Saturday, July 27, 2024
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7. यदि खलीफा मुझे सुल्तान मान ले तो मैं हर साल भारत पर हमला करूंगा!

ई.997 में गजनी के तुर्की सरदार सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई। यद्यपि महमूद, सुबुक्तगीन का बड़ा पुत्र था तथा उसे युद्धों में सेनाओं का नेतृत्व करने का अच्छा अनुभव था किंतु सुबुक्तुगीन ने महमूद की बजाय, अपनी चहेती बेगम के पुत्र इस्माइली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। महमूद बहुत महत्त्वाकांक्षी था। इसलिए उसने अपने पिता के मरते ही विद्रोह कर दिया तथा एक खूनी संघर्ष में अपने भाई इस्माईली को मारकर ई.998 अथवा ई.999 में गजनी पर अधिकार कर लिया। उस समय महमूद गजनवी की आयु 27 वर्ष थी।

महमूद का पिता सुबुक्तगीन गजनी का स्वतंत्र शासक नहीं था, वह एक तुर्की सरदार अलप्तगीन का तुर्की गुलाम था। अलप्तगीन ने अपनी खूबसूरत बेटी का विवाह सुबुक्तगीन से किया था जिसकी कोख से सुबुक्तगीन के छोटे बेटे इस्माइली का जन्म हुआ था। सुबुक्तगीन का स्वामी अलप्तगीन भी स्वतंत्र शासक नहीं था, वह अफगानिस्तान के समानी वंश के तुर्की शासक ‘अहमद’ का जेरखरीद तुर्की गुलाम था।

इस प्रकार सुबुक्तगीन गुलामों का भी गुलाम था किंतु सुबुक्तगीन के पुत्र महमूद ने अफगानिस्तान के समानी शासक से बिल्कुल नाता तोड़कर गजनी में अपने स्वंतत्र राज्य की स्थापना की तथा खलीफा के पास अपने संदेशवाहक भिजवाकर उससे अनुरोध किया कि वह महमूद गजनवी को सुल्तान घोषित करे। महमूद ने खलीफा को लिखा कि यदि खलीफा द्वारा मुझे सुल्तान मान लिया जाता है तो जब तक मैं जीवित रहूंगा, तब तक हर साल भारत पर आक्रमण करके कुफ्र समाप्त करूंगा तथा इस्लाम का प्रसार करूंगा। मुझे भारत से जो सम्पदा मिलेगी उसे मैं खलीफा के पास भिजवा दूंगा।

खलीफा को अपने तुर्की गुलाम महमूद की सारी बातें इतनी अच्छी लगीं कि उसने इस शर्त पर महमूद को सुल्तान की उपाधि दे दी कि खुतबे में खलीफा का नाम पढ़ा जाएगा। इस पर महमूद ने सुल्तान की पदवी धारण की। ऐसा करने वाला वह गजनी का पहला मुस्लिम शासक था। महमूद के दरबार में नियुक्त अरबी लेखक उत्बी के अनुसार महमूद गजनवी ने ऑटोमन शासकों की भांति ‘पृथ्वी पर ईश्वर की प्रतिच्छाया’ की उपाधि धारण की।

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मध्यएशिया के इतिहास में सामान्यतः महमूद का वंश ‘गजनवी वंश’ कहलाता है किंतु कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि बगदाद के खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद गजनवी को सुल्तान के रूप में मान्यता दी एवं यामीन-उद्-दौला अर्थात् साम्राज्य का दाहिना हाथ और अमीन-उल-मिल्लत अर्थात् मुसलमानों का संरक्षक की उपाधियां भी प्रदान कीं। इस कारण महमूद गजनवी के वंश को यामीनी वंश भी कहते हैं।

जब खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद को सुल्तान के रूप में मान्यता दे दी तो महमूद ने खलीफा को दिए गए वचन के अनुसार ई.1000-1027 तक भारत पर 17 आक्रमण किए। डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है- ‘महमूद ने भारत पर इतने अधिक आक्रमण किए थे कि उनकी वास्तविक संख्या बताना कठिन है।’

गजनवी के दरबारी लेखक उतबी के अनुसार महमूद के भारत-आक्रमण वस्तुतः जिहाद के अंतर्गत किए गए थे जो मूर्ति-पूजा के विनाश एवं इस्लाम के प्रसार के लिए किए जाते थे। आधुनिक काल के भारतीय इतिहासकारों डॉ. निजामी एवं डॉ. हबीब का मत है कि महमूद के भारत आक्रमण का उद्देश्य धार्मिक उन्माद नहीं था अपितु भारत के मंदिरों की अपार सम्पदा को लूटना था क्योंकि गजनवी ने मध्यएशिया के मुस्लिम शासकों पर भी आक्रमण किये थे।

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कुछ वामपंथी भारतीय इतिहासकारों ने लिखा है कि गजनवी भारत के हिन्दू धर्म पर आक्रमण नहीं करना चाहता था अपितु वह तो पंजाब के शासक जयपाल तथा आनंदपाल को दबाना चाहता था क्योंकि वे गजनी राज्य की सीमाओं को खतरा उत्पन्न करते रहते थे। डॉ. ए. बी. पाण्डे के अनुसार गजनवी का लक्ष्य भारत से हाथी प्राप्त करना था जिनका उपयोग वह मध्यएशिया के शत्रु राज्यों के विरुद्ध करना चाहता था।

दक्षिणपंथी इतिहासकारों के अनुसार महमूद के आक्रमण धार्मिक एवं आर्थिक उद्देश्यों से तो प्रेरित थे ही, साथ ही उसके आक्रमणों में राजनीतिक उद्देश्य भी निहित थे। वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। यही कारण था कि उसने अपने पिता के छोटे से गजनी राज्य को कुछ ही दिनों में विशाल साम्राज्य में बदल दिया।

विभिन्न इतिहासकार भले ही कुछ भी तर्क दें किंतु सच्चाई यह है कि महमूद के भारत आक्रमणों तथा उसके परिणामों से स्पष्ट होता है कि उसके दो बड़े उद्देश्य थे, पहला यह कि वह भारत की अपार सम्पदा लूट ले और दूसरा यह कि वह भारत से मूर्ति-पूजा समाप्त करके इस्लाम का प्रसार करे। अपने समस्त 17 भारत-आक्रमणों में महमूद ने यही दो कार्य किए।

अपने 32 वर्ष के शासन काल में महमूद गजनवी ने गजनी के छोटे से राज्य को विशाल साम्राज्य में बदल दिया। उसकी सल्तनत की पूर्वी सीमा भारत के पंजाब में थी जबकि पश्चिमी सीमा ईरान के रेगिस्तान में स्थित थी। यह सचमुच एक विशाल साम्राज्य था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सुबुक्तगीन तथा उसके उत्तराधिकारी महमूद गजनवी ने गजनी के छोटे से राज्य को विशाल साम्राज्य में बदल दिया जिसकी सीमाएं बगदाद राज्य की सीमाओं से लेकर लाहौर तक तथा समरकंद राज्य की सीमा से लेकर सिंध की सीमा तक पहुंच गईं।

यद्यपि महमूद ने अपने 17 भारत आक्रमणों में भारत से अपार सम्पदा लूटी किंतु उसने खलीफा को कोई धन नहीं भिजवाया। फिर भी महमूद ने राजनीतिक सूझबूझ से काम लेते हुए सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया तथा अपने राज्य की मस्जिदों में पढ़े जाने वाले खुतबे में खलीफा का नाम लिया जाना जारी रखा ताकि कोई अन्य अफगानी सरदार महमूद गजनवी की राजनीतिक हस्ती को चुनौती न दे सके।

डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि महमूद की आकृति राजाओं की सी नहीं थी। उसका कद बीच का और हृष्ट-पुष्ट था किंतु वह देखने में कुरूप था। शूरत्व में भी वह असाधारण कोटि का नहीं था फिर भी वह बुद्धिमान एवं चतुर था तथा आदमियों को पहचानने की क्षमता रखता था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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