Monday, November 24, 2025
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तोप के सामने (29)

दुष्ट कामरान ने शहजादे अकबर को तोप के सामने लटका दिया। अब उसे बचाने वाला कोई नहीं था। बैराम खाँ ने पिछले दरवाजे से दुर्ग में घुसकर दुर्ग की प्राचीर से लटक रहे तीन वर्ष के अकबर को तोप के सामने से उतारा और मुख्य दरवाजा खोलकर हुमायूँ के पास चला आया।

हिन्दुकुश पर्वत पार करते समय हुमायूँ बीमार पड़ गया था और इस समय वह इस लायक नहीं था कि ढंग से चल फिर भी सके। जब यह खबर नमक हराम मिर्जा अस्करी और फूफी खानजादा बेगम ने कामरान को जाकर दी तो कामरान उसी समय कांधार पर चढ़ दौड़ा।

हुमायूँ और बैराम खाँ इस आकस्मिक स्थिति के लिये तैयार नहीं थे। उन्हें किला खाली करके भाग जाना पड़ा। हुमायूँ का लड़का अकबर अब तक कामरान के पास था जिसे कामरान अपने साथ लाया था।

किला हाथ से निकल जाने के बाद हुमायूँ के सामने एक बार फिर संकट खड़ा हो गया। हिन्दुकुश पर्वत के इस पार इस समय केवल यही एक दुर्ग हुमायूँ के पास था। इस समय उसे केवल बैरामखाँ का ही आसरा रह गया था।

कांधार से बाहर आकर बैराम खाँ ने अपनी सेना को नये सिरे से व्यवस्थित किया और एक दिन अवसर पाकर किले को घेर लिया। उसने थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अपनी तोपें लगाईं और हर तरफ से बमबारी करने लगा।

तोपों की मार से किले का बचना असंभव जानकर कामरान ने तीन वर्ष के अकबर को रस्सियों से बांधकर किले की दीवार पर लटका दिया और एक घुड़सवार के साथ हुमायूँ को संदेश भिजवाया कि यदिे वह तोप चलाना बंद नहीं करेगा तो अकबर मौत के मुँह में चला जायेगा।

हर ओर से छूटती हुई तोपों को देखकर अकबर चीखने चिल्लाने और बुरी तरह से रोने लगा। जाने कौनसी अदृश्य शक्ति थी जो इस घनघोर विपत्ति में भी अकबर के प्राणों को सुरक्षित रखे हुए थी! विवश होकर बैराम खाँ को तोपों का मुँह बंद कर देना पड़ा।

वह समझ गया कि जब तक अकबर को कामरान से छीन नहीं लिया जाता, तब तक हर जीती हुई बाजी से हाथ धोना पड़ेगा। उसने एक योजना बनाई जिसके अनुसार हुमायूँ अपनी पूरी सेना लेकर किले के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ा और बैराम खाँ चुपचाप जंगल की तरफ चला गया। काफी दूर जाकर बैराम खाँ फिर से कांधार की तरफ मुड़ा और अचानक किले के दूसरे दरवाजे पर जा धमका।

कामरान को पता भी नहीं लगा और बैराम खाँ ने किले का दरवाजा तोड़ लिया। जब बैराम खाँ नंगी तलवार लेकर कामरान के महल में घुसा तो कामरान किसी तरह जान बचाकर भाग निकला। बैराम खाँ ने दुर्ग की प्राचीर से लटक रहे तीन वर्ष के अकबर को तोप के सामने से उतारा और मुख्य दरवाजा खोलकर हुमायूँ के पास चला आया।

हुमायूँ ने पूरे दो साल बाद बेटे का मुँह देखा। इस समय उसका रोम-रोम बैराम खाँ के प्रति कृतज्ञता से भरा हुआ था।

-अध्याय 29, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक

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