इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाते थे। वे भारत में इस्लाम का राज्य स्थापित करने के लिए आठवीं शताब्दी ईस्वी से सेनाएं भेजने लगे। खलीफाओं की सेनाएं हिन्दू राजाओं ने नष्ट कर दीं!
बगदाद के खलीफा अव वालिद ने सिंध क्षेत्र पर अधिकार करने वाले ईरानी सेनापति मुहम्मद बिन कासिम को बगदाद में बुलवाकर मरवाया क्योंकि खलीफा के अनुसार जेहाद के दौरान लूटे गए धन, गुलामों एवं औरतों पर खलीफा का अधिकार था जबकि कासिम ने भारत से प्राप्त ये सब वस्तुएं स्वयं ही रख ली थीं। मुहम्मद बिन कासिम की हत्या हो जाने के कुछ समय बाद भारतीयों ने फिर से स्वयं को स्वतंत्र कर लिया। इस कारण सिंध पर ईरानी गवर्नर का अधिकार शीघ्र ही समाप्त हो गया।
आठवीं एवं नौवीं शताब्दी ईस्वी में हिन्दू राजा पूरी शक्ति से खलीफाओं की सेनाएं नष्ट करते रहे और उन्हें भारत में अपनी जड़ें जमाने से रोकते रहे। फिर भी इस काल में सिंध एवं मुल्तान में मुसलमानों के कुछ छोटे राज्य स्थापित हो गए। इन मुस्लिम राज्यों की दृष्टि भारत के हिन्दू राज्यों पर गिद्ध की भांति पर गड़ी हुई रहती थी जो हर समय झपट्टा मारने के लिए तैयार रहते थे।
ई.739 का चौलुक्य राजा पुलकेशी का दानपत्र कहता है कि अरब के खलीफा हशाम (ई.724-43) के भारतीय प्रदेशों के शासक जुनैद की सेना ने मारवाड़, भीनमाल, अजमेर तथा गुजरात आदि पर चढ़ाई की। इस युद्ध का क्या परिणाम हुआ, उसका कोई उल्लेख इस दानपत्र में नहीं है किंतु यह दानपत्र एक महत्त्वपूर्ण सूचना देता है कि ई.739 में कुछ भारतीय क्षेत्र खलीफा द्वारा नियुक्त गवर्नरों के अधीन थे किंतु यह स्थिति थोड़े ही समय रही होगी तथा उनके अधीन क्षेत्र सिंध प्रदेश में रहे होंगे।
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आठवीं शताब्दी ईस्वी में अजमेर का चौहान राजा दुर्लभराज (प्रथम) अथवा दूलाराय प्रतिहारों का सेनापति था। उसके समय में खलीफाओं की सेनाएं अजमेर आईं और अजमेर पर मुसलमानों का पहला आक्रमण हुआ। खलीफा वली अब्दुल मलिक की सेना व्यापारियों के वेष में सिंध के मार्ग से अजमेर तक चढ़ आई। यह आक्रमण अत्यंत भयानक था। इस युद्ध में प्रमुख चौहानों ने दुर्लभराज का साथ नहीं दिया। इस कारण दुर्लभराज के परिवार के प्रत्येक पुरुष ने हाथ में तलवार लेकर शत्रु का सामना किया तथा चौहान रानियों एवं राजकुमारियों ने जौहर का आयोजन किया। राजा दुर्लभराज का युद्ध-क्षेत्र में ही वध कर दिया गया।
इस युद्ध में राजा दुर्लभराज का सात वर्षीय पुत्र लोत एक तीर लगने से मर गया। वह शस्त्र लेकर युद्धभूमि में लड़ रहा था। तारागढ़ पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। दूल्हराय का छोटा भाई माणक राय सांभर भाग गया। जिस दिन राजकुमार लोत मारा गया, उस दिन को पवित्र दिन माना गया तथा राजकुमार लोत की प्रतिमा देवताओं की तरह पूजी गई। कर्नल टॉड ने लिखा है कि सिन्ध से किसी शत्रु ने अजमेर पर आक्रमण करके राजा माणिकपाल (राय) का वध किया। कुछ समय बाद हर्षराय चौहान ने नासिरुद्दीन से अजमेर छीन लिया। इस प्रकार अजमेर कुछ समय तक मुसलमानों के अधिकार में रहा। उस समय दुर्लभराज का भाई माणिकपाल जिसने कि संभवतः दुर्लभराज का साथ नहीं दिया था, अजमेर के पतन के बाद सांभर में जाकर रहा। इस युद्ध के बाद के किसी काल में दुर्लभराज (प्रथम) के पुत्र गूवक (प्रथम) ने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में किया। कर्नल टॉड ने मुलसमानों से अजमेर लेने वाले राजा का नाम हर्षराय लिखा है। गूवक ने अनंत क्षेत्र में हर्ष का मंदिर बनवाया था। अतः उसे हर्षराय कहा जाता था।
नौवीं शताब्दी ईस्वी में जिस समय बगदाद के खलीफा अलमामूं ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की, उस समय चित्तौड़ पर खुंमाण (द्वितीय) नामक राजा का शासन था। अब्बासिया खानदान का अलमामूं ई.813 से 833 तक बगदाद का खलीफा रहा। खुमांण (द्वितीय) ई.812 से 836 के बीच चित्तौड़ का शासक रहा। खुंमाण रासो के अनुसार खुंमाण की सहायता के लिए काश्मीर से सेतुबंध तक के अनेक राजा चित्तौड़ आए।
आठवीं से दसवीं शताब्दी तक भारत भूमि पर प्रतिहारों की तुलना में कोई अन्य प्रतापी हिन्दू वंश नहीं रहा। इस राजवंश ने राजस्थान से लेकर बंगाल तक शासन किया। सिंध क्षेत्र के निकट होने के कारण जालोर के प्रतिहारों को खलीफाओं की सेनाएं कई बार घेर कर मारनी पड़ीं और अरब-आक्रांताओं से कई युद्ध लड़ने पड़े।
ई.851 में सुलेमान नामक एक अरब यात्री ने प्रतिहार शासक मिहिर भोज की बड़ी प्रशंसा की है। वह लिखता है- ‘जुज्र (गुर्जर) नरेश भोज के पास एक विशाल अश्वसेना थी। ऐसी विशाल सेना भारत के किसी अन्य नरेश के पास नहीं थी। वह इस्लाम का शत्रु था। उसके राज्य में सोने-चांदी की बहुत सी खानें थीं तथा उसका राज्य चोरी-डकैती के भय से मुक्त था।’
प्रतिहारों द्वारा दी गई सेवाओं को भारतीय इतिहास कभी भुला नहीं सकता। जब खलीफओं की सेनाएं दक्षिणी यूरोप से लेकर उत्तरी अमरीका तथा दक्षिण एशिया को रौंद रहीं थीं तथा तथा दक्षिणी यूरोप एवं उत्तरी अमरीका कुछ ही वर्षों में अपनी स्वतंत्रता खो बैठे थेए तब प्रतिहारों ने अरबों को भारत भूमि से लगभग बाहर ही रखा। त्रस्त जनता का उद्धार करने तथा शत्रु से समाज की रक्षा करने के कारण ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट (प्रथम) को नारायण कहा गया है।
ई.950 में सिंहराज नामक महान् चौहान राजा अजमेर का स्वामी हुआ। वह लगातार मुसलमानांे से लड़ता रहा। उसने मुसलमानों के सेनापति हातिम का वध किया तथा उसके हाथियों को पकड़ लिया। एक अन्य अवसर पर सिंहराज ने उस विशाल मुस्लिम सेना को खदेड़ दिया जो सुल्तान हाजीउद्दीन के नेतृत्व में अजमेर से 25 किलोमीटर दूर जेठाना तक आ पहुँची थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता