रहीम का सितारा भाग्य के आकाश पर पूरे जोर से चमकने लगा। रहीम का सितारा बुलंदी पर देखकर बहुत से लोगों की छाती पर सांप लोटने लगे।
जब अकबर ने मेवाड़ नरेश महाराणा प्रतापसिंह के खिलाफ अभियान किया तो उसने अपने समस्त योग्य सेनापतियों को अजमेर पहुँचने का आदेश दिया। मिर्जाखाँ रहीम को भी ये आदेश भेजे गये। पूरे दो साल तक मिर्जाखाँ रहीम, शहबाजखाँ आदि मुगल सेनापतियों के साथ मेवाड़ के पहाड़ों में भटकता रहा।
इस अभियान में रहीम ने प्रतापसिंह के बारे मे बहुत सी बातें सुनीं। वह चाहता था कि किसी दिन प्रतापसिंह को रूबरू देखे किंतु इसका सौभाग्य उसे कभी नहीं मिला। न जाने क्यों रहीम का मन चाहता था कि इस युद्ध में प्रतापसिंह जीत जाये।
होने को तो रहीम अकबर का सेनापति था और हाथ में तलवार लेकर अकबर के लिये ही लड़ता था किंतु उसका मन इस लड़ाई में कदापि उसका साथ नहीं देता था। वह एक अजीब सिपाही था जो अपने दुश्मन की जीत चाहता था। दो साल की दीर्घ अवधि में बहुत से आदमी गंवा कर और बहुत से निरपराध मेवाड़ियों का खून बहाकर ये लोग कुंभलमेर, गोगूंदा और उदयपुर पर अधिकार करने में सफल हो गये।
मिर्जाखाँ अब्दुर्रहीम के काम से प्रसन्न होकर अकबर ने ईस्वी 1580 में उसे मीर अर्ज के पद पर नियत किया। मीर अर्ज का काम यह था कि जो लोग बादशाह से अपनी दीन दशा कहने आयें, उनका वृत्तांत बादशाह की सेवा में निवेदन करे और जो उसका उत्तर मिले वह उनको जाकर कह दे। यदि संतोषजनक उत्तर न मिले तो याची की वास्तविक स्थिति को देखते हुए पुनः बादशाह से प्रार्थना करने का साहस करे।
अब तक यह काम किसी एक अधिकारी के जिम्मे नहीं होता था। प्रत्येक दिन के लिये अलग आदमी नियत होता था किंतु मिर्जाखाँ अब्दुर्रहीम की स्पष्टवादी प्रवृत्ति एवं निर्भीक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अकबर ने रहीम को इस काम पर नियुक्त कर दिया।
रहीम ने यह काम इतनी सफलता से किया कि मात्र आठ माह बाद ही अकबर ने अजमेर की सूबेदारी और रणथंभौर का दुर्ग भी रहीम को सौंप दिये। मिर्जा रहीम देशपति और गढ़पति हो गया। रहीम का सितारा भाग्य के आकाश पर पूरे जोर से चमकने लगा। रहीम का सितारा बुलंदी पर देखकर बहुत से लोगों की छाती पर सांप लोटने लगे।
जब रहीम अजमेर की सूबेदारी संभाल कर फिर से बादशाह को सलाम करने के लिये दिल्ली आया तो बख्शियों ने रहीम को शहबाजखाँ के ऊपर खड़ा किया। इस पर शहबाजखाँ बिगड़ गया और उसने रहीम से नीचे खड़ा होने से मना कर दिया। जब इस बात का पता बादशाह को लगा तो उसने शहबाजखाँ को कछवाहा सरदार रायसाल दरबारी के पहरे में रख दिया। रहीम का यह रुतबा देखकर बड़े-बड़े अमीरों की रूह काँप गयी। वे समझ गये कि अभी रहीम का सितारा भाग्य के आकाश में और ऊँचा चढ़ेगा।
-अध्याय 62, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक।



