बड़ी-बड़ी मूंछों और लम्बी दाढ़ियों वाले चार दैत्याकार कहार शाही पालकी को अपने मजबूत कंधों पर उठाये हुए तेजी से नगर की सड़कों पर भागे चले जा रहे थे। शाही पालकी के आगे-आगे भाग रहे चोबदार और पालकी के बराबर चल रहे घुड़सवार सैनिकों की उपस्थिति से लगता था कि निश्चित ही शाही परिवार का कोई महत्वपूर्ण सदस्य पालकी में सवार है किंतु पालकी पर चारों ओर अत्यंत सावधानी से पर्दा पड़ा होने से यह अनुमान लगा पाना संभव नहीं था कि पालकी में कोई पुरुष है अथवा स्त्री और उनकी संख्या कितनी है।
दैत्याकार कहार प्रत्येक कदम इस सावधानी से रखते थे कि उनका पैर किसी ऊँची-नीची जगह पर न पड़ जाये और पालकी के भीतर बैठी शाही सवारी को किसी तरह की असुविधा न हो। अचानक पालकी रुक गयी और कहारों ने दम साधने के लिये पालकी को सावधानी से नीचे रख दिया। पालकी के आगे चलने वाले चोबदार और साथ चलने वाले घुड़सवार सिपाही भी अपने घोड़ों से नीचे उतर पड़े।
– ‘क्या बात है मुहम्मद, तुम लोग रुक क्यों गये?’ भीतर से एक बारीक किंतु दृढ़ आवाज में प्रश्न पूछा गया।
– ‘……..।’ कहारों के नेता मुहम्मद से कोई जवाब देते नहीं बना। वह घबराकर अपने साथियों का मुँह देखने लगा।
– ‘तुमने जवाब नहीं दिया। सामने कोई मुश्किल है क्या? सड़क पर इतना शोर क्यों हो रहा है?’
– ‘सुलताना बीबी! छोटे सरकार की सवारी निकलने वाली है। उसे देखने के लिये सैंकड़ों बाशिंदे रास्ते के दोनों ओर जमा हैं। जब सवारी निकल जाये तो लोग भी निकल जायेंगे और हम भी।’ पालकी के साथ चल रहे वृद्ध घुड़सवार फिरोजखाँ ने जवाब दिया। वह सुलताना चाँद बीबी का मुँह लगा विश्वस्त सिपाही था और उस समय से चाँद बीबी की सेवा में था जब बुरहान निजामशाह के महलों में उसका जन्म हुआ था। इतना ही नहीं, वृद्ध फिरोज अपने साथियों में कुछ अधिक अक्लमंद भी माना जाता था। इससे उसी ने जवाब देने का साहस किया।
– ‘छोटे सरकार! कौन छोटे सरकार?’ सुलताना बीबी ने पूछा।
– ‘सुलताना! मथुरा के राजा किसनजी की सवारी जा रही है, वे ही छोटे सरकार हैं।’
– ‘क्या मथुरा देश का राजा हमारे अहमदनगर में आया हुआ है?
– ‘नहीं सुलताना बीबी! मथुरा में अब कोई राजा नहीं है। अब तो वहाँ मुगल बादशाह अकब्बर की हुकूमत है। किसनजी तो हजारों साल पहले मथुरा का राजा था जिसे हिन्दू रियाया आसमानी फरिश्ता मानकर उसकी इबादत करती है। उसी फरिश्ते की सवारी जा रही है, गाजे-बाजे के साथ।
– ‘उनकी सवारी कहाँ जा रही है फिरोज मियाँ?’
– ‘आज हिन्दुओं की देवझूलनी एकादशी है। इनमें मान्यता है कि आज के दिन फरिश्तों के बुतों को उनके मंदिर से निकाल कर किसी तालाब या नदी तक ले जाते हैं और भगवान को नहला कर तालाब या नदी के किनारे झूला खिलाते हैं।’
थोड़ी ही देर में गाजे-बाजे की आवाज पालकी तक भी पहुँचने लगी और सड़क का कोलाहल बढ़ गया।
– ‘फिरोज मियाँ!’
– ‘हाँ सरकार।’
– ‘आपने हिन्दुओं के फरिश्ते को छोटे सरकार कहा, सो क्यों?’
– ‘सुलताना बीबी! अहमदनगर की सुलताना होने के कारण आप बड़ी सरकार हैं तो फिर मथुरा का राजा किसनजी तो छोटे सरकार ही हुआ।’ बुद्धिमान वृद्ध ने सफेद बालों से भरा हुआ सिर पालकी की ओर झुका कर पलकें झपकाते हुए उत्तर दिया।
गाजो-बाजों और सामूहिक स्वरों में गाये जाने वाले कीर्तन की आवाज बिल्कुल स्पष्ट हो चली थी। पर्दे के भीतर बैठी चाँद देर तक सुमधुर कीर्तन को सुनती रही। ऐसा संगीत उसने आज से पहले कभी नहीं सुना था। शब्द भी क्या थे जैसे आदमियों के कण्ठों से नहीं आसमानी जीवों के कण्ठों से निकल रहे हों। लगता था जैसे किसी ने शब्दों में सुगंध भर दी थी जिनकी महक से चारों ओर का वातारण महकने लगा था-
साहब सिरताज हुआ, नन्द जू का आप पूत
मारा जिन असुर, करी काली – सिर छाप है।
कुन्दनपुर जाय के, सहाय करी भीषम की,
रुक्मनी की टेक राखी, लागी नहीं खाप है।
पाण्डव की पच्छ करी, द्रौपदी बढ़ायो चीर,
दीन – से सुदामा की, मेटी जिन ताप है।
निहचै करि सोधि लेहु, ज्ञानी गुनवान वेगि,
जग में अनूप मित्र, कृष्ण कौ मिलाप है।[1]
भजन सुनकर चाँद आपे में नहीं रही। वह अचानक पालकी का पर्दा उठाकर बाहर निकल आई। उसके शरीर पर बुर्का नहीं था। एक बिजली सी चमकी और लगा जैसे दिन में ही चाँद निकल आया। देखने वालों की आँखें चुंधिया गयीं। पूनम का जो चाँद आसमान के रहस्यमयी पर्दों में से निकलता था आज पालकी के पर्दों में से प्रकट हुआ। कहार, चोबदार और घुड़सवार हड़बड़ाकर एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
– ‘हमारे साथ आइये फिरोज मियाँ। आज हम छोटे सरकार को देखेंगे।’ अपनी शाही मर्यादा भुलाकर चाँद किसनजी की सवारी की तरफ दौड़ पड़ी।
बूढ़ा फिरोज, चोबदार और दूसरे सैनिक सुलताना के पीछे दौड़ पड़े। चाँद अपने होश में न थी। वह बदहवासों की तरह भगवान कृष्ण की सवारी की तरफ भागी। आगे-आगे कीमती कपड़ों में सजी-धजी एक मुस्लिम औरत और उसक पीछे सिपाहियों और चोबदारों को इस तरह भाग कर आते हुए देख कर भगवान कृष्ण की शोभायात्रा में चल रहे लोग डर कर पीछे हट गये। चाँद आगे बढ़ती रही और मार्ग स्वतः खाली हो गया। गाजे-बाजे बंद हो गये और भगवान की सवारी रुक गयी।
ठीक भगवान के झूले के सामने जाकर चाँद खड़ी हो गयी और आँखें फाड़-फाड़ कर भगवान के विग्रह को निहारने लगी। उसने पलक तक नहीं गिरायी। चाँद को लगा कि किसनजी का बुत उसे अपनी ओर खींच रहा है। उसके मन में विचारों की आंधी उमड़ पड़ी। क्या यही है वह साहब सिरताज! नन्द जू का पूत? जिसने रुक्मनी और द्रौपदी की लाज रखी? मैं भी तो एक औरत हूँ, क्या यह मेरी लाज रखेगा? क्या सचमुच ही यह कोई आसमानी फरिश्ता है? ऐसी क्या बात है इसमें? यह मुझे अपनी ओर क्यों खींच रहा है ? क्या बुत किसी इंसान को खींच सकता है? क्या इसमें वाकई कोई आसमानी ताकत है?
चाँद सुलताना को अपने बीच देखकर भक्तों ने सवारी वहीं रोक दी। जब बहुत देर तक सुलताना बुत बनी हुई, अपलक होकर भगवान को निहारती रही तो उसके सिपाहियों में बेचैनी फैल गयी। वृद्ध फिरोज ने साहस करके पूछा- ‘यदि सुलताना का हुकुम हो तो हम लोग पालकी यहीं ले आयें?’
सुलताना जैसे किसी अदृश्य लोक से निकल कर फिर से धरती पर आयी। क्या कमाल की बात है? अभी-अभी तो यहाँ कोई नहीं था। कहाँ चले गये थे ये लोग और फिर अचानक कहाँ से आ गये?
किसी से कुछ न कहकर चाँद फिर से पालकी की ओर मुड़ी। तब तक कहार पालकी लेकर वहीं पहुँच चुके थे। भक्तों ने चाहा कि जब सुलताना की पालकी निकल जाये तो भगवान की सवारी को आगे बढ़ायें किंतु सुलताना ने कहा कि ये बड़े सरकार हैं, पहले इनकी सवारी आगे बढ़ेगी उसके बाद छोटे सरकार की यानि हमारी सवारी जायेगी।
पूरा आकाश भगवान मुरली मनोहर और सुलताना बीबी की जय-जयकार से गूंज उठा। भक्तों ने अबीर गुलाल और पुष्पों की वर्षा करके उस क्षण को सदैव के लिये स्मरणीय बना दिया।
[1] यह पद रसखान की बहिन दीवानी मुगलानी ताज का है जो ब्रज में रहकर कृष्ण भक्ति के पद रचा करती थी।