प्रधानमंत्री एटली की घोषणा – जिन्ना को मिल गया पाकिस्तान
प्रधानमंत्री एटली की घोषणा
भारत में चल रही अंतरिम सरकार की मुस्लिम लीग द्वारा बनाई जा रही गत को देखकर अंग्रेजों ने भारत से किसी भी तरह छुटकारा पाने का मन बना लिया। इसलिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने अचानक 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश-पार्लियामेंट में घोषणा की। प्रधानमंत्री एटली की घोषणा इस प्रकार थी-
‘अनिश्चितता की वर्तमान स्थिति खतरे से भरी है और अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखी जा सकती। महामहिम की सरकार स्पष्ट कर देना चाहती है कि 20 जून 1948 के पहले ही जिम्मेदार भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण को पूरा करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का उसका निश्चित संकल्प है।
……….. अगर पूर्ण प्रतिनिधित्व करने वाली संविधान सभा जून 1948 तक कोई संविधान तैयार नहीं कर सकी तो महामहिम की सरकार विचार करेगी कि ब्रिटिश-भारत में केन्द्रीय सत्ता किसके हाथ में सौंपी जाए। किसी एक केन्द्रीय सरकार के हाथों में या कुछ अंचलों में प्रांतीय सरकारों के हाथों में।’
इसी प्रस्ताव के अंत में लॉर्ड वैवेल के स्थान पर लॉर्ड माउण्टबेटन को भारत का नया वायसराय बनाने की घोषणा की गई थी ताकि वे भारत के शासन का उत्तरदायित्व भारतीय हाथों में इस प्रकार हस्तांतरित कर सकें जो भारत के भावी सुख और सम्पन्नता को सर्वोत्तम ढंग से सुनिश्चित कर सके। इस घोषणा में प्रयुक्त शब्दों की आंच को प्रत्येक भारतीय सहज ही समझ सकता था। घोषणा का मंतव्य स्पष्ट था- सत्ता का हस्तांतरण हर हालत में होगा, चाहे जिसे भी करना पड़े, जैसे भी करना पड़े। चाहे भारत एक रहे या उसके टुकड़े हों।
इसीलिए सत्ता के हस्तांतरण को महामना सम्राट की उदारता पूर्वक की गई घोषणा नहीं कहा जा सकता था अपितु इसके माध्यम से छिपे-शब्दों में चुनौती दी गई कि इस बार जिस भारतीय तत्व ने अंग्रेज सरकार पर अपनी शर्तें मनवाने का दबाव बनाने का प्रयास किया, वह निश्चित रूप से घाटे में रहेगा और सत्ता का हस्तांतरण उसे कर दिया जाएगा जो अंग्रेज सरकार की बात मानेगा।
इस प्रकार इस बार सत्ता हस्तांतरण की जिम्मेदारी अंग्रेजों पर कम रह गई थी और भारतीयों पर अधिक आ गई थी कि वे शांति-पूर्वक आजादी ले लें……… अन्यथा अंग्रेज भारत को लावारिस छोड़कर चले जाएंगे।
प्रधानमंत्री एटली की घोषणा से कांग्रेस समझ गई कि जिन्ना को पाकिस्तान मिल गया है। अब अंग्रेजों से लड़ने का समय समाप्त हो चुका है, अब उन्हें मुस्लिम लीग के हाथों से अपने देश को बचाना है, देश का कम से कम नुक्सान करके, अधिक से अधिक हिस्सा बचाना है। मुस्लिम लीग भी समझ गई कि अब उन्हें अंग्रेजों की तरफ से चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें अपने मुक्के केवल कांग्रेस पर बर्बाद करने हैं तथा भारत के देशी-राजाओं और दलित नेताओं को अपने पक्ष में करके अधिक से अधिक पाकिस्तान प्राप्त करना है।
एक ऐसा पाकिस्तान जिसमें नेहरू, गांधी और पटेल न हों, कांग्रेस न हो, जनेऊधारी मालवीय जैसे पण्डित न हों, केवल जिन्ना हो, लियाकत अली हो, चौधरी मोहम्मद अली हो और आंख मूंद कर उनके पीछे चलने वाले सुहरावर्दी जैसे अनुयाई हों।
इसलिए प्रधानमंत्री एटली की घोषणा के साथ ही भारत में अफरा-तफरी मच गई। किसी को आशा नहीं थी कि इंग्लैण्ड अपनी महारानी के मुकुट में जड़े सबसे कीमती हीरे को इतनी आसानी से छोड़ देगा। इसका श्रेय किसी एक तत्व को नहीं दिया जा सकता था। न तो भारत में चल रहे स्वाधीनता संग्राम को, न कांग्रेस को, न गांधीजी को…… जैसा कि बाद में दावा किया गया। अपितु यह एक बहुत सी घटनाओं और घटना-चक्रों का सम्मिलित परिणाम था जिनमें से कुछ इस प्रकार थीं-
(1) अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन जैसी अंतराष्ट्रीय शक्तियां इंग्लैण्ड पर दबाव डाल रही थीं कि वह भारत को स्वतंत्र करे।
(2) भारत में चल रहे कम्यूनिस्ट आंदोलनों के कारण मजदूरों द्वारा हड़तालों की ऐसी शृंखला आरम्भ कर दी गई थी जिससे निबट पाना अंग्रेज सरकार के वश में नहीं रह गया था।
(3) द्वितीय विश्व-युद्ध के मोर्चे पर इंग्लैण्ड की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वह भारत जैसे बड़े देश पर नियंत्रण रखने योग्य ही नहीं रह गया था।
(4) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आकस्मिक निधन से भारतीयों के मन में अंग्रेजों के प्रति अविश्वास अपने चरम पर पहुंच गया था। अधिकांश भारतीयों का मानना था कि सुभाष बाबू की हत्या की गई है और इस कार्य में अंग्रेज शामिल हैं।
(5) मुस्लिम लीग सीधी कार्यवाही दिवस का आयोजन करके यह सिद्ध कर चुकी थी कि उसके गुण्डों को रोक पाना किसी के वश में नहीं है, न अंग्रेजी हुकूमत के और न कांग्रेस के।
(6) कांग्रेस भी अब अंग्रेजों से ज्यादा मुस्लिम लीग से छुटकारा पाने को व्याकुल हो उठी थी।
(7) भारतीय सेनाओं के सशस्त्र विद्रोहों में अंग्रेज अधिकारियों की हत्याएं होने से अंग्रेजों का आत्म-विश्वास पूरी तरह नष्ट हो गया।
इन सबसे एक-साथ निबटने की शक्ति निश्चित रूप से ब्रिटेन में नहीं रह गई थी। अब परिस्थिति उस दौर में पहुंच चुकी थी जिसमें से अंग्रेजों को भारत से अपना पीछा छुड़ाना था ताकि भारत में रह रहे अंग्रेज अधिकारी एवं उनके परिवार सुरक्षित रूप से भारत से निकलकर इंग्लैण्ड पहुंच सकें। इसके लिए उन्हें भारत के दो तो क्या हजार टुकड़े भी करने पड़ते तो अंग्रेज उससे नहीं हिचकिचाते।
प्रधानमंत्री एटली की घोषणा ने मुसलमानों को मुंहमांगा वरदान दे दिया था किंतु भारत के अंग्रेजों को चिंतित कर दिया था और हिन्दुओं को दुखी कर दिया था। हिन्दू इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि एक दिन मुसलमान उनके प्यारे भारत के टुकड़े कर देंगे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता