Saturday, July 27, 2024
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32. गैम्बीरा लोका जू

तुम पास आए, जरा मुस्कुराए

नारियल पानी वाली लड़की ने नारियल काटकर उसमें दो स्ट्रॉ डालकर हमें दे दिया। एक तो वहाँ के नारियल वैसे ही भारत में मिलने वाले नारियलों के मुकाबले दो से तीन गुने बड़े हैं, उस पर यह नारियल तो वहाँ के नारियलों में से भी बहुत बड़े आकार का था। हमने वह पानी अपने गिलासों में और पानी की बोतलों में भर लिया। उस नारियल में से लगभग दो लीटर पानी निकला। यह हम सबके के लिए एक बार में पीने के लिए पर्याप्त था। हम नारियल पानी पी ही रहे थे कि 20-22 साल के दो जावाई लड़के हमारे पास आकर गिटार बजाते हुए गाने लगे। इण्डोनेशिया में वे पहले भिखारी थे जो हमने देखे। वे दोनों अच्छे कपड़े पहने हुए थे। अच्छा गिटार बजा रहे थे। उनके गिटार से एक भारतीय हिन्दी फिल्मी की धुन निकलने लगी, और शीघ्र ही उन्होंने गाना शुरु कर दिया- ‘तुम पास आए, जरा मुस्कराए ……. कुछ-कुछ होता है।’ हम चौंके, इन्हें कैसे पता लगा कि हम भारतीय हैं किंतु अगले ही क्षण समझ  में आ गया कि मधु के साड़ी पहने हुए होने से कोई भी हमें आसानी से पहचान सकता था कि हम भारतीय हैं।

इतने अच्छे कपड़ों में और इतना अच्छा गिटार बजा रहे उन लड़कों को कुछ भी देने की हमारी इच्छा नहीं हुई। मेरा मन इसलिए भी खराब हो गया था कि अब तक मैं यह सोचता रहा था कि यहाँ भिखारी नहीं हैं, किंतु इन लड़कों ने वह धारणा तोड़ दी थी। कुछ ही देर में विजय पिताजी को लेकर वहीं आ गया। हमने उन्हें भी नारियल पानी पीने के लिए दिया और कुछ देर बाद हम वहाँ से चल दिये। इस समय दोपहर के तीन बज रहे थे। मि. अन्तो हमें पार्किंग एरिया में मिल गया।

चलती हुई कार में लंच

हमने मि. अन्तो से कहा कि कहीं किसी पार्क में गाड़ी रोक ले ताकि हम दोपहर का भोजन कर सकें। मि. अन्तो ने सुझाव दिया कि चूंकि शाम होने में बहुत कम समय बचा है इसलिए बेहतर होगा कि हम चलती कार में लंच कर लें, अन्यथा आगे वाला स्पॉट नहीं देख पाएंगे। यह एक अच्छा सुझाव था। इसलिए हमने कार में ही लंच कर लिया। ऐसा करने में किसी तरह की असुविधा भी नहीं हुई।

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गैम्बीरा लोका जू

जावाई भाषा में गैम्बीरा का अर्थ होता है प्रसन्न, लोक का अर्थ होता है सार्वजनिक और जू का अर्थ होता है चिड़ियाघर। इस प्रकार इस चिड़ियाघर के नाम में गैम्बीरा जावाई भाषा से, लोका संस्कृत से ओर जू अंग्रेजी भाषा से लिया गया प्रतीत होता है। हमें जू तक पहुंचते-पहुंचते लगभग चार बज गए। यह चिड़ियाघर 54 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है तथा सायं साढ़े पांच बजे तक खुला रहता है, क्योंकि इसके बाद अंधेरा हो जाता है। हमारे पास कम समय बचा था। एक-डेढ़ घण्टे की अवधि में इसे पूरा देखना संभव नहीं था। फिर भी हमने जल्दी से टिकट लिए और जू में प्रवेश कर लिया। इस चिड़ियाघर को ई.1956 में खोला गया था।

इसमें विविध प्रकार के पशुओं की 470 प्रजातियां रहती हैं जिनमें से ओरंगुटान, कोमोडो, ड्रैगन, गिब्बन और हिप्पोपोटोमस हमारे लिए विशेष आकर्षण के थे। हमने अपना ध्यान इन्हीं पर फोकस किया। यह चिड़ियाघर गजाहवोंग नदी पर बना हुआ है। जावा में हाथी को गज कहा जाता है। इस नदी के क्षेत्र में हाथी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, संभवतः इसलिए इस नदी का नाम गजाह वोंग पड़ा होगा। एक बाड़े में जवाई हाथी प्रदर्शित किए गए हैं जो डीलडौल एवं शारीरिक बनावट में भारतीय हाथियों के मुकाबले में कहीं नहीं टिकते।

फिर भी इन्हें देखना इसलिए रोचक था कि ये अपनी लम्बी सूण्ड फैलाकर देशी-विदेशी सैलानियों से केले आदि उपहार स्वीकार कर रहे थे। एक बाड़े में हमें भूरे रंग के दो ओरंगुटान दिखाई दिए। इनमें से एक ओरंगुटान लकड़ी के एक ऊंचे से मचान पर बैठा हुआ, देश-विदेशी पर्यटकों को देखने का आनंद ले रहा था जबकि उसका साथी गुफानुमा केबिन में आराम कर रहा था। लगभग एक घण्टे में हमने कोमोडो, ड्रैगन, गिब्बन और हिप्पोपोटोमस और विशालाकाय तोतों को देख लिया। एक बाड़े में चार-पांच ऊंट प्रदर्शित किए गए हैं। यह हमारे लिए पहला अवसर था जब हमने किसी ऊंट को चिड़ियाघर में प्रदर्शनकारी जंतुओं के बीच देखा था। ये एक थुम्बी वाले ऊंट हैं जैसे कि भारत के थार रेगिस्तान में पाए जाते हैं।

भगवान भुवन भास्कर काफी नीचे झुक आए थे तथा चिड़ियाघर में प्रकाश काफी कम हो गया था। इसी बीच हमने एक पतले सांप को भी एक पिंजरे के बाहर रेंगते हुए देखा। अंधेरे में रुकना उचित नहीं था क्योंकि यह आम भारतीय चिड़ियाघरों की तरह नहीं था जो शहर के बीच कृत्रिम पार्क में स्थापित किए जाते हैं, यह वास्तविक घने जंगल के बीच फैला हुआ चिड़ियाघर था जहाँ पिंजरों के बाहर भी जानवर रहते हैं। अतः हम बाहर की ओर चल दिए।

इसी बीच चिड़ियाघर के गार्ड अपनी मोटरसाइकिलों पर बैठकर जायजा लेते हुए दिखाई दिए कि अब कितने पर्यटक चिड़ियाघर में घूम रहे हैं। वहाँ केवल हम ही थे, हमारे बाहर निकलते ही गार्ड्स ने चिड़ियाघर का मुख्य फाटक बंद कर दिया। इस समय साढ़े पांच बजे से पांच-सात मिनट ऊपर हुए होंगे किंतु ऐसा लग रहा था मानो शाम के साढ़े सात बज गए हों। मि. अन्तो को इस बात की प्रसन्नता थी कि उसके बताए हुए दोनों स्थलों में हमने पूरी रुचि ली थी।

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