Saturday, July 27, 2024
spot_img

4. मुस्लिम देशों में चंगेज खाँ ने अधिक विनाश किया!

अब एक छोटे से कबीले का ‘खान’ चंगेज खाँ पेकिंग तथा खीवा के दो विशाल साम्राज्यों का स्वामी था किंतु इन राज्यों से संतुष्ट होने की बजाय दुनिया को अपने अधीन करने की उसकी भूख बढ़ गई। इस कारण चंगेज खाँ की सेनाएं पश्चिम दिशा में बढ़ती ही चली गईं। उन्होंने कैस्पियन सागर के उत्तर में स्थित रूस पर हमला किया। रूस भी मंगोलों के सामने नहीं टिक सका। कालासागर के उत्तर में स्थित ‘कीफ’ नामक स्थान पर रूसी सेनाएं मंगोलों से हार गईं। मंगोलों ने रूस के राजा को कैद कर लिया।

ई.1221 में मंगोलों ने चंगेज खाँ के नेतृत्व में आमू नदी के किनारे पर स्थित ख्वारिज्म नामक राज्य पर आक्रमण किया। चंगेज खाँ के जन्म के समय ख्वारिज्म खीवा के तुर्की राज्य का ही हिस्सा था किंतु जब मंगोलों ने खीवा पर अधिकार कर लिया तब ख्वारिज्म खीवा से अलग स्वतंत्र राज्य बन गया। चंगेज खाँ ख्वारिज्म को इस तरह नहीं छोड़ सकता था क्योंकि वे किसी भी समय मंगोलों के लिए खतरा बन सकते थे।

इसलिए चंगेज खाँ ने पूरी तैयारी के साथ ख्वारिज्म पर आक्रमण किया। ख्वारिज्म का शहजादा जलालुद्दीन अपनी जान बचाने के लिए भारत भाग आया। शहजादे जलालुद्दीन ने सिन्धु नदी के तट पर अपना खेमा लगाया तथा दिल्ली के तुर्क सुल्तान से शरण मांगी। वर्तमान समय में ख्वारिज्म राज्य का कुछ हिस्सा उज्बेकिस्तान में तथा कुछ हिस्सा तुर्कमेनिस्तान में है।

उस समय उत्तरी भारत में अफगानिस्तान से आए तुर्क सुल्तानों का शासन था। उनकी राजधानी दिल्ली थी तथा तुर्कों के इल्बरी कबीले में उत्पन्न इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान था। चंगेज खाँ भी बिफरे हुए तूफान की भाँति, ख्वारिज्म के शहजादे जलालुद्दीन का पीछा करते हुए भारत में घुस आया। चंगेज खाँ ने हिन्दुकुश पर्वत को लांघकर सिंधु नदी पार की तथा पंजाब में लाहौर तक के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। लाहौर से दिल्ली केवल 250 मील रह जाता है। इसलिए दिल्ली का सुल्तान इल्तुतमिश चंगेज खाँ के आक्रमण की संभावना से भयभीत हो गया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

इल्तुतमिश ने मंगोलों की क्रूरताओं के बड़े किस्से सुने थे। इल्तुतमिश जानता था कि मंगोलों की शक्ति के समक्ष दिल्ली सल्तनत कुछ भी नहीं है तथा मंगोल इस समय तुर्कों के राज्य नष्ट करने के अभियान पर हैं। इसलिए दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने ख्वारिज्म के शहजादे को शरण देने से मना कर दिया तथा चंगेज खाँ को उपहार भेजकर उसे प्रसन्न करने का प्रयास किया। जब ख्वारिज्म के तुर्क शहजादे को यह बात ज्ञात हुई तो वह दिल्ली के तुर्क सुल्तान की तरफ से निराश होकर भारत से चला गया। इल्तुतमिश के सौभाग्य से चंगेज खाँ भी उसके पीछे-पीछे चला गया क्योंकि चंगेज खाँ भारत में अपना राज्य जमाने का इच्छुक नहीं था।

चंगेज खाँ तो चला गया किंतु इस अभियान के माध्यम से मंगोलों के पैर भारत की भूमि पर पड़ चुके थे तथा उन्हें भारत की राजनीतिक कमजोरी का भी पता लग चुका था। इस कारण कुछ ही वर्षों में मंगोलों ने सिन्धु नदी पार करके सिन्ध तथा पश्चिमी पंजाब में अपने गवर्नर नियुक्त कर दिये। उस समय दिल्ली सल्तनत पर तुर्की सुल्तान बलबन का शासन था। हालांकि बलबन ने मंगोलों से कई युद्ध किए तथा मंगोलों को परास्त किया किंतु बलबन के लिये यह संभव नहीं था कि वह मंगोलों को भारत से पूरी तरह निष्कासित कर सके।

ई.1227 में चंगेज खाँ की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के समय उसका साम्राज्य प्रशांत महासागर से आरम्भ होकर काला सागर तक विस्तृत था। यदि हम एशिया का नक्शा देखते हैं तो सम्पूर्ण एशिया अपने पूर्वी छोर से लेकर पश्चिमी छोर तक प्रशांत महासागर से लेकर काला सागर के बीच ही स्थित है।

चंगेज खाँ ने चीन का अधिकांश भाग, रूस का दक्षिणी भाग, मध्य-एशिया का सम्पूर्ण भाग, तुर्की अर्थात् एशिया कोचक, पर्शिया अर्थात् ईरान और अफगानिस्तान के विशाल प्रदेशों को जीत लिया। विश्व-इतिहास में सिकंदर महान् तथा अशोक महान् के नामों से विख्यात विजेताओं के साम्राज्य भी चंगेज खाँ के साम्राज्य की तुलना में तुच्छ थे।

इस विशाल मंगोल साम्राज्य की राजधानी चीन के उत्तर में स्थित थी जिसे कराकुरम के नाम से जाना जाता था। यह मंगोलों की सबसे बड़ी बस्ती थी। इस क्षेत्र को आज भी मंगोलिया के नाम से जाना जाता है। इस काल में मंगोल, इस्लाम से घृणा करते थे। इस कारण जब मंगोल सेनाएं किसी मुस्लिम राज्य पर अधिकार करती थीं तो अत्यधिक विनाश मचाती थीं। चंगेज खाँ द्वारा खीवा, ख्वारिज्म तथा अफगानिस्तान के मुस्लिम राज्यों को मसलकर धूल में मिला देने का मुख्य कारण यही था।

चंगेज खाँ के बाद उसका पुत्र उदगई खाँ मंगोलों का राजा हुआ। उसे ओगताई खाँ भी कहा जाता है। उसने अपने राज्य को काला सागर से भी आगे बढ़ा लिया। उसने सम्पूर्ण चीन पर अधिकार कर लिया तथा चीन का ‘सुंग’ राज्य भी मंगोल राज्य का हिस्सा बन गया। उदगई खाँ के भाई बातू खाँ ने सम्पूर्ण रूस एवं पौलेण्ड को भी मंगोलों के अधीन कर लिया।

अब यूरोप कभी भी मंगोल साम्राज्य की झोली में गिर सकता था। बातू खाँ ने पवित्र रोमन साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। जर्मनी का शासक फ्रेडरिक (द्वितीय) उस समय ‘पवित्र रोमन साम्राज्य’ का स्वामी था। उसने अपनी सेनाओं को बातू खाँ से युद्ध करने भेजा। बातू खाँ ने जर्मनी की सेनाओं को भी परास्त कर दिया किंतु इसी समय ई.1242 में मंगोल सम्राट उदगई खाँ की मृत्यु हो गई तथा अगले सुल्तान के प्रश्न पर मंगोलों में गृहयुद्ध छिड़ गया। इस कारण पश्चिमी यूरोप मंगोलों की दाढ़ में जाने से बच गया।

ई.1251 में मंगू खाँ अथवा मोंगके खान मंगोलों का सम्राट हुआ। उसने तिब्बत पर भयानक आक्रमण किया तथा देखते ही देखते विशाल तिब्बत पर भी मंगोलों का अधिकार हो गया। मंगू खाँ को मंगोलों के इतिहास में ‘खान महान’ कहा जाता है। वह अपने भाई हलाकू अथवा हुलागू की अपेक्षा थोड़ा उदार था। इसलिए मुसलमानों, ईसाइयों तथा बौद्धों में होड़ मची कि किसी तरह मंगू खाँ को प्रसन्न करके उसे अपने धर्म में सम्मिलित कर लिया जाए। रोम के पोप ने भी अपने कैथोलिक-एलची मंगू खाँ के पास भेजे। नस्तोरियन-ईसाई भी पूरी तैयारी के साथ मंगू खाँ के चारों ओर मण्डराने लगे।

मुसलमान और बौद्ध प्रचारक भी तेजी से अपने काम में जुट गए। मंगू खाँ को धर्म जैसी चीज में अधिक रुचि नहीं थी फिर भी वह ईसाई बनने को तैयार हो गया। जब रोम के एलचियों ने मंगू खाँ को पोप तथा उसके चमत्कारों की कहानियां सुनाईं तो मंगू खाँ भड़क गया और उसने कोई भी धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source