Sunday, December 8, 2024
spot_img

78. हुमायूँ ने आधी रात को काबुल में घुसकर औरतों को छुड़ाया!

जब बहुत दिनों तक काबुल दुर्ग के बाहर हुमायूँ और कामरान की सेनाओं में युद्ध चलता रहा तब हुमायूँ की बेगमों ने ख्वाजा दोस्त मदारिचः नामक एक फकीर को बादशाह हुमायूँ के पास भेजकर कहलवाया कि खुदा के लिए मिर्जा कामरान जो कुछ भी चाहता है, उसे मान लीजिए और अपने गुलामों अर्थात् हमें इस संकट से निकालिए।

वस्तुतः ख्वाजा दोस्त मदारिचः कामरान का संदेशवाहक था और वह कामरान के संदेश लेकर हुमायूँ के पास जाया करता था। इस समय तक कामरान की हालत खराब हो चुकी थी और वह ख्वाजा दोस्त मदारिचः के माध्यम से संधि करना चाहता था। कामरान ने हुमायूँ पर दबाव बनाने के लिए हुमायूँ की बेगमों की तरफ से यह संदेश भिजवाया था।

गुलबदन बेगम ने लिखा है कि हुमायूँ ने ख्वाजा दोस्त मदारिचः के साथ बेगमों के लिए बाहर से नौ भेड़ें, सात कंटर (कंटेनर) गुलाबजल, नीबू का शर्बत, तिरसठ थान और कई अधबहियां भेजीं तथा बेगमों को लिखा कि आप लोग दुर्ग में बंद हैं, इसलिए हम दुर्ग को बलपूर्वक नहीं ले सकते। यदि हम बलपूर्वक दुर्ग लेने का प्रयास करते तो अब तक हमारा पुत्र मुहम्मद अकबर भी मृत्यु को प्राप्त हो चुका होता!

इस प्रकार हुमायूँ ने बेगमों और उनके साथ ही कामरान को यह संदेश दे दिया कि यह घेरेबंदी कितनी ही लम्बी क्यों न चले हुमायूँ कामरान की कोई बात नहीं मानेगा। कई दिनों की लड़ाई के बाद कामरान की हालत खराब होने लगी तो कामरान ने हुमायूँ के पास संधि का प्रस्ताव भिजवाया किंतु हुमायूँ ने शर्त रखी कि कामरान की कोई भी बात तभी सुनी जाएगी जब वह स्वयं बादशाह के समक्ष उपस्थित होगा।

हुमायूँ की यह शर्त सुनकर कामरान आग-बबूला हो गया। उसने हुमायूँ के एक प्रमुख अमीर बापूस के तीन पुत्रों को मारकर उनके शव काबुल दुर्ग के बाहर फिंकवा दिए। यह वही बापूस था जो किसी समय कामरान के साथ हुआ करता था और कामरान का साथ छोड़कर हुमायूँ की सेवा में चला गया था। कामरान ने इसी बापूस का घर गिरवाया था जो बाबर की कब्र के पास ही स्थित था। कामरान ने बापूस के जिन तीन पुत्रों के शव काबुल दुर्ग से बाहर फिंकवाए थे, उनकी आयु तीन वर्ष, पांच वर्ष और सात वर्ष थी।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

बापूस के ये तीनों पुत्र कामरान द्वारा अचानक ही काबुल पर अधिकार किए जाने के कारण काबुल में ही रह गए थे और उन्हें भागने का अवसर नहीं मिला था। कामरान ने उन्हें कैद कर रखा था। कामरान ने कराचः खाँ के पुत्र सरदार बेग और मुसाहिब बेग के पुत्र खुदा दोस्त को दुर्ग के कंगूरों से लटकवा दिया और उनके पिताओं से कहलवाया कि यदि तुम बादशाह से कहकर दुर्ग का घेरा नहीं हटवाओगे तो तुम्हारे पुत्रों को भी बापूस के पुत्रों की तरह मार दिया जाएगा।  इस पर कराचः खाँ ने चिल्लाकर कहा कि हमारे बच्चे कभी न कभी तो मरेंगे ही, इसलिए अच्छा है कि स्वामी का कार्य करते हुए मरें। तुम हमारे बच्चों को मार दो, हम उसका बदला जल्दी ही ले लेंगे। इस पर कामरान ने कासिम खाँ मौजी की पत्नी को भी दुर्ग की दीवार से लटका दिया।

अप्रेल 1547 में कामरान ने काबुल से भागने की योजना बनाई। उसने कराचः खाँ के माध्यम से बादशाह से निवेदन करवाया कि मुझे अपने पिछले कामों पर बड़ा खेद है। अब मैं स्वयं में सुधार करके बादशाह की सेवा करना चाहता हूँ। मेरा जीवन बादशाह के हाथों में है। हुमायूँ ने कामरान की इस बात पर दुर्ग का घेरा हल्का करवा दिया।

अबुल फजल ने अकबर नामा में लिखा है कि मिर्जा हिंदाल, कराचः खाँ मुसाहिब बेग आदि कितनी ही लोग चाहते थे कि मिर्जा कामरान बादशाह की अधीनता स्वीकार नहीं करे। अबुल फजल ने यह नहीं लिखा है कि जब ये लोग हुमायूँ के पक्ष में लड़ रहे थे तो वे ऐसा क्यों चाहते थे! संभवतः इन लोगों ने अपने परिवारों के सदस्यों की जान बचाने के लिए कामरान से कोई गुप्त समझौता कर लिया था।

इस समय कामरान बाला हिसार नामक महल में निवास कर रहा था। इस महल में दिन भर कामरान के सैनिकों, दासों एवं गुप्तचरों का आना-जाना लगा रहता था। एक दिन कामरान ने सभी लोगों को बाला हिसार में आने की मनाही कर दी। पूरा दिन सन्नाटे में बीत गया। संध्याकाल में भी कामरान के महल में कोई हलचल नहीं हुई। यहाँ तक कि सोने का समय हो गया।

गुलबदन बेगम ने लिखा है कि जिस समय नगर के लोग सुख से सो रहे थे, तब आधी रात के समय शस्त्र, कवच आदि झनझनाने लगे। लोग चौंक कर उठ बैठे। घुड़साल के सामने लगभग एक हजार सैनिक खड़े थे। हुमायूँ के हरम की औरतों ने उन लोगों से चिल्लाकर पूछा कि क्या हुआ है और तुम लोग यहाँ क्यों खड़े हो किंतु किसी ने जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर में वे सब लोग चले गए। इसके कुछ समय बाद कराचः खाँ के पुत्र बहादुर खाँ ने आकर समाचार किया कि मिर्जा कामरान भाग गया।

भागने वालों में ख्वाजा मुअज्जम भी था किंतु वह दुर्ग की दीवार के उस पार जाकर रुक गया और कामरान तथा उसके साथियों के चले जाने के बाद जोर-जोर से चिल्लाने लगा। दुर्ग के भीतर लोगों ने रस्सी फैंककर उसे ऊपर खींच लिया। कामरान के जाने के बाद रात्रि में ही दुर्ग के दरवाजे खोल दिए गए तथा बादशाह को सूचना पहुंचाई गई। हुमायूँ ने तुरंत काबुल में घुसकर काबुल पर अधिकार कर लिया।

उसने तर्दी मुहम्मद खाँ तथा नाजिर के पहरे में शाही औरतों को अस्करी के मकान से बाहर निकलवाया। हुमायूँ ने दिलदार बेगम, बेगा बेगम, हमीदा बानू बेगम और गुलबदन बेगम से मिलकर उन्हें सांत्वना दी तथा अपने साथ शाही महलों में ले गया। हुमायूँ को यह देखकर बहुत अफसोस हुआ कि कामरान ने शाही महल की औरतों को इतने गंदे माहौल में तथा इतने गंदे तरीके से रखा था।

इन सारे कामों में रात बीत गई, दिन निकल आया। काबुल में आज का सूरज विशेष प्रसन्नता के साथ निकला था। शाही हरम की जो औरतें बादशाह के साथ सैनिक शिविर में थीं, वे भी इन औरतों से आकर मिल गईं। उधर रात के अंधेरे में काबुल से निकलकर कामरान बदख्शां की तरफ रवाना हो गया।

उसने बदख्शां के निकट टालिकान में डेरा डाला। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि एक दिन बादशाह सुबह की नमाज पढ़कर उठा ही था कि उसे समाचार मिला कि कराचः खां, मुसाहिब खां, मुबारिक खाँ तथा बापूस आदि बहुत से अमीर जो मूलतः कामरान की सेवा में हुआ करते थे और कामरान को छोड़कर हुमायूँ की तरफ हो गए थे, वापस कामरान की सेवा में भाग गए।

यह एक आश्चर्य की बात थी कि जब हुमायूं किले से बाहर संघर्ष कर रहा था, तब ये लोग हुमायूँ की तरफ से लड़ रहे थे और अब जबकि हुमायूँ किले पर विजय प्राप्त कर चुका था और कामरान किला छोड़कर भाग चुका था, तब ये लोग हुमायूँ का साथ छोड़कर कामरान की तरफ चले गए!

हुमायूँ को ज्ञात हुआ कि अब कामरान ने टालिकान दुर्ग पर अधिकार करके उसमें अपना डेरा जमाया है। इस पर हुमायूँ ने एक सेना लेकर टालिकान पर अभियान किया तथा कामरान को घेर लिया। कुछ समय की घेरेबंदी के बाद कामरान ने बादशाह की अधीनता स्वीकार कर ली और वह बादशाह हुमायूँ की सेवा में आ गया।

हुमायूँ अपने सौतेले एवं चचेरे भाइयों से झगड़ा नहीं करना चाहता था। इसलिए हुमायूँ ने सौतेले भाइयों कामरान तथा अस्करी को फिर से अपनी सेवा में ले लिया तथा अपने राज्य का अपने भाइयों में फिर से बंटवारा किया। उसने मिर्जा कामरान को कोलाब, मिर्जा हिंदाल को कांधार और मिर्जा अस्करी को टालिकान का गवर्नर बनाया। हुमायूँ ने अपने चचेरे भाई मिर्जा सुलेमान को दुर्ग जफर का शासक नियुक्त किया।

इसके बाद हुमायूँ लगभग डेढ़ वर्ष तक काबुल में निवास करता रहा। हुमायूँ द्वारा अपने भाइयों को माफ करके फिर से अपनी सेवा में लिया जाना निश्चित रूप से मानवीय स्तर पर हुमायूँ की महानता का परिचायक था किंतु राजनीतिक स्तर पर बहुत बड़ी भूल थी। डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘हुमायूँ की सामान्य काहिली तथा उसकी अपार उदारता प्रायः उसकी विजय के फलों को नष्ट कर देती थी।’

लेनपूल ने लिखा है- ‘उसमें चरित्र तथा दृढ़ता का अभाव था। वह निरन्तर प्रयास करने में असमर्थ था और प्रायः विजय के अवसर पर अपने हरम में व्यसन में मग्न हो जाता था और अफीम के स्वर्गलोक में अपने मूल्यवान समय को व्यतीत कर देता था।’                                    

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source