भारत के राजा कायर या कमजोर नहीं थे, किंतु बिखरे हुए थे। महमूद गजनवी ने इसी का लाभ उठाकर भारत को लूटना आरम्भ किया था और वह एक-एक करके मंदिरों एवं नगरों को लूट रहा था। सोमनाथ का शिवलिंग भंग करने के बाद बहुत से हिन्दू राजाओं की आत्मा ने उन्हें धिक्कारा। इसलिए भारतीयों ने महमूद गजनवी की हत्या करने की योजना बनाई!
महमूद गजनवी ने सोमनाथ को भंग करके महालय की अपार संपदा को ऊंटों पर लाद लिया। महमूद गजनवी के हाथों सोमनाथ महालय लुट जाने की सूचना अग्नि की तरह सम्पूर्ण उत्तर-भारत में फैल गई। काश्मीर का लौहरा राजा संग्रामराज, कालिंजर का चंदेल राजा विद्याधर, मालवा का परमार राजा भोजराज, अजमेर का चौहान राजा अजयराज (द्वितीय) अभी तक धरती पर जीवित थे और सोमनाथ महालय भंग हो गया, इन राजाओं के लिए इससे अधिक शर्म की बात और कुछ नहीं हो सकती थी।
कुछ लेखकों ने लिखा है कि महमूद गजनवी की हत्या करने के लिए कुछ राजाओं ने आनन-फानन में एक संघ बनाया तथा गुजरात से जालौर के मरुस्थल की ओर जाने वाले मार्ग पर मोर्चाबंदी की किंतु यह बात सही प्रतीत नहीं होती। इतनी जल्दी किसी संघ का बनना और उस संघ की सेनाओं द्वारा आबू एवं जालौर के बीच मोर्चाबंदी किया जाना संभव नहीं था।
यह संभव है कि अजमेर एवं मालवा के शासकों ने पहले से ही कुछ सेनाएं महमूद का मार्ग रोकने के लिए भेजी हों और वही सेनाएं आबू एवं जालौर के बीच मोर्चाबंदी करके बैठी हों। महमूद के गुप्तचरों ने महमूद को इस मोर्चाबंदी के बारे में समय रहते सूचित कर दिया। महमूद ने गुजरात से आबू एवं जालौर होकर मुल्तान जाने की बजाय मन्सूरा होते हुए सिंध में प्रवेश करने एवं वहाँ से लाहौर जाने वाला मार्ग पकड़ने का निश्चय किया। इस कारण इन सेनाओं से महमूद की सेनाओं की भिड़ंतें नहीं हुईं।
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महमूद ने सोमनाथ से पुनः पीछे मुड़ने की बजाय समुद्र के उथले पानी को पार किया और पश्चिमी दिशा में 90 मील चलते हुए कन्ठकोट जा पहुंचा। सोमनाथ युद्ध में घायल होने के पश्चात् अन्हिलवाड़ा का घायल चौलुक्य राजा भीमदेव (प्रथम) इसी दुर्ग में अपने घावों का उपचार करवा रहा था।
ब्रिग्स ने लिखा है कि जब भीमदेव को ज्ञात हुआ कि महमूद कण्ठकोट आ रहा है तो वह कण्ठकोट से भाग निकला। जब उसके सैनिकों ने देखा कि उनका रक्षक दुर्ग छोड़कर चला गया है तो वे भी दुर्ग की दीवारों से हट गए। महमूद ने बिना किसी प्रतिरोध के कण्ठकोट पर अधिकार कर लिया और वहाँ रह रहे स्त्री-पुरुषों एवं निरीह बच्चों को पकड़कर अपने काफिले के साथ बांध लिया।
महमूद की सेना ने कण्ठकोट से मन्सूरा का मार्ग पकड़ा। ‘जामी उल हिकायत’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि कण्ठकोट से मन्सूरा तक का मार्ग दिखाने के लिए महमूद ने एक भारतीय को नियत किया। वह भारतीय वस्तुतः सोमनाथ महालय के मुख्य पुजारियों में से एक था। उसने महमूद की सेना को मार्ग दिखाने के स्थान पर सिंध के रेगिस्तान में भटका दिया ताकि सेना को पानी नहीं मिल सके तथा सेना प्यासी मर जाए। रैवर्टी ने भी यही वर्णन किया है। इलियट ने भी इस घटना का उल्लेख किया है। फरिश्ता लिखता है कि महमूद की सेना तीन रात और एक दिन तक रेगिस्तान में भटकती रही। जब महमूद को ज्ञात हुआ कि उसकी सेना रेगिस्तान में भटक गई है तो उसने भारतीय मार्गदर्शक को जान से मार दिया। मिनहाज उस् सिराज ने लिखा है- ‘जब महमूद को ज्ञात हुआ कि वह अपनी सेना के साथ मरुस्थल में भटक गया है तो महमूद ने अल्लाह से प्रार्थना की और कुछ देर बाद रात्रि समाप्त हो गई। महमूद को आकाश में एक प्रकाश दिखाई दिया। महमूद ने सेना को उसी ओर बढ़ने का आदेश दिया। जब मुस्लिम सेना वहाँ पहुंची तो उसे पीने का साफ पानी मिल गया।’
जब महमूद गजनवी मन्सूरा पहंचा तो वहाँ का शासक खफीफ भयभीत होकर भाग खड़ा हुआ। महमूद ने खफीफ के बहुत से सैनिकों को मार डाला। इसके बाद महमूद सिंध में तेजी से बढ़ने लगा ताकि जितनी जल्दी हो सके, मरुस्थल को पार करके पंजाब में प्रवेश कर सके।
कुछ ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार मरुस्थल के जाटों एवं भाटियों ने महमूद की सेना को लूटा तथा उसे काफी नुक्सान पहुंचाया। उस काल में कान्छा कान्हा नामक एक जाट सरदार इस क्षेत्र में रहा करता था। वह भगवान शिव का बड़ा भक्त था।
जब कान्छा को ज्ञात हुआ कि सोमनाथ महालय को भंग करने के बाद महमूद गजनवी इसी मार्ग से वापस लौट रहा है तो उसने महमूद का मार्ग रोका। वह महमूद गजनवी की हत्या करने में तो सफल नहीं हुआ किंतु उसने महमूद से लूट का कुछ धन छीनने में सफलता प्राप्त की। इस सम्बन्ध में कई तरह की लोक किम्वदन्तियां चल पड़ी हैं जिनमें कान्छा को बहुत बड़ा नायक दिखाया गया है। पाकिस्तान के लाहौर में आज भी शीशम का एक घना जंगल स्थित है जिसे कान्छा काना कहा जाता है।
भले ही ये किम्वदन्तियां पूर्णतः सही नहीं हों किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि कान्छा ने महमूद को हानि पहुंचाई थी क्योंकि इस क्षेत्र के जाटों को दण्डित करने के लिए महमूद ने अगले ही वर्ष फिर से अभियान किया था। अलबरुनी के अनुसार महमूद सोमनाथ महालय से शिवलिंग के टुकड़े, 65 टन स्वर्ण, हीरे-जवाहरतों के ढेरों आभूषण और रेशम के कढ़े हुए वस्त्रों सहित विपुल सामग्री गजनी ले गया। भारत के हिन्दू कभी भी महमूद गजनवी की हत्या नहीं कर सके।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता