Saturday, July 27, 2024
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जहानआरा की दौलत

मुगलिया सल्तनत की सबसे अमीर औरत थी जहानआरा ! जहानआरा की दौलत का सही अंदाज तो स्वयं जहानआरा को भी नहीं था।

शाह-बेगम की पदवी मिल जाने के कारण जहानआरा को शासन में सीधे हस्तक्षेप करने के अधिकार मिल गए थे। इसी कारण उसे बेगम-साहिब भी कहा जाता था। जबकि दूसरी शहजादियां उनके नामों से बुलाई जाती थीं। बादशाह की जो शाही मुहर पहले मुमताजमहल के पास रहती थी, अब जहानआरा के पास रहने लगी। वह लोगों की जिंदगी का फैसला करने लगी। बहुत से लोगों को उसने शाही कहर तथा अमीरों के अत्याचारों से बचाया और उनकी जान बख्शी।

शाहजहाँ ने जहानआरा की बुद्धिमत्ता और शासन दक्षता से प्रसन्न होकर उसे ‘साहिबात अल जमानी’ का खिताब दिया था जिसका अर्थ होता है ‘अपने युग की महिला, ….. लेडी ऑफ द एरा।’ सल्तनत में उसका रुतबा इतना बड़ा था कि जहानआरा ने आगरा के दुर्ग से बाहर अपना महल बना रखा था जिसमें वह सुल्तानों की तरह शान से रहा करती थी।

जहानआरा के इस रुतबे के कारण उससे ईर्ष्या रखने वाली मुगलिया हरम की बेगमें और शहजादियां, जहानआरा के बारे में कुत्सित अफवाहें फैलाती थीं तथा उसे बादशाह की रखैल तक कहने में नहीं चूकती थीं! जहानआरा की दौलत के किस्से पूरी सल्तनत में चटखारे लेकर कहे जाते थे।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

जब शाहजहाँ अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली ले आया तब भी जहानआरा, लाल किले में स्थित शाही महलों से अलग महल बनाकर रहा करती थी ताकि सल्तनत के अमीर-उमराव उससे निश्चिंत होकर मिल सकें।

जब तक शाहजहाँ बादशाह था, तब तक जहानआरा ही मुगललिया सल्तनत की सबसे ताकतवर औरत थी। उसके प्रयासों का ही फल था कि शाहजहाँ ने अपने चार पुत्रों में से दारा को अपना उत्तराधिकारी अर्थात् वली-ए-अहद घोषित किया था जिसने एक भी युद्ध नहीं जीता था।

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जब से शाहजहाँ बादशाह बना था, उसने अपने बच्चों में सबसे अधिक धन जहानआरा को ही दिया था। इस कारण मुगललिया सल्तनत में बादशाह के बाद जहानआरा ही सबसे अधिक धनवान थी।

6 फरवरी 1628 को जब शाहजहाँ बादशाह बना था, उसी दिन शाहजहाँ ने जहानआरा को सोने की एक लाख ईरानी अशर्फियां, सोने की चार लाख मुगलिया अशर्फियां तथा 6 लाख रुपए सालाना आय वाली जागीरें प्रदान की थीं। इस कारण वह बहुत धनी हो गई थी।

ई.1631 में जब मुमताजमहल की मृत्यु हुई तो मुमताजमहल के पास सोने की एक लाख ईरानी अशर्फियां, सोने की 6 लाख मुगलिया अशर्फियां तथा 10 लाख रुपए वार्षिक आय वाली जागीरें थी। शाहजहाँ ने मुमताजमहल की सम्पत्ति में से आधी सम्पत्ति शाह बेगम जहानआरा को दे दी तथा शेष आधी सम्पत्ति मुमताजमहल के बाकी के बच्चों में बांट दी।

इस सम्पत्ति के अलावा भी जहान आरा के पास कई गांव, हवेलियां, बाग, महल आदि थे जिनसे उसे प्रतिवर्ष अच्छी आय होती थी। अचरोल, फरजाहरा, बाछोल, सफापुरा तथा दोहारा आदि सरकारें जहानआरा की व्यक्तिगत जागीर में थीं। सूरत का बंदरगाह और पानीपत का परगना भी उसकी जागीर में था।

जहानआरा के जहाज सूरत से लेकर एशिया एवं अफ्रीका महाद्वीपों के बीच स्थित लाल सागर तक जाते थे जिनके माध्यम से नील, सूती कपड़ों तथा मसालों का व्यापार होता था। अंग्रेजों एवं डच व्यापारियों के जहाज भारत से माल भरकर सूरत बंदरगाह से यूरोप के लिए जाते थे। इस बंदरगाह की मालकिन होने के कारण इस माल पर ली जाने वाली चुंगी से वह मालामाल हो गई थी।

यदि यह कहा जाए कि जहानआरा की दौलत के सामने कारूं का खजाना भी फीका था, तो इसमें कोई अतिश्याक्ति नहीं होगी। इस धन का उपयोग जहानआरा निर्धनों की सहायता करने तथा मस्जिदें बनवाने में किया करती थी। वह हर साल अपने जहाजों में चावल भरकर मक्का और मदीना भिजवाया करती थी जहाँ उसे गरीबों में बांट दिया जाता था।

ई.1658 में शाहजहाँ के पुत्रों में हुए उत्तराधिकार के युद्ध में जहानआरा ने पूरी शक्ति के साथ दारा शिकोह का साथ दिया था किंतु भाग्य के लेखे, भाइयों के धोखे तथा दारा की अयोग्यताओं के कारण दारा शिकोह औरंगजेब से परास्त हो गया। औरंगजेब ने अपने तीनों भाइयों को मार डाला, पिता को बंदी बना लिया और जहानआरा से उसकी पदवी छीनकर रौशनआरा को दे दी जिसने उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगजेब का पक्ष लिया था।

इस समय जहानआरा 44 साल की प्रौढ़ हो चुकी थी। जब औरंगजेब ने शाहजहाँ को बंदी बना लिया तो जहानआरा ने अपने समस्त ऐश्वर्य का त्याग करके लाल किले में बंदी की तरह रहना स्वीकार किया। वह उन दिनों को कैसे भूल सकती थी जब उसका पिता अपनी बादशाहत छोड़कर अपनी बीमार बेटी के सिराहने बैठा हुआ रोता रहता था!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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