Saturday, July 27, 2024
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भारत स्वयं महाद्वीप है!

भारत भारत स्वयं महाद्वीप है औरअनादि काल से हिन्दुओं का देश है। हिन्दू कोई सम्प्रदाय नहीं है, कोई धर्म नहीं है, कोई पंथ नहीं है, अपितु यह जीवन जीने की एक पद्धति है जो मानव सभ्यता के आदिकाल से सहज-स्वाभाविक रूप में विकसित हुई है। इसे किसी ने गढ़ा नहीं है, इसके नियम किसी ने निर्धारित नहीं किए हैं।

ये सहज रूप से आर्य-सभ्यता में प्रचलित हुए। यही कारण है कि हिन्दू संस्कृति मानव मात्र को स्वतंत्र-चिंतन एवं निजी-विश्वास के साथ जीवन जीने की छूट देती है। प्राचीन आर्य ‘हिन्दू’ शब्द से परिचित नहीं थे। पश्चिम से भारत आने वाले यूरोपीय आक्रांताओं ने सिंधु नदी को ‘इण्डस’ कहकर पुकारा। इसी इण्डस के आधार पर भारत को ‘इण्डिया’ तथा भारतीयों को ‘इण्डियन’ कहा गया। ‘सिन्धु’ नदी के किनारे रहने के कारण ही भारत के लोग ‘सिन्धु’ और ‘हिन्दू’ कहलाए।

भारत हजारों साल पुराना देश है जिसका निर्माण प्रकृति या राजनीति की सीमाओं से नहीं अपितु संस्कृति की सीमाओं से हुआ था। भारत स्वयं महाद्वीप है जिसमें सुदूर पूर्व से लेकर पश्चिम में धरती के जिस छोर तक वेदों की ऋचायें गूंजती थीं तथा सुरों अर्थात् देवताओं की पूजा होती थी, वहाँ तक सांस्कृतिक भारत की सीमायें लगती थीं। भारत की पश्चिमी सीमा के पार रहने वाले लोग असुरों की पूजा करते थे और अहुरमज्दा पढ़ते थे। असुरों के देश को आज ‘असीरिया’ के नाम से जाना जाता है। अर्थात् असीरिया से लेकर आज के भारत के बीच के जो भी देश हैं, वहाँ तक वैदिक संस्कृति का ही प्रसार था और यह पूरा क्षेत्र ‘सांस्कृतिक-भारत’ था।

पौराणिक युग में जहाँ-जहाँ तक रामकथा तथा महाभारत की कथा का प्रसार हुआ, वहाँ-वहाँ भारत से गये राजकुमारों ने अपने-अपने शासन भी स्थापित किये। उन देशों में भारतीय संस्कृति सहज रूप से व्याप्त हो गई। आज के अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांगलादेश ही नहीं अपितु तिब्बत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, बाली, बु्रनेई, थाईलैण्ड, बर्मा, कम्बोडिया, मेडागास्कर आदि देश पूर्ववर्ती काल में भौगोलिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रूप से भारतवर्ष का ही भाग रहे हैं। यही कारण है कि यदि यह कहा जाए कि भारत स्वयं महाद्वीप है तो इसमें कोई अतिश्योक्त नहीं होगी!

भारत की संस्कृति का प्रभाव यूरोप के बहुत से देशों में था जहाँ आज भी ‘राम’ और ‘वेदव्यास’ के नाम पर नगर मिल जाएंगे। बाली, ट्रिनीडाड और मॉरीशश तो आज भी लघुभारत ही हैं। इण्डोनेशिया, इण्डोचीन, वेस्टइण्डीज आदि देशों के नाम में लगा ‘इण्डो’ शब्द ही बताता है कि किसी समय ये देश ‘हिन्द’ के ही हिस्से थे। हिन्द महासागर अथवा इण्डियन ओसियन की विशालता, भारतीय सांस्कृतिक सीमाओं की विशालता का ही आभास करवाती है।

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कोलम्बस जब अमरीका की धरती पर उतरा तो उसने भी वहाँ के मूल-निवासियों को ‘रेड-इण्डीज’ कहकर पुकारा क्योंकि उसके अवचेतन मन में भारत की विशालता ही व्याप्त थी। यूरोप का डेन्मार्क वास्तव में ‘धेनुमार्ग’ का अपभ्रंश है, यह आज भी दुग्ध-उत्पादन के लिए विख्यात है।

‘इटली’ ‘स्थली’ का अपभ्रंश है, यूनानी भाषा में इटली का अर्थ ‘चारागाह’ होता है। इटली के इतिहास के अनुसार र्ई.पू. 9वीं शताब्दी में भारतीय आर्य राजा ‘अत्ती’ का पुत्र ‘तिरहेन’ अपने बहुत से साथियों के साथ इटली आकर बस गया था। वे लोग संस्कृत बोलते थे।

आज का वेटिकन सिटी किसी समय की वाटिका है जिसमें किसी वैदिक ऋषि का आश्रम था, इस स्थान से शिवलिंगों की प्राप्ति हुई है जिनमें से एक शिवलिंग आज भी यहाँ के संग्रहालय में प्रदर्शित है।

सिकंदर के भारत आक्रमण के समय अर्थात् आज से लगभग 2,350 वर्ष पहले, भारत की सीमायें उत्तर-पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से प्रारंभ होकर उत्तर-पूर्व में बर्मा के अंतिम छोर तक सीमित हो गई थीं। पश्चिम दिशा में भारत का पड़ौसी पर्शिया अर्थात् फारस हुआ करता था।

उस समय का पर्शिया आज का ईरान है। माना जाता है कि ईरान शब्द का निर्माण ‘इरा’ नामक नदी के ‘रण’ से हुआ है ठीक वैसे ही जैसे आज ‘कच्छ का रण’ भारत के गुजरात में स्थित है। भारत से लेकर असीरिया तक लोहे के ऐसे तीर, तरकश एवं शिलालेख मिले हैं जिन पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत भाषा के शब्द उत्कीर्ण हैं।

अजरबैजान में गणेशजी का अत्यंत प्राचीन मंदिर मिला है जिसमें गणेशजी की प्रतिमा, संस्कृत भाषा के शिलालेख एवं शिवलिंग आदि भी प्राप्त हुए हैं। इस मंदिर में सूर्य की भी पेजा होती थी।

यदि यह कहा जाए कि मानव सभ्यता के आरम्भ में जहाँ-जहाँ तक सभ्यता का प्रसार हुआ, वहाँ-वहाँ तक का विश्व भारत ही था, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वैदिक ऋषियों ने मानव की प्राचीन सभ्यता को वैदिक संस्कृति प्रदान की तथा जहाँ-जहाँ तक सभ्यता का प्रसार हो गया था, वहाँ-वहाँ तक की धरती वैदिक-यज्ञों के सुवासित-धूम्र से महक उठी थी। हमें स्मरण रखना चाहिए कि वेदों के शुद्ध-अवशेष भारत में नहीं अपितु जर्मनी में पाए गए थे जहाँ से इन्हें पुनः भारत लाकर भारतीयों के लिए उपलब्ध कराया जा सका।

यूरोपीय भाषा परिवार की लगभग सभी भाषाओं में संस्कृत के अपभ्रंश शब्दों की भरमार है। यथा- मैन (मनु), वुमैन (वामा), काऊ (गऊ), बुल (बैल), डाइटी (देवता), डिवाइन (दिव्य), वैन (वाहन), मदर (मातृ), फादर (पितृ), ब्रदर (भ्रात्), सन (सुअन-पुत्र), ग्रास (घास), ट्री (तरु), सिलिकॉन (शिलाकण), एडमिनिस्ट्रेशन (आदिमनुदर्शन), बोट (पोत), चैरिअट (रथ), कॉट (खाट), बैलेन्स (बलांश), डोर (द्वार), वन (ऊन, संस्कृत में ऊन का अर्थ एक होता है), टू (द्वि), थ्री (त्रि), स्वाइन (सूअर), वाइन (वारुणी), वाइड (वृहद्), सैकेण्ड (क्षण), कैमल (कम्मेलक) आदि।

इस प्रकार और भी प्रमाण मिल जाएंगे जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मध्य-एशिया एवं यूरोप के कई देश अत्यंत प्राचीन काल के ‘सांस्कृतिक-भारत’ ही हैं।

ईसा के जन्म से 563 साल पहले महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ। उन्होंने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया। पश्चिम में ये संदेश हिन्दुकुश पर्वत के इस पार अर्थात् अफगानिस्तान तक सीमित रहे जबकि उत्तर में भूटान, तिब्बत और चीन, पूर्व एवं दक्षिण पूर्व में बर्मा, थाईलैण्ड, जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्नियो, इण्डोनेशिया, कम्बोडिया, सुमाली, आदि देशों तक गये। दक्षिण में श्रीलंका ने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को ग्रहण किया। जहाँ-जहाँ तक महात्मा बुद्ध के संदेश गये, वहाँ- वहाँ तक भारतीय संस्कति का नए सिरे से प्रसार हुआ। इस दृष्टि से भी इन्हें सांस्कृतिक भारत ही माना जाना चाहिये।

एक बार भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउण्टबेटन ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि- ‘भारत एक उपमहाद्वीप नहीं, महाद्वीप है। यह एशिया से जुड़ा हुआ होने के कारण उपमहाद्वीप प्रतीत होता है। जब तक इसे महाद्वीप के रूप में नहीं देखा जाएगा तब तक इसकी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। भारत महाद्वीप की तुलना यूरोप महाद्वीप से की जा सकती है। लम्बाई-चौड़ाई में बहुत अंतर नहीं। जातियां, भाषाएं, उपभाषाएं, धर्मों की संख्या भी लगभग उतनी ही है। ‘

वर्तमान समय में ईरान से बर्मा तक के क्षेत्र में आठ देश स्थित हैं। इनमें से पहला अफगानिस्तान, दूसरा पाकिस्तान, तीसरा भारत, चौथा भूटान, पांचवा नेपाल, छठा बांगलादेश और सातवां म्यानमार है जबकि आठवां तिब्बत चीन में विलुप्त हो चुका है। श्रीलंका भी किसी समय भारत का हिस्सा था। अशोक के समय से लेकर औरंगजेब के समय तक अफगानिस्तान भी भारत का हिस्सा था किंतु अंग्रेजों के भारतीय राजनीतिक आकाश में ताकतवर बनकर उभरने से काफी पहले वह भारत से अलग हो चुका था।

अफगानिस्तान में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनायी हुई गुफायें तथा उनमें उकेरी गयी भगवान बुद्ध की मूर्तियां अभी तक मौजूद थीं जिनमें से कुछ मूर्तियों को मार्च 2001 में तालिबानी आतंकवादियों ने तोपों से गोले बरसाकर बर्बाद कर दिया तथा इन मूर्तियों के वहाँ बनाए जाने के प्रायश्चित स्वरूप 100 गायों का वध किया। तालिबानियों को छोड़ दें तो आम अफगानी आज भी हिन्दी भाषा बोलता है। अफगानियों की हिन्दी, भारत के कई प्रांतों में बोली जाने वाली हिन्दी से अधिक स्पष्ट है।

भारत स्वयं महाद्वीप है इसका एक प्रमाण यह भी है कि भारत की पहचान रहा तक्षशिला अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान की सीमा पर पाकिस्तान में स्थित है। नेपाल, तिब्बत, बर्मा और श्रीलंका हमसे अंग्रेजों के शासन के दौरान अलग हुए किंतु पाकिस्तान और बांगलादेश हमसे ठीक उस दिन अलग हुए जिस दिन अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना था। पाकिस्तान और बांगलादेश भारत से, दो टुकड़ों वाले एक देश के रूप में अलग हुए थे जिनमें से एक टुकड़े को पश्चिमी-पाकिस्तान कहा जाता था तो दूसरे को पूर्वी पाकिस्तान। बाद में ये दोनों टुकड़े भी आपस में झगड़ कर दो राष्ट्रों के रूप में अलग हुए- ‘पाकिस्तान’ एवं ‘बांग्लादेश’।

भारत से पाकिस्तान के अलग होने का आधार साम्प्रदायिकता था। अतः हमें पाकिस्तान बनने के इतिहास से पहले साम्प्रदायिकता की उस आग के इतिहास को समझना होगा, जिसने पाकिस्तान का निर्माण किया।

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