहाँ छोटे-छोटे बस स्टॉप की भीड़ में से सही बस स्टॉप हमें चुनकर नहीं दे सकता था। बस स्टॉप की पहचान कर पाना दुविधाजनक था, साथ ही इतने सामान के साथ बस की यात्रा भी कठिन थी। हमने एयरपोर्ट के बाहर एक कतार देखी। लोग टैक्सी पकड़ने के लिए कतार में खड़े हुए थे। हम भी उसी कतार में लग गए।

32 किलोमीटर के पाँच हजार रुपए

बहुत सी टैक्सियां एक साथ और लगातार तेजी से स्टॉप पर आकर रुक रही थीं। इसलिए वहाँ टैक्सियों की भीड़ सी लगी हुई थी। प्रत्येक टैक्सी कुछ सैकेण्ड्स के लिए ही रुक पाती थी। इतनी देर में इटली के नागरिक उन्हें अपनी भाषा में बात करके तय कर लेते थे। हमने भी कई टैक्सी वालों से बात करने का प्रयास किया किंतु वे अंग्रेजी नहीं जानते थे, केवल इटालियन भाषा बोल रहे थे।

अंत में हमने तय किया कि केवल उस स्थान का नाम बोलना है, जहाँ हमें जाना है। हम लोग छः व्यक्ति थे और साथ में सामान भी था, इसलिए हमें बड़ी टैक्सी की आवश्यकता थी। एक टैक्सी वाले ने उस स्थान पर चलना स्वीकार कर लिया, वह अंग्रेजी भी जानता था। उसने 60 यूरो मांगे। यह भारत में टैक्सी की प्रचलित दरों से दस गुना था।

भारत में टैक्सी लगभग 20 रुपए किलोमीटर में मिल जाती है किंतु यह हमसे 150 रुपए प्रति किलोमीटर मांग रही थी जो कि एक्सचेंज का कमीशन चुकाने के बाद लगभग 200 रुपए प्रति किलोमीटर बैठ रहा था। विजय ने पहले ही गूगल पर सर्च करके देख लिया था, इटली में एयरपोर्ट से टैक्सी भाड़े की यही दर प्रचलित थी। अतः हमने टैक्सी तय कर ली। अब तक रात के लगभग 9.15 बज चुके थे और पूरी तरह अंधेरा हो गया था।

टैक्सी काफी देर तक सुनसान सड़कों से गुजरी। बीच में पहाड़, समुद्र का किनारा और जंगल जैसे क्षेत्र भी आए। लगभग तीस मिनट तक निर्जन स्थानों में चलने के बाद टैक्सी ने नगरीय क्षेत्र में प्रवेश किया। यहाँ भी सड़कें लगभग खाली थीं। लगभग सवा दस बजे हम वेटिकन सिटी के उस क्षेत्र में पहुँचे जहाँ हमने सर्विस अपार्टमेंट बुक कर रखा था।

विजय ने एयरपोर्ट के वाई-फाई का प्रयोग करके सर्विस अपार्टमेंट की मालकिन को व्हाट्सैप पर मैसेज कर दिया था कि हम लोग एयरपोर्ट पहुँच गए हैं और टैक्सी पकड़कर सर्विस-अपार्टमेंट पहुँचेंगे।

सड़कों पर सन्नाटा

इस समय हमारी घड़ियों में रात के डेढ़ बज रहे थे क्योंकि घड़ियां भारतीय समय दिखा रही थीं। इटली के समय के अनुसार हम रात 10.15 पर विया ग्रिगोरिया में बिल्डिंग संख्या 7/133 के सामने उतरे। सड़कों पर कोई मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था। केवल तेज गति से भाग रही कारों एवं बसों की रौशनियां हमारे निकट से होकर तेजी से निकल रही थीं। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह शहर इतनी जल्दी सो जाता है। भारत में तो इस समय तक केवल गांव ही सो पाते हैं, छोटे-छोटे कस्बे भी इस समय तक तो जागते ही रहते हैं। किससे पूछें कि हम सही स्थान पर उतरे हैं कि नहीं! टैक्सी वाला हमें सड़क के किनारे पर उतार कर चला गया था।

मिस एंजिला से भेंट

जिस अपार्टमेंट के सामने हम उतरे थे, उसकी दूसरी मंजिल की बालकनी में कुछ नीग्रो जैसे दिखने वाले युवक-युवतियाँ बैठे हुए  बातें कर रहे थे। हमने उनसे बात करने का प्रयास किया किंतु वे हमारी बात नहीं समझ पाए। इतने में एक बहुत छोटी सी कार हमारे पास आकर रुकी। यह भारत की नैनो जैसी कार थी।

कार में से लगभग 50 साल की एक दीर्घकाय महिला उतरी। उसने दूर से ही हमें हाथ से संकेत करके बता दिया कि मैं आ गई हूँ। विजय ने बताया कि यही मकान मालकिन है जिसका सर्विस अपार्टमेंट हमने बुक करवाया है। उस महिला ने हमारे निकट आकर हमसे हाथ मिलाया, वैलकम कहा और दो मिनट देरी से आने के लिए क्षमा मांगी। हमारा अपार्टमेंट चौथी मंजिल पर था। अपार्टमेंट मालकिन ने सामान उठाने में हमारी सहायता की, हालांकि हम मिस एंजिला को ऐसा करने से मना करते रहे। भीतर एक बहुत छोटी सी लिफ्ट लगी हुई थी जिसमें मुश्किल से चार व्यक्ति एक साथ आ सकते थे।

मिस एंजिला वैसे तो गोरी-चिट्टी लम्बी और भरे हुए शरीर की एटैलियन महिला थी। उसकी देहयष्टि अमरीकी स्त्रियों की तरह तथा चेहरे-मोहरे की बनावट भारतीय थी। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट एवं आत्मविश्वास देखते ही बनता था। वह केवल इटैलियन भाषा जानती थी किंतु उसे अंग्रेजी के दो-चार शब्द आते थे जिनके माध्यम से वह विदेशी अतिथियों से बात कर लेती थी। उसने हमें अपने मकान के बारे में बताया तथा उसमें उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी दी।

यह तीन शयनागारों वाला  एक शानदार फ्लैट था जिसमें आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित रसोईघर, स्नानघर, डाइनिंग रूम आदि थे। घर दिखाने के बाद एंजिला ने हमसे पासपोर्ट लेकर स्कैन किए तथा वेटिकन सिटी का 20 यूरो (1600 भारतीय रुपए) म्युनिसिपल टैक्स और 87.5 यूरो (7000 भारतीय रुपए) चार दिन के लिए मकान का बिजली-पानी का व्यय मांगा। मकान का किराया विजय पहले ही ऑनलाइन भुगतान कर चुका था।

हिदायतें और फ्लाइंग-किस

मिस एंजिला ने सर्विस अपार्टमेंट के चाबियों के दो सैट हमें दिए। इनमें एक-एक चाबी वह भी थी जो बिल्डिंग के मुख्य दरवाजे पर लगती थी। जाते समय उसने मधु और भानु को हिदायत दी कि वे अपना बैग अपनी बगल में पीछे की ओर न लटकाएं। उसे कंधे पर लटकाकर आगे पेट की तरफ रखें तथा रात में कभी भी दस बजे से अधिक लेट न हों। कोई भी दुर्घटना हो सकती है।

इसके बाद उसने हम सबकी ओर देखकर फ्लाइंग किस उछाला और इटली में हमारे प्रवास के लिए शुभकामनाएं देकर चली गई। जाते समय उसके चेहरे पर जो प्रसन्नता थी, उसे देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि वह हमें अपने गेस्ट के रूप में देखकर अत्यंत प्रसन्न है।

अपने अतिथियों से उसे मोटी कमाई हुई थी। चार रात रुकने के लिए हमने लगभग 65 हजार रुपए किराया तथा लगभग 1600 रुपए बिजली-पानी के लिए दिए थे। म्युनिसिपलिटी टैक्स के लगभग 7000 रुपए तो अलग थे ही।

जेब खाली

हमें एयरपोर्ट से 500 डॉलर अर्थात् 35 हजार भारतीय रुपए के बदले 358 यूरो मिले थे। जिनमें से 60 यूरो टैक्सी वाला ले जा चुका था और 107.50 यूरो मिस एंजिला ने ले लिए। अब हमारी जेब में केवल 190.5 यूरो बचे थे। हमें लगा जैसे हमारी जेबें खाली हो गई हैं। अभी तो रोम में एक दिन भी नहीं बीता था।

पूड़ियां और पचकूटा

मिस एंजिला के जाते ही हमने अपना सामान खोला और सबसे पहले खाना निकालकर खाया। मधु एवं भानु ने नौएडा में ही आज रात के लिए पूड़ियां और कैर-कुमटी-सांगरी की सब्जी बनाकर रख ली थीं जो कई दिनों तक खराब नहीं होतीं। ताकि इटली पहुँचते ही खाना न बनाना पड़े। जब हम सोए तब तक उस घर के मुख्य द्वार के पास लगी विशालाकाय घड़ी में रात के बारह बज रहे थे।

बायोलॉजिकल वाच

मुझे सोए हुए अभी लगभग डेढ़ घण्टे ही हुए थे कि मेरी आंख खुल गई। मैंने उठकर समय देखा, दीवार घड़ी में इस समय रात के डेढ़ बज रहे थे। इस समय नींद खुलने पर मुझे आश्चर्य हुआ किंतु जब मैंने भारतीय समय का हिसाब लगाया तो बात समझ में आ गई। भारत में इस समय पाँच बज रहे थे। हालांकि शरीर ने अभी केवल दो घण्टे ही नींद ली थी किंतु वह अपने प्रतिदिन के समय पर स्वतः उठ गया था।

यह ‘बायोलॉजिकल वॉच’ भी अजीब है, हाथ में बंधी हुई घड़ी में दूसरे देश के अनुसार समय बदला जा सकता है किंतु उस तरह का समायोजन अपने शरीर में नहीं किया जा सकता। वहाँ तो प्रकृति का जादू ही काम करता है। शरीर भारत में जीने का आदी था, भले ही वह रोम चला आया था किंतु उसकी बायोलॉजिक वाच अब भी भारत की घड़ियों के हिसाब से चल रही थी। मैं शौचादि से निवृत्त होकर फिर सो गया। मैंने देखा कि मधु भी उठ गई है। उसे तो प्रतिदिन मुझसे भी पहले उठने की आदत है।

म्यूजिकल हूटर

अभी आंख लगी ही थी कि सड़क से आती एक तेज आवाज से नींद फिर टूट गई। यह एक म्यूजिकल सायरन और हूटर की मिली जुली आवाज थी। मैंने अनुमान लगाया कि यह समधुर संगीतमय ध्वनि पास ही स्थित किसी चैपल या चर्च से आ रही है। हो सकता है कि वेटिकन के सेंट पीटर्स चर्च से ही आ रही हो।

वह भी इस स्थान से केवल एक किलोमीटर दूर था। फिर मन में विचार आया कि संभवतः इटली में पुलिस की गाड़ियां इस प्रकार का हूटर बजाती होंगी। संभव है कि कहीं आग लगी हो और अग्निशमन वाहन इस तरह का हूटर बजाता हुआ जा रहा हो! अगले दिन सड़क पर जब हमने इस तरह का हूटर फिर सुना तो ज्ञात हुआ कि इटली में इस तरह का हूटर एम्बुलेंस बजाती हैं।

मुझे इसकी आवाज अच्छी लगी। इसे सुनकर मन खराब नहीं होता था, जबकि भारत में एम्बुलेंस की गाड़ियों के हूटर, सुनने वाले के कानों में दहशत सी भर देते हैं। यहाँ तक कि एम्बुलेंस के भीतर लेटा हुआ मरीज भी उस आवाज से घबरा जाता है। इस आवाज के बीच उसे अपनी बीमारी कई गुना अधिक महसूस होती है।

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