खुसरो आगरा से निकल कर दिल्ली होते हुए लाहौर की ओर भागा। अपने बारह हजार आदमी लेकर वह सिक्खों के गुरु अर्जुनदेव की शरण में पहुँचा। अर्जुनदेव ने उसे बादशाह होने का आशीर्वाद दिया। जब यह समाचार जहाँगीर को मिला तो उसकी रूह काँप गयी। वह स्वयं सेना लेकर लाहौर गया। भैंरोंवाल[1] के निकट पिता पुत्र की सेनाओं में घमासान हुआ। खुसरो के कई हजार आदमी मारे गये। अंत में वह मैदान छोड़कर काबुल के लिये भाग खड़ा हुआ। उसका कोष जहाँगीर के हाथ लग गया। जब खुसरो अत्यंत शीघ्रता में चिनाब पार कर रहा था, तब उसकी नावें जहाँगीर के आदमियों ने पकड़ लीं।
जहाँगीर ने अपने बाप अकबर तथा अपने बेटे खुसरो से वैमनस्य का पूरा हिसाब अपने बाप के चहेते खुसरो से ही चुकता करने का निश्चय किया। उसने खुसरो के खास मित्रों को जीवित ही गधे और बैल की खालों में सिलवा दिया। उसके सैंकड़ों साथियों को एक मील लम्बी सूली पर कतार में लटका दिया। इसके बाद खुसरो को हाथी पर बैठा कर लटकते हुए शवों की कतारों के बीच से ले जाया गया। उससे कहा गया कि अपने हर आदमी की लाश के सामने रुके और झुक कर उसका सलाम कुबूल करे। इसके बाद खुसरो की आँखें फोड़ कर उसे कारागार में डाल दिया जहाँ पंद्रह साल बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो गयी।
खुसरो से निबटने के बाद जहाँगीर गुरु अर्जुन देव की ओर बढ़ा। जहाँगीर पहले से ही इस बात के लिये खफा़ था कि गुरु ने अपनी पुत्री का विवाह जहाँगीर के मित्र चंदूशाह के बेटे से करने से मना कर दिया था[2] लेकिन अकबर के डर के कारण जहाँगीर कुछ कर नहीं पाया था। अब बदला लेने का अच्छा मौका हाथ लगा जानकर उसने गुरु को आदेश दिया कि राज्यद्रोही को आशीर्वाद देने के जुर्म में आप दो लाख रुपये का जुर्माना भरिये। गुरु ने कहा कि मैं तो साधु हूँ। मुझे तेरी सत्ता से कोई लेना देना नहीं है। जो भी मेरी शरण में आयेगा, उसे मैं आशीर्वाद दूंगा। जहाँगीर ने गुरु को कैद कर लिया तथा तरह-तरह की यातनायें दीं। अंत में एक दिन उन्हें बुरी तरह से तड़पा-तड़पा कर मार डाला।[3] गुरु ने अत्याचारी जहाँगीर के हाथों मौत स्वीकार कर ली किंतु जुर्माना नहीं भरा।
यह भाग्य की ही विडम्बना थी कि जिस खुसरो को अकबर ने ताज देना चाहा था उसे तो अपने मित्रों सहित कारागार में मौत मिली और जिस सलीम को अकबर दर-दर का भिखारी बनाना चाहा था, वह पूरी शानो शौकत के साथ मुगलिया तख्त पर बैठकर अकबर के आदमियों को मौत के मुँह में पहुंचाता रहा।
[1] लाहौर के पास। अब पाकिस्तान में है।
[2] चंदूशाह लाहौर का दीवान था और वह गुरु की अथाह सम्पत्ति को हड़पने के लिये अपने बेटे का विवाह गुरु की बेटी से करना चाहता था।
[3] कुछ इतिहासकारों का मत है कि गुरू को नदी में डुबोकर मारा गया।